पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने क्रिप्टिक, नॉन-स्पीकिंग ऑर्डर में वृद्धि के बीच आरटीआई अधिकारियों को निर्देश जारी किए
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने ने हाल ही में कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत अपीलीय प्राधिकारियों सहित प्राधिकारी सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और आरटीआई अधिनियम का अधिदेश के निर्णयों का उल्लंघन करते हुए "क्रिप्टिक और नॉन-स्पीकिंग ऑर्डर" पारित कर रहे हैं। नॉन स्पीकिंग ऑर्डर से तात्पर्य ऐसे आदेशों से हैं, जो कानून के मूल सिद्धांत के विपरित होते हैं। ये कानून के नजरिए से अनुचूति आदेश होते हैं।
जस्टिस विकास बहल ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत अपीलों को संभालने वाले अधिकारियों को मामलों का फैसला करते समय स्पष्ट और तर्कसंगत आदेश प्रदान करने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट ने कहा,
"इस न्यायालय ने पाया कि बड़ी संख्या में मामलों में प्रथम अपीलीय प्राधिकारी {धारा 19(1) के तहत पहली वैधानिक अपील पर फैसला करते समय} और दूसरे अपीलीय प्राधिकारी {धारा 19(1) के तहत दूसरी वैधानिक अपील पर फैसला करते समय) सहित प्राधिकारी 3)} अधिनियम के तहत माननीय सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्णयों के उल्लंघन में और 2005 के अधिनियम के जनादेश के उल्लंघन में क्रिप्टिक और नॉन-स्पीकिंग ऑर्डर पारित कर रहे हैं।
जस्टिस बहल ने इस प्रकार आरटीआई अपीलों को निपटाते समय अधिनियम के तहत अपीलीय अधिकारियों द्वारा पालन किए जाने वाले निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
1. आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना बिंदु निर्दिष्ट करें।
2. प्रत्येक सूचना अनुरोध का बिन्दुवार उत्तर दें।
3. स्पष्ट रूप से इंगित करें कि क्या जानकारी दी गई और आपूर्ति की तारीख निर्दिष्ट करें।
4. यदि जानकारी अस्वीकार कर दी जाती है तो इनकार के कारणों को रिकॉर्ड करें और दोनों पक्षों द्वारा की गई दलीलों पर विचार करने के बाद उस पर निष्कर्ष लौटाएं।
5. मामले पर अन्य आवश्यक टिप्पणियों या निष्कर्षों को रिकॉर्ड करें।
यह फैसला सिविल रिट याचिका के जवाब में आया। उक्त रिट याचिका में याचिकाकर्ता ने राज्य सूचना आयोग द्वारा पारित गूढ़ और अस्पष्ट आदेश को चुनौती दी।
याचिकाकर्ता ने आरटीआई कानून के तहत सात बिंदुओं पर जानकारी मांगने के लिए अर्जी दाखिल की। जवाब से असंतुष्ट याचिकाकर्ता ने अपील दायर की। इससे मामला राज्य सूचना आयोग तक पहुंच गया। हालांकि, आयोग के निर्णय में स्पष्ट तर्क का अभाव है और विवाद के विशिष्ट बिंदुओं को संबोधित करने में विफल रहा, जिससे हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि न तो मांगी गई जानकारी का विवरण आक्षेपित आदेश में उल्लिखित किया गया और न ही यह बताया गया कि किन बिंदुओं पर जानकारी दी गई। साथ ही किन बिंदुओं पर जानकारी नहीं दी जा सकती। समान आपूर्ति न होने के क्या कारण हैं?
न्यायालय ने कहा कि उत्तरदाता इस तथ्य पर विवाद नहीं कर सकते हैं कि दूसरी अपील को निपटाने/बंद करने से पहले न तो आवेदन में मांगी गई जानकारी का विवरण दिया गया, न ही वह तारीख जिस पर जानकारी दी गई। साथ ही कोई कारण भी नहीं बताया गया। दलीलों पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि आक्षेपित आदेश के अवलोकन से पता चलेगा कि याचिकाकर्ता ने जिन विभिन्न बिंदुओं पर जानकारी मांगी, उनका कोई संदर्भ नहीं दिया गया।
कोर्ट ने कहा,
आक्षेपित आदेश में यह भी नहीं देखा गया कि आवेदन के किस बिंदु के संबंध में जानकारी किस तारीख को दी गई।
ऐसी स्थिति में किसी विशेष बिंदु के तहत जानकारी 2005 के एक्ट के किसी भी प्रावधान में निहित किसी भी बाधा के कारण या किसी अन्य कारण से प्रदान नहीं की जानी है, उक्त पहलू पर निष्कर्ष दर्ज किया जाना चाहिए, जो भी नहीं किया गया, वर्तमान मामले में किया गया, यह आगे कहा गया।
कोर्ट ने कहा,
"आक्षेपित आदेश को पढ़ने से न तो याचिकाकर्ता का मामला और न ही उत्तरदाताओं का रुख स्पष्ट है, न ही यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि आवेदन के किस खंड/बिंदु के तहत जानकारी कब दी गई।" .
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि राज्य सूचना आयुक्त अधिनियम की धारा 19(3) के तहत याचिकाकर्ता द्वारा दायर दूसरी वैधानिक अपील पर फैसला करते समय अर्ध-न्यायिक प्राधिकारी के रूप में कार्य कर रहे हैं।
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि इस मामले में राज्य सूचना आयोग जैसे अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण अपने निर्णयों के लिए व्यापक कारण दर्ज करने के लिए बाध्य हैं। यह पारदर्शिता सुनिश्चित करती है कि न्याय न केवल हो, बल्कि होता हुआ दिखे भी, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास मजबूत होता है। न्यायालय ने आगे इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रदान किए गए कारण ठोस और स्पष्ट होने चाहिए, न कि केवल "रबर स्टाम्प कारण"।
न्यायालय ने निर्णय लेने में कारणों को दर्ज करने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पिछले निर्णयों पर भी चर्चा की। इसने इस बात पर जोर दिया कि भले ही विशिष्ट वैधानिक प्रावधानों द्वारा अनिवार्य नहीं किया गया हो, फिर भी न्यायिक जांच में खड़े होने के लिए कारण बताए जाने चाहिए। निर्णय में उन मामलों का हवाला दिया गया, जहां नॉन-स्पीकिंग ऑर्डर रद्द कर दिया गया। साथ ही निर्णयों को पुनर्विचार के लिए भेज दिया गया।
नतीजतन, न्यायालय ने दूसरे अपीलीय प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश रद्द करने का निर्देश दिया। साथ ही प्रतिस्पर्धी पक्षों को सुनवाई का अवसर देने के बाद अपील पर नए सिरे से निर्णय लेने के लिए इसे राज्य सूचना आयुक्त, पंजाब को भेज दिया।
कोर्ट ने कहा,
“राज्य सूचना आयुक्त, पंजाब को दोनों पक्षकारों द्वारा उठाए गए विवादों से निपटने के लिए स्पष्ट आदेश पारित करने का निर्देश दिया गया। पक्षकारों को अपने वकील के माध्यम से 24.08.2023 को राज्य सूचना आयुक्त, पंजाब के सामने पेश होने का निर्देश दिया जाता है।”
न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा के मुख्य सचिवों और चंडीगढ़ प्रशासक के एडवाइजर को अनुपालन के लिए आरटीआई एक्ट के तहत सभी अधिकारियों के बीच निर्णय प्रसारित करने का भी निर्देश दिया।
ऐसे में याचिका का निस्तारण कर दिया गया।
केस टाइटल: राजविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य
अपीयरेंस: याचिकाकर्ता के वकील अमनदीप सिंह सैनी, प्रतिवादी नंबर 1 से 7 के लिए रोहित बंसल, सीनियर डीएजी, पंजाब।
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