प्रोफेसर नियुक्ति| शिक्षण अनुभव केवल वही हो सकता है, जिसे आवश्यक स्नातकोत्तर योग्यता के बाद प्राप्त किया जाए: केरल हाईकोर्ट

Update: 2022-12-22 13:58 GMT

Kerala High Court

केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को दोहराया कि प्रसूति तंत्र और स्त्रीरोग विभाग में प्रोफेसर पद पर पदोन्नति के लिए लागू विशेष नियमों के तहत निर्धारित शिक्षण अनुभव को केरल राज्य और अधीनस्थ सेवा नियम (केएस और एसएसआर) भाग 2 के नियम 10 (एबी) के प्रावधानों के साथ पढ़ा जाना चाहिए, और इस प्रकार, यह कहा कि शिक्षण अनुभव केवल वही हो सकता है, जिसे आवश्यक योग्यता के बाद प्राप्त किया गया है।

जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सी पी की खंडपीठ ने कहा कि,

"जब हम केएस एंड एसएसआर भाग II के नियम 10 (एबी) के साथ विशेष नियमों में प्रावधानों को पढ़ते हैं, जैसा कि ट्रिब्यूनल ने इस मामले में किया था, तो यह निष्कर्ष तय है कि प्रोफेसर पद के लिए उल्लिखित दस वर्षों का शिक्षण अनुभव वह है, जिसे पद के लिए आवश्यक बुनियादी पीजी योग्यता प्राप्त करने के बाद प्राप्त किया जाता है।

संक्षिप्त तथ्य

याचिकाकर्ताओं ने केरल प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी।

राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, कन्नूर में प्रसूति तंत्र और स्‍त्री रोग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर पद पर कार्यरत याचिकाकर्ता ने ट्रिब्यूनल के समक्ष एक आवेदन दायर किया था।

वह ‌डिपाटमेंटल प्रमोशन कमेटी [डीपीसी] के निर्णय से व्यथित था, जिसे 26.9.2014 से खाली पड़े प्रोफेसर के पद को भरने के लिए आहूत किया गया था।

डीपीसी ने अपीलकर्ता की उम्मीदवारी के साथ दो अन्य उम्मीदवारों पर विचार करने का फैसला किया था। हालांकि अपीलकर्ता का मानना था कि दो अन्य उम्मीदवार प्रसूति तंत्र और स्त्रीरोग विभाग में प्रोफेसर पद पर पदोन्नति के लिए लागू विशेष नियमों के अनुसार योग्य नहीं थे।

उक्त नियमों के अनुसार, प्रोफेसर प्रसूति तंत्र और स्त्री रोग विभाग के प्रोफेसर पद को एसोसिएट प्रोफेसर को पदोन्नत कर या पदोन्नति के लिए योग्य व्यक्तियों की अनुपस्थिति में सीधी भर्ती द्वारा भरा जाना था।

प्रोफेसर की श्रेणी में पदोन्नति संबंधित विभाग में कैडर सीनियारिटी पर आधारित है और उम्मीदवार को एक चयन सूची से चुना जाना है।

आवेदक का मामला यह है कि यद्यपि अन्य दो उम्मीदवारों ने लागू विशेष नियमों के तहत दी गई विस्तारित अवधि के भीतर अपनी पीजी योग्यता प्राप्त की थी, हालांकि, उनके द्वारा विभिन्न पदों पर बिताई गई अवधि, जहां पीजी योग्यता आवश्यक योग्यता के रूप में निर्धारित की गई थी, को प्रोफेसर के पद के लिए आवश्यक शिक्षण अनुभव में नहीं गिना जा सकता है, जिसके लिए पीजी डिग्री भी एक आवश्यक योग्यता के रूप में निर्धारित की गई थी।

ट्रिब्यूनल के निष्कर्ष

ट्रिब्यूनल ने इस मुद्दे पर विचार करने के बाद कहा था कि भाग II केएस और एसएसआर के नियम 10 (एबी) को विशेष नियमों के साथ पढ़ा जाना चाहिए जो प्रोफेसर के पद के लिए योग्यता निर्धारित करता है और जब ऐसा पढ़ा जाता है, तो पद के लिए योग्यता शिक्षण अनुभव था पीजी योग्यता प्राप्त करने के बाद प्राप्त शिक्षण अनुभव के रूप में देखा जाना चाहिए।

ट्रिब्यूनल ने इसलिए घोषित किया था कि आवेदक अकेले प्रोफेसर [प्रसूति तंत्र और स्‍त्रीरोग ] पद पर पदोन्नति के लिए योग्य था, यह हवाला देते हुए कि प्रोफेसर के पद पर रिक्ति होने की तिथि पर याचिकाकर्ता की दस साल की सेवा थी 20.1.2006 से सहायक प्रोफेसर के रूप में पांच साल शामिल थे, जबकि अन्य दो उम्मीदवारों ने क्रमशः 2015 और 2016 में दस साल का अनुभव प्राप्त किया।

ट्रिब्यूनल के आदेश से क्षुब्ध होकर वर्तमान याचिकाएं दायर की गईं।

न्यायालय के निष्कर्ष

न्यायालय ने पाया कि विशेष नियमों के शब्द, अस्पष्ट हैं, जब यह कहता है कि "संबंधित विषय में दस साल का शिक्षण अनुभव, जिसमें सरकारी आयुर्वेद कॉलेज में रीडर या एसिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में पांच साल का अनुभव होना चाहिए"।

केएस और एसएसआर भाग II नियम 10 (एबी) हालांकि स्पष्ट करता है,

"जहां किसी सेवा में किसी पद के लिए विशेष नियम या भर्ती नियम अनुभव की योग्यता निर्धारित करते हैं, जब तक कि अन्यथा निर्दिष्ट न हो, यह वैतनिक या अवैतनिक प्रशिक्षुओं, ट्रेनिओं, और केंद्र या राज्य सरकार की सेवा में या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम या पंजीकृत निजी क्षेत्र के उपक्रम में अस्थायी या नियमित नियुक्ति पर व्यक्तियों द्वारा निर्धारित बुनियादी योग्यता प्राप्त करने के बाद प्राप्त किया जाएगा।"

इसलिए न्यायालय ने केएस एंड एसएसआर भाग II नियम 10 (एबी) के साथ विशेष नियमों में प्रावधानों को पढ़ने के बाद कहा कि यह तय है कि प्रोफेसर के पद के लिए उल्लिखित दस वर्षों का शिक्षण अनुभव ऐसा हो जिसे पद के लिए आवश्यक बुनियादी पीजी योग्यता प्राप्त करने के बाद प्राप्त किया जाना है।

इसलिए, न्यायालय ने पाया कि पद के लिए आवश्यक योग्यता के बिना पद में प्राप्त कोई भी अनुभव, अपने कैरियर की प्रगति के उद्देश्यों के लिए पदधारी के लाभ को सुनिश्चित नहीं कर सकता है।

डिवीजन बेंच ने यह भी कहा कि विशेष नियमों के अनुसार, अनुभव की गुणवत्ता और प्रकृति नियमों के तहत निर्धारित दस साल की पूरी अवधि के लिए समान होनी चाहिए और पांच साल का अनुभव रीडर या एसिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में होना चाहिए।

न्यायालय ने इसलिए कहा कि रीडर या एसिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में पांच साल का अनुभव ऐसा होना चाहिए जो पीजी योग्यता प्राप्त करने के बाद प्राप्त किया गया हो और यह इस प्रकार हो कि चूंकि पद के लिए आवश्यक अनुभव गुणात्मक रूप से दस वर्षों की पूरी अवधि के लिए समान होना चाहिए, पीजी योग्यता प्राप्त करने के बाद शिक्षण अनुभव की संपूर्णता प्राप्त की जानी चाहिए।

इस प्रकार, न्यायालय ने ट्रिब्यूनल के विवादित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाते हुए याचिकाओं को खारिज कर दिया।

केस टाइटल: डॉ. आशा श्रीधर बनाम डॉ शाहिनामोले एस और जुड़े मामले

साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (केरल) 658

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