बेटी की भलाई के लिए माता-पिता द्वारा दिए गए उपहार दहेज के दायरे में नहीं : केरल हाईकोर्ट

Update: 2021-12-14 15:59 GMT

केरल हाईकोर्ट

  एक महत्वपूर्ण फैसले में, केरल हाईकोर्ट ने माना है कि शादी के समय दुल्हन को उसकी भलाई के लिए दिए गए उपहारों को दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के दायरे में दहेज के रूप में नहीं माना जाएगा।

एक पीड़ित पति की तरफ से दायर याचिका को अनुमति देते हुए, न्यायमूर्ति एम.आर. अनीथा ने कहाः

''...विवाह के समय दुल्हन को बिना किसी मांग के दिए गए उपहार और जो इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार बनाई गई सूची में दर्ज किए गए हैं,वो धारा 3(1) के दायरे में नहीं आएंगे,जो दहेज देने या लेने पर रोक लगाती है।''

याचिकाकर्ता यहां चौथी प्रतिवादी दीप्ति के.एस. का पति है। याचिकाकर्ता के अनुसार, उसने 2020 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार दीप्ति से शादी की थी। शादी के बाद वह दोनों याचिकाकर्ता के यहां पति-पत्नी के रूप में रहने लगे थे।

परंतु बाद में उनके रिश्ते में खटास आ गई। याचिकाकर्ता का मामला यह है कि दीप्ति ने दहेज नोडल अधिकारी के समक्ष याचिका दायर कर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की है।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता केपी प्रदीप, हरीश एम.आर, रश्मी नायर टी, टी.टी बीजू, टी. थसमी और एमजे अनूपा ने तर्क दिया कि चौथे प्रतिवादी के परिवार ने अपने सभी गहने इस दंपत्ति के नाम पर एक बैंक लॉकर में रख दिए थे और इस लॉकर की चाबी दीप्ति के पास ही थी।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जिला दहेज निषेध अधिकारी के पास याचिका पर विचार करने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह आरोप लगाया गया है कि जो गहने उसे उसकी भलाई के लिए उपहार में दिए गए थे उनको बैंक लॉकर में रखा गया था और अभी तक वापस नहीं किए गए हैं।

प्रतिवादियों की ओर से अधिवक्ता के.वी.अनिल कुमार और लोक अभियोजक संगीथराज एन.आर. पेश हुए।

कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब यह है कि उसकी भलाई के लिए उसे उपहार में दिए गए गहने प्रतिवादियों के नियंत्रण में एक बैंक के लॉकर में रखे गए थे। इसलिए यह माना गया कि शादी के समय दुल्हन को बिना किसी मांग के दिए गए उपहार को दहेज के रूप में नहीं माना जाएगा।

न्यायाधीश ने आगे पाया कि दहेज निषेध अधिकारी के पास नियमों के नियम 6 (xv) के तहत निर्देश पारित करने का अधिकार क्षेत्र होगा, यदि यह पाया जाता है कि चौथे प्रतिवादी को वापस किए जाने वाले गहने दहेज का गठन करते हैं।

''इस तरह के निष्कर्ष के अभाव में, दहेज निषेध अधिकारी को नियम 6 (xv) के तहत निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं होगा। इसलिए पारित किया गया आदेश कानून की नजर में उचित नहीं है और उसे रद्द किया जाता है।''

याचिकाकर्ता द्वारा यह स्वीकार करने पर कि वह चौथे प्रतिवादी को सोने के गहने सौंप देगा, और चौथे प्रतिवादी द्वारा इन गहनों को स्वीकार करने के लिए सहमति देने के बाद कोर्ट ने याचिका को अनुमति दे दी।

केस का शीर्षक- विष्णु आर. बनाम केरल राज्य व अन्य

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