लगभग 15 साल की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार नहीं कहा जा सकताः दिल्ली हाईकोर्ट ने मुस्लिम व्यक्ति को बरी करने का फैसला बरकरार रखा
दिल्ली हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक मामले में एक मुस्लिम व्यक्ति को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि लगभग 15 साल की पीड़ित बच्ची, जो उसकी पत्नी थी,के साथ शरीरिक संबंध बनाने को बलात्कार नहीं कहा जा सकता है।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें कहा गया था कि नाबालिग की गवाही के मद्देनजर पॉक्सो अधिनियम की धारा 5 (1) के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 6 के तहत व्यक्ति के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है। पीड़िता का कहना है कि दिसंबर 2014 में उसकी उससे शादी हुई थी और उसके बाद ही उनके बीच शारीरिक संबंध बने थे।
कोर्ट ने कहा,“हमने पाया कि चूंकि पीड़ित बच्ची आरोपी की पत्नी थी,जो लगभग पंद्रह वर्ष की थी, इसलिए पीड़िता के साथ प्रतिवादी के शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार नहीं कहा जा सकता है। प्रतिवादी को बरी करना उचित है।’’
पीठ ने अभियोजन पक्ष की तरफ से दायर उस आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें 15 नवंबर, 2016 को ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित फैसले के खिलाफ अपील करने की अनुमति मांगी गई थी। ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दंडनीय बलात्कार के अपराध के लिए मोहम्मद के (नाम गुप्त रखा गया है) को बरी कर दिया था।
एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि अक्टूबर और नवंबर 2014 के दौरान आरोपी व्यक्ति ने पीड़िता के (जो उसका सगा जीजा भी है) साथ बलात्कार किया।
निचली अदालत के समक्ष पीड़िता ने बताया कि दिसंबर, 2014 में वह अपनी मां, बहन और आरोपी के साथ अपनी चचेरी बहन की शादी में शामिल होने के लिए बिहार में अपने पैतृक स्थान पर गई थी। उसने बताया कि शादी में शामिल होने के बाद उसने आरोपी से शादी कर ली। पीड़िता के मुताबिक, उसके माता-पिता को आरोपी के साथ उसकी शादी के बारे में जानकारी नहीं थी।
गर्भवती होने की जानकारी होने पर पीड़िता की मां नाबालिग को लेकर थाने पहुंची और शिकायत दर्ज करा दी।
सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराए गए अपने बयान में पीड़िता ने बताया कि आरोपी ने शादी से पहले उसके साथ कभी कोई गलत काम नहीं किया था।
नाबालिग की मां ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष गवाही देते हुए कहा कि पीड़िता ने उसे बताया था कि उसने उसकी सहमति के बिना आरोपी से शादी की थी। उसने यह भी बताया कि उसने अपनी नाबालिग बेटी की बात पर भरोसा नहीं किया और उसे पुलिस स्टेशन ले गई जहां उसने शिकायत की और एफआईआर दर्ज करवाई।
पीठ ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि उसे उस व्यक्ति को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति देने का कोई आधार नहीं मिला है।
पीठ ने कहा,“ एएसजे ने सही कहा था कि बच्ची की गवाही को ध्यान में रखते हुए कि उसने दिसंबर, 2014 के महीने में प्रतिवादी से शादी की थी और उसके बाद ही उनके बीच शारीरिक संबंध बने, पॉक्सो एक्ट की धारा 5(1) के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 6 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। इसलिए प्रतिवादी को बरी करने का निर्णय उचित है।’’
केस टाइटल- एनसीटी दिल्ली राज्य सरकार बनाम मोहम्मद के