पीड़िता की जांघों के बीच किया गया पेनेट्रेटिव सेक्सुअल एक्ट IPC की धारा 375(c) के तहत परिभाषित 'बलात्कार' के समान: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि जब पीड़ित के शरीर को ऐसी सनसनी पैदा करने के लिए छेड़ा जाता है, जो पेनेट्रेशन (पेनेट्रेशन ऑफ एन ऑरफिस यानि एक छिद्र में प्रवेश) जैसी हो तो बलात्कार का अपराध आकर्षित होगा।
जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस जियाद रहमान एए की खंडपीठ ने कहा, "... हमारे मन में कोई संदेह नहीं है कि जब पीड़ित के पैरों को एक साथ जोड़कर, उसके शरीर में छेड़छाड़ की जाती है, ताकि ऐसी सनसनी पैदा हो, जो पेनेट्रेशन (पेनेट्रेशन ऑफ एन ऑरफिस यानि एक छिद्र में प्रवेश) जैसी हो तो बलात्कार का अपराध आकर्षित होता है। इस प्रकार एक साथ जोड़ी गई जांघों में पेनेट्रेशन किया जाता है तो यह निश्चित रूप से सेक्शन 375 के तहत परिभाषित "बलात्कार" के समान होगा।"
अदालत ने यह फैसला एक ऐसे मामले में दिया था, जिसमें एक नाबालिग के साथ उसके पड़ोसी ने बार-बार विभिन्न डिग्रियों का यौन उत्पीड़न किया था।
खंडपीठ दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अभियुक्त की अपील पर सुनवाई कर रही थी। उस पर POCSO एक्ट के सेक्शन 3(c) रीड/विद 5(m), सेक्शन 6, सेक्शन 9(l) (m) रीड/विद सेक्शन 10, सेक्शन 11 (i) और (iii) रीड/ विद सेक्शन 12 और IPC के सेक्शन 354, 354 A(1)(i) और (iii), 377, 375(c) रीड/विद सेक्शन 376(2) (i) के तहत दोष लगाए गए थे।
ट्रायल के बाद, उसे POCSO एक्ट के सेक्शन 11(i) रीड/विद 12, सेक्शन 9(l) (m) रीड/विद सेक्शन 10, सेक्शन 3(c) रीड/विद सेक्शन 5 (m) और सेक्शन 6, सेक्शन, IPC के सेक्शन 375(c) रीड/विद सेक्शन 376(2) (i), सेक्शन 377, सेक्शन 354, सेक्शन 354A(1) (i) के तहत दोषी पाया गया। निचली अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
तथ्य
पेट दर्द की लगातार शिकायत के कारण नाबालिग पीड़िता अपनी मां के साथ एक चिकित्सा शिविर में गई थी, जिसके बाद यह घटना सामने आई। पीड़िता ने जांच में बताया कि छह महीने पहले उसके पड़ोसी ने कई मौकों पर उसका यौन शोषण किया था।
इसके बाद पुलिस के समक्ष एक शिकायत दर्ज की गई और मामले की सुनवाई ट्रायल कोर्ट के समक्ष की गई। पेश की गई सामग्री का अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने अभियुक्त को ऊपर दिए गए अपराधों का दोषी पाया।
आरोपी ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की।
मुद्दा
विचार के लिए बेंच के समक्ष कानून का शुरुआती प्रश्न यह था कि क्या संशोधित धारा 375 में निहित "बलात्कार" शब्द योनि, यूरेथ्रा, एनस और मुंह में पिनाइल पेनेट्रेश से परे यौन हमले को शामिल करता है; मानव शरीर में ज्ञात छिद्र, जहां तक ऐसे पेनेट्रेशन संभव हो सकें।
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, आरोपित यौन कृत्य पीड़िता की जांघों के बीच आरोपी के लिंग को डालने का था।
अदालत को इस सवाल का फैसला करना था कि क्या धारा 375 (C) के तहत "ऐसी महिला के शरीर के किसी भी हिस्से में" किए गए पेनेट्रेशन, के दायरे में उसकी एक साथ जोड़ी गई जांघों के बीच किया गया पिनाइल सेक्सुअल एक्ट भी आता है; जबकि वह एक छिद्र कहलाने के योग्य नहीं है।
अवलोकन
इस पहलू पर, डिवीजन बेंच ने कहा कि प्रावधान में एक महिला के शरीर के अन्य हिस्सों में पेनेट्रेशन शामिल है और यह योनि, यूरेथ्रा या एनस तक ही सीमित नहीं है।
कोर्ट ने यह भी जोर दिया कि परिभाषा के लिए यथासंभव व्यापक आयाम पर जोर दिया गया है, ताकि बलात्कार की परिभाषा में सभी प्रकार के पेनेट्रेटिव सेक्सुअल एसॉल्ट को शामिल किया जा सके; यहां तक कि ऐसे हमले भी, जिन पर सामान्य रूप से विचार नहीं किया गया था।
बेंच ने कहा, "विधायिका की मंशा को ध्यान में रखते हुए, आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 के अधिनियमन और समय-समय पर" बलात्कार "के अपराध की अवधारणा के क्रमिक विकास के बाद, अनिवार्य निष्कर्ष यह है कि, बलात्कार की परिभाषा में, जैसा कि धारा 375 में निहित है, योनि, यूरेथ्रा, एनस या शरीर के किसी भी अन्य हिस्से, जिससे एक छिद्र की भावना या सनसनी पाने के लिए छेड़छाड़ की जा सके, सभी प्रकार के पेनेट्रेटिव सेक्सुअलएसॉल्ट शामिल किया जाएगा।"
कोर्ट ने कहा, जब एक छिद्र में प्रवेश जैसी सनसनी पैदा करने के इरादे से पीड़ित के शरीर के साथ, पैरों को एक साथ जोड़कर, छेड़छाड़ की जाती है तो बलात्कार के अपराध को आकर्षित किया जाता है। इस प्रकार एक साथ जोड़ी गई जांघों के बीच पेनेट्रेशन किया जाता है तो यह निश्चित रूप से धारा 375 के तहत परिभाषित "बलात्कार" के समान होगा।
"पीडब्ल्यू1 के साक्ष्य से यह स्थापित होता है कि, अपीलकर्ता ने बलात्कार का अपराध किया था क्योंकि उसने पीड़ित की जांघों को जोड़कर पेनेट्रेटिव सेक्सुअल कृत्य किए थे; यह यौन संतुष्टि पाने के लिए पीड़ित के शरीर में छेड़छाड़ करने का एक कार्य था, जो स्खलन में परिणत होता था"।
अदालत ने अंततः माना कि अभियोजन पक्ष पीड़ित की उम्र साबित करने के लिए कोई सबूत देने में विफल रहा, इसलिए POCSO एक्ट के प्रावधानों के तहत और IPC की धारा 376 (2) (i) के तहत भी अपराध आकर्षित नहीं होते हैं। हालांकि, अपीलकर्ता द्वारा किए गए यौन कृत्य IPC की धारा धारा 375 (c) रीड/विद 376 (1) के अपराध को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त हैं।
इस प्रकार हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता/अभियुक्त को POCSO एक्ट के सेक्शन 11(i) रीड/विद सेक्शन 12, सेक्शन 9(l)(m) रीड/विद सेक्शन 10, सेक्शन 3(c) रीड/विद 5 (m) और सेक्शन 6 के तहत दोषी नहीं ठहराते हुए अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया।
उसे IPC की धारा 376 (2) (i) और धारा 377 के तहत भी दोषी नहीं पाया गया। उसे IPC की धारा 376(1) रीड/विद सेक्शन 376 (c), सेक्शन 354 और सेक्शन 354A (1) के तहत अपराध का दोषी पाया गया है। चूंकि उसे सेशन कोर्ट ने सेक्शन 376(2) (i) और 377 के बजाय सेक्शन 376(1) रीड/विद 376(c) के तहत अपराध का दोषी पाया था, उसकी शेष प्राकृतिक जीवन के कारावास के अर्थ के साथ आजीवन कारावास की सजा को, आजीवन कारावास की सजा के रूप में संशोधित किया गया।
केस टाइटिल: संतोष बनाम केरल राज्य