उड़ीसा हाईकोर्ट ने '8 साल के बच्चे' की हत्या के लिए दोषी व्यक्ति की उम्रकैद की सज़ा डाईंग डिक्लेरेशन के आधार पर बरकरार रखी

Update: 2022-09-19 05:16 GMT

Orissa High Court 

उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में मृतक के मरने से पहले दिए बयान (Dying Declaration) के आधार पर आठ (8) साल के लड़के की हत्या के दोषी व्यक्ति के आजीवन कारावास को बरकरार रखा।

चीफ जस्टिस डॉ. एस. मुरलीधर और जस्टिस चित्तरंजन दास की खंडपीठ ने कहा,

"विसरा में ऑर्गनोफॉस्फोरस कीटनाशक जहर था। इससे यह तथ्य सामने आया कि मौत का कारण जहर दिया जाना था। मृतक के पिता के साथ पिछली दुश्मनी और झगड़े ने अपराध के लिए मकसद दिया और वह भी पीड़ित पक्ष द्वारा स्थापित किया गया। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी के आचरण पर ध्यान दिया, जो मृतक की मृत्यु के तुरंत बाद फरार हो गया था जब तक कि उसे पकड़ नहीं लिया गया। यह परिस्थितियों की श्रृंखला में एक अतिरिक्त कड़ी है।"

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि:

घटना से चार दिन पहले शिकायतकर्ता (पीडब्ल्यू एक) और आरोपी के बीच गर्मा-गर्म बहस हुई, जिसके लिए अपीलकर्ता/आरोपी ने पीडब्ल्यू एक के खिलाफ शिकायत की थी। 22 मार्च, 2009 को सुबह 9 बजे गांव की सड़क पर आकाश (मृतक और पीडब्लू एक का बेटा) अन्य बच्चों के साथ खेल रहा था। उसी समय अपीलार्थी ने आकाश को अपने घर बुलाया। घर में उसने चावल में जहर मिला दिया और आकाश को मिलावटी भोजन खिला दिया। कुछ देर बाद आरोपी ने लड़के को गोद में उठाकर पीडब्लू एक के आंगन में छोड़ दिया।

बेला प्रधान (पीडब्ल्यू तीन, पीडब्ल्यू एक की चचेरी बहन] द्वारा पूछे जाने पर आकाश ने उसे बताया कि अपीलकर्ता ने चावल के पाउडर के साथ जहर दिया, जिसके लिए उसे अपने शरीर में दर्द महसूस हुआ। इसके बाद, आकाश ने बिगड़ती हालत में पीडब्लू एक को इसका खुलासा किया। पीडब्ल्यू एक फिर आकाश को पीडब्ल्यू तीन के साथ रिक्शा में कलापत्थर अस्पताल ले गया। वहां के डॉक्टर ने उसे भुवनेश्वर अस्पताल रेफर कर दिया, लेकिन रास्ते में ही आकाश की मौत हो गई।

पीडब्ल्यू नंबर एक फिर शव को अपने गांव ले आया और मामले की सूचना पुलिस को दी। जांच पड़ताल की गई। गवाहों से पूछताछ की गई, शव की जांच की गई और गवाहों की उपस्थिति में 23 मार्च, 2009 को जांच रिपोर्ट तैयार की गई। उसी दिन, अपीलकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया।

जांच पूरी होने पर पुलिस ने अपीलकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 302 के तहत अपराध के लिए 5 जुलाई, 2009 को आरोप पत्र प्रस्तुत किया। ट्रायल कोर्ट ने उसे उक्त अपराध के लिए दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अपीलकर्ता ने उसी आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

न्यायालय का निष्कर्ष:

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य बनाम वीरपाल पर भरोसा किया गया, जिसमें मरने से पहले घोषणा के साक्ष्य मूल्य की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कई टिप्पणियां की।

कोर्ट ने कहा,

"अब इस पहलू पर क्या किसी भी पुष्ट साक्ष्य के अभाव में केवल मृत्यु-पूर्व घोषणा पर निर्भर दोषसिद्धि हो सकती है, मुन्नू राजा और अन्य (सुप्रा) और उसके बाद के मामले में इस न्यायालय के निर्णय का संबंध है। पानिबेन (श्रीमती) बनाम गुजरात राज्य, (1992) 2 एससीसी 474 के मामले में निर्णय को संदर्भित करने की आवश्यकता है। उपरोक्त निर्णयों में यह विशेष रूप से देखा गया और यह माना जाता है कि न तो कानून का नियम और न ही विवेक लागू है। इस आशय के लिए कि मरने से पहले दिए बयान पर बिना पुष्टि के कार्रवाई नहीं की जा सकती। यह देखा गया और माना गया कि यदि न्यायालय संतुष्ट है कि मरने से पहले दिया बयान सत्य और स्वैच्छिक है तो वह बिना पुष्टि के उस पर अपनी दोषसिद्धि को आधार बना सकता है।"

कोर्ट ने नोट किया कि हालांकि आरोपी नंबर तीन से व्यापक जिहर की, लेकिन उसके सबूतों ने मृतक के अतिरिक्त-न्यायिक स्वीकारोक्ति के बारे में कोई संदेह नहीं छोड़ा। यहां तक कि पीडब्ल्यू चार और पीडब्ल्यू पांच द्वारा भी इसकी पुष्टि की गई, जो असंबंधित गवाह हैं और सह-ग्रामीण हैं। पीडब्ल्यू नंबर दो ने पीडब्ल्यू नंबर तीन, चार और पांच के उपरोक्त साक्ष्य की भी पुष्टि की। इसलिए, न्यायालय ने उपरोक्त गवाहों के साक्ष्य पर भरोसा करना सुरक्षित समझा, ताकि यह माना जा सके कि परिस्थितियों की श्रृंखला में महत्वपूर्ण लिंक अर्थात मौखिक मृतक का मृत्युकालिक कथन अभियोजन द्वारा संतोषजनक सिद्ध हुआ।

कोर्ट ने आगे विसरा रिपोर्ट की जांच की, जिसमें जहर के इस्तेमाल की ओर इशारा किया गया। शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच की पिछली दुश्मनी ने अपराध का कारण बताया और घटना के बाद आरोपी के आचरण को भी प्रासंगिक माना, जिसने परिस्थितियों की श्रृंखला को पूरा किया।

तद्नुसार, निम्न न्यायालय के निर्णय को कायम रखा गया और अपील खारिज कर दी।

केस टाइटल: तुकुना @ टंकाधर स्वैन बनाम ओडिशा राज्य

केस नंबर: जेसीआरएलए नंबर 7/2011

निर्णय दिनांक: 15 सितंबर, 2022

कोरम: चीफ जस्टिस डॉ. एस. मुरलीधर और जस्टिस चित्तरंजन दास

जजमेंट राइटर: चीफ जस्टिस डॉ. एस. मुरलीधर।

अपीलकर्ता के वकील: चंदन पाणिग्रही

प्रतिवादी के लिए वकील: जनमेजय कटिकिया, अतिरिक्त सरकारी वकील

साइटेशन: लाइव लॉ (ओरी) 140/2022 

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