BREAKING | हाईकोर्ट जज जस्टिस निर्मल यादव को CBI ने किया बरी, 15 लाख रुपये नकद लेने का लगा था आरोप

चंडीगढ़ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने जस्टिस निर्मल यादव को बरी कर दिया। जस्टिस निर्मल यादव पर 2008 में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में जज के तौर पर सेवा करते हुए 15 लाख रुपये नकद प्राप्त करने का आरोप था। स्पेशल सीबीआई जज अलका मलिक ने फैसला सुनाया।
2008 में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की तत्कालीन जज जस्टिस निर्मलजीत कौर के चपरासी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी कोर्ट में 15 लाख रुपये नकद से भरा एक बैग लाया गया, जिसे बाद में जज के कहने पर पकड़ लिया गया। मामला CBI को सौंप दिया गया और अभियोजन पक्ष के अनुसार, बैग जस्टिस निर्मल यादव के आवास पर पहुंचाया जाना था। जनवरी, 2009 में CBI ने जस्टिस यादव पर मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगी; नवंबर, 2010 में हाईकोर्ट ने मंजूरी दे दी।
जस्टिस यादव ने मंजूरी के लिए CBI के अनुरोध को असफल रूप से चुनौती दी।
मार्च, 2011 में राष्ट्रपति कार्यालय ने मंजूरी को मंजूरी दे दी। इसके अनुसार, केंद्रीय एजेंसी ने आरोप पत्र दायर किया। इस दौरान, जस्टिस यादव को फरवरी, 2010 में उत्तराखंड हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया और मार्च, 2011 में वह रिटायर हो गईं।
जस्टिस यादव ने अपने खिलाफ कार्यवाही रद्द करने के निर्देश देने के लिए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का रुख किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। बाद में उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कहा कि यह बिना सबूत का मामला है और ट्रायल कोर्ट को उनके खिलाफ आरोप तय करने से रोका जाना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ और याचिका खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने की यादव की याचिका खारिज की और कार्यवाही में देरी करने की रणनीति अपनाने के लिए उनकी खिंचाई की। जस्टिस एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने संकेत दिया कि पूर्व जज ने विभिन्न अदालतों में कई याचिकाएं दायर करके 2008 के मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही में देरी करने की रणनीति अपनाई।
स्पेशल सीबीआई अदालत के जज विमल कुमार ने 2014 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 11 के तहत यादव के खिलाफ और चार अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी सहित विभिन्न धाराओं के तहत आरोप तय किए। मुकदमे में हालांकि अभियोजन पक्ष ने 84 गवाहों का हवाला दिया, लेकिन केवल 69 की ही जांच की बात कही गई।
इसके बाद इस साल फरवरी में हाईकोर्ट ने केंद्रीय एजेंसी को 10 गवाहों से फिर से पूछताछ करने की अनुमति दी और ट्रायल कोर्ट से यह सुनिश्चित करने को कहा कि अनावश्यक स्थगन न दिया जाए।
मामले को गुरुवार (27 मार्च) को फैसले के लिए सुरक्षित रखा गया था।