धारा 23 के तहत आवेदन के बिना दायर अतिरिक्त जवाबी दावों पर विचार करने से इनकार करने वाला मध्यस्थ न्यायाधिकरण का आदेश 'अंतरिम अवॉर्ड' नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2023-07-08 11:12 GMT

Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि अधिनियम की धारा 23 के तहत कोई आवेदन किए बिना दायर किए गए अतिरिक्त प्रति-दावों पर विचार करने से इनकार करने वाला मध्यस्थ न्यायाधिकरण का आदेश 'अंतरिम अवॉर्ड' नहीं है, इसलिए, इसे अधिनियम की धारा 34 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती है।

जस्टिस नजमी वजीरी और जस्टिस सुधीर कुमार जैन की पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण की अपेक्षित अनुमति/अधिकार के बिना दायर किए गए अतिरिक्त जवाबी दावों पर विचार करने से इनकार करने वाला न्यायाधिकरण का आदेश अंतरिम अवॉर्ड नहीं है क्योंकि क्योंकि यह न तो पार्टियों के बीच किसी भी मुद्दे को निर्णायक रूप से सुलझाता है ताकि पुनर्निर्णय प्रभाव हो और न ही अधिनियम की धारा 23 के तहत एक आवेदन पर "अधिकार" या अनुमति मांगकर प्रति-दावे को फिर से दायर करने के पीड़ित पक्ष के अधिकार को रोकता है।

तथ्य

यह अपील मध्यस्थ न्यायाधिकरण के 26.08.2020 के आदेश के खिलाफ प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत धारा 34 याचिका में पारित एकल न्यायाधीश के 28.02.2022 के आदेश से उत्पन्न हुई, जिसके द्वारा न्यायाधिकरण ने प्रतिवादी के प्रति-दावों पर विचार करने से इनकार कर दिया, क्योकि यह बिना किसी अधिकार के दायर किया गया है।

एकल पीठ के समक्ष, अपीलकर्ता ने इस आधार पर याचिका की विचारणीयता पर आपत्ति जताई कि ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश केवल एक प्रक्रियात्मक आदेश था, न कि अंतरिम अवॉर्ड जिसे अधिनियम की धारा 34 के तहत सीधे चुनौती दी जा सकती है।

एकल पीठ ने माना कि प्रतिदावे पर विचार करने से इनकार करने वाला ट्रिब्यूनल का आदेश अधिनियम की धारा 31 के अर्थ में एक अंतरिम आदेश था, इसलिए, इसे अधिनियम की धारा 34 के तहत सीधे चुनौती दी जा सकती है और उसने आदेश को रद्द कर दिया। न्यायाधिकरण ने इसे प्रतिवादी के प्रतिदावों को उनकी योग्यता के आधार पर तय करने का निर्देश दिया।

एकल पीठ के फैसले से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने अधिनियम की धारा 37 के तहत अपील दायर की।

विवाद

अपीलकर्ता ने मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेश का समर्थन करने और आक्षेपित आदेश को चुनौती देने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए-

-मध्यस्थता वर्ष 2015 में शुरू हुई और धारा 23(4) में प्रावधान है कि प्रतिदावा सहित यदि कोई दलील है तो उसे 6 महीने के भीतर दायर और पूरा किया जाना चाहिए, हालांकि, प्रतिवादी ने बिना किसी पूर्व सूचना के केवल देर से प्रतिदावा दायर किया।

-प्रतिवादी ने ट्रिब्यूनल द्वारा तय की गई समयसीमा का पालन नहीं किया।

-प्रतिदावे को प्राथमिकता देने के लिए ट्रिब्यूनल की अनुमति मांगने के लिए अधिनियम की धारा 23 के तहत बिना किसी आवेदन के प्रतिदावा दायर किया गया था।

-बचाव के बयान में सेल्फ सर्विंग स्टेटमेंट के अलावा किसी भी प्रतिदावे का कोई उल्लेख नहीं था।

-अतिरिक्त प्रतिदावे की अनुमति देने से इनकार करने वाला ट्रिब्यूनल का आदेश केवल एक प्रक्रियात्मक आदेश है, न कि विवाद के गुण-दोष पर जो पार्टियों के बीच किसी भी मुद्दे का निपटारा करता है, इसलिए, इसे 'अंतरिम अवॉर्ड' नहीं कहा जा सकता है।

प्रतिवादी ने निम्नलिखित तर्क देकर उपरोक्त प्रस्तुतियों का प्रतिवाद किया-

- ट्रिब्यूनल के आदेश ने प्रतिवादी के जवाबी दावे दायर करने के अधिकार को बंद कर दिया था, इसलिए, इसने अंततः पार्टियों के बीच विवाद का निर्धारण किया था, इसलिए, इसे अधिनियम की धारा 34 के तहत सीधे चुनौती दी जा सकती थी।

-प्रतिदावा दायर करने में किसी पक्ष के बहुमूल्य अधिकार को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।

-जहां तक अधिनियम की धारा 23 में प्रतिदावा दाखिल करने का प्रावधान है, प्रतिवादी के प्रतिदावा करने के अधिकार को कम करने का कोई कारण नहीं है।

निष्कर्ष

कोर्ट ने पाया कि ट्रिब्यूनल ने 31.05.2015 तक पार्टियों को अपना दावा और प्रतिदावा दायर करने का अधिकार सुरक्षित रखा था और अनुमत समय अवधि में प्रतिवादी द्वारा कोई प्रतिदावा नहीं किया गया था। आगे यह देखा गया कि ट्रिब्यूनल ने प्रतिवादी के प्रति-दावों को 12.2 करोड़ रुपये तक अनुमति दी क्योंकि यह एकमात्र दावा था जो उसने अपने धारा 17 आवेदन, जो 04.02.2019 का था, में मांगा था। हालांकि, 1282 करोड़ रुपये के शेष प्रतिदावा का जिक्र पहले कभी नहीं किया गया।

न्यायालय ने पाया कि ट्रिब्यूनल ने अनुमत प्रतिदावों के साथ दो अतिरिक्त दावों को शामिल करके प्रतिवादी को अपने मूल प्रतिदावे में भौतिक रूप से बदलाव करने की अनुमति देने से इनकार करने में सही किया था।

आगे यह देखा गया कि ट्रिब्यूनल ने प्रतिदावों का फैसला उनकी योग्यता के आधार पर नहीं किया था, बल्कि आवश्यक अधिकार के बिना दायर किए जाने के कारण उन पर फैसला देने से इनकार कर दिया था।

इसमें यह भी उल्लेख किया गया कि अतिरिक्त प्रतिदावा दायर करने के लिए ट्रिब्यूनल से अधिकार प्राप्त करने के लिए प्रतिवादी हमेशा धारा 23 के तहत एक आवेदन कर सकता है।

न्यायालय ने माना कि अधिनियम की धारा 23 के तहत कोई आवेदन किए बिना दायर अतिरिक्त जवाबी दावों पर विचार करने से इनकार करने वाला मध्यस्थ न्यायाधिकरण का आदेश 'अंतरिम अवॉर्ड' नहीं है, इसलिए, इसे अधिनियम की धारा 34 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती है।

कोर्ट ने माना कि ट्रिब्यूनल की अपेक्षित अनुमति/अधिकार के बिना दायर अतिरिक्त जवाबी दावों पर विचार करने से इनकार करने वाला ट्रिब्यूनल का आदेश एक अंतरिम अवॉर्ड नहीं है क्योंकि यह न तो पार्टियों के बीच किसी भी मुद्दे को निर्णायक रूप से सुलझाता है ताकि पुनर्निर्णय प्रभाव हो और न ही न ही अधिनियम की धारा 23 के तहत किसी आवेदन पर "अधिकार" या अनुमति मांगकर प्रति-दावे को फिर से दाखिल करने के पीड़ित पक्ष के अधिकार को बंद करता है।

तदनुसार, न्यायालय ने अपील की अनुमति दी और प्रतिवादी को अपने दो प्रति-दावों को रिकॉर्ड पर लेने के लिए ट्रिब्यूनल के समक्ष आवेदन करने की अनुमति दी।

केस डिटेल: मेसर्स अभिजीत अंगुल संभलपुर टोल रोड लिमिटेड बनाम NHAI, FAO(OS)(COMM) 88/2022


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