धारा 50 का अनुपालन न करना तलाशी और दोषसिद्धि दोनों को खराब करता है, गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एनडीपीएस मामले में दोषी को बरी किया
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने मंगलवार को एनडीपीएस एक्ट के तहत एक आरोपी की सजा को इस आधार पर खारिज कर दिया कि आरोपी की तलाशी के दरमियान एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 का पालन नहीं किया गया था।
जस्टिस पार्थिव ज्योति सैकिया की एकल न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा ले जाए गए बैग से नशीली दवाओं की बरामदगी पर एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 लागू होगी, यदि इस तरह की तलाशी के दरमियान संदिग्ध के शरीर की भी तलाशी ली जाती है।
अदालत ने कहा,
"मामले में, इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि अपीलकर्ता की तलाशी ली गई थी। इसलिए, तलाशी के दौरान एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 का पालन करने में विफलता, जब्ती और परिणामी सजा को खराब करती है।"
29 अगस्त, 2011 को सुबह लगभग 9:45 बजे, अपीलकर्ता और एक किशोर आरोपी की तलाशी ली गई और कथित तौर पर उनके कब्जे से 190 ग्राम ब्राउन शुगर बरामद की गई।
ट्रायल कोर्ट ने 27 अप्रैल, 2021 को अपीलकर्ता-आरोपी को एनडीपीएस एक्ट की धारा 20 (बी) (ii) (बी) के तहत दोषी ठहराया और उसे सात साल के कारावास और 70,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।
अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष आक्षेपित निर्णय और आदेश का विरोध किया।
अदालत ने नोट किया कि गवाह पीडब्लू-1, पीडब्लू-2 और पीडब्लू-3 - सभी सीमा शुल्क अधिकारी, घटनास्थल पर मौजूद थे और अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन किया कि अपीलकर्ता से मादक पदार्थ बरामद किया गया था।
"दूसरी ओर, पीडब्लू-9 (व्यवसायी) ने कहा है कि मादक पदार्थ वास्तव में सह-आरोपी (किशोर) के कब्जे से बरामद किया गया था, अपीलकर्ता से नहीं। यहां तक कि गवाह पीडब्लू-3 ने भी अपने साक्ष्य में कहा है कि उसने यह नहीं पता कि वास्तव में किसके कब्जे से नशीला पदार्थ बरामद किया गया है।"
अदालत ने कहा कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 में कहा गया है कि व्यक्तिगत तलाशी से पहले एक आरोपी को मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी के सामने लाए जाने के अपने अधिकार के बारे में अवगत कराया जाना चाहिए। कोर्ट ने विजयसिंह चंदूभा जडेजा बनाम गुजरात राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।
जस्टिस सैकिया ने कहा कि अपीलकर्ता से मादक दवाओं की बरामदगी के संबंध में अभियोजन पक्ष के साक्ष्य, विश्वास को प्रेरित करने में विफल रहे और एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के गैर-अनुपालन ने तलाशी और उसके बाद की सजा को खराब कर दिया।
तदनुसार, अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता को बरी कर दिया।
केस टाइटल: अब्दुल हई बनाम असम राज्य और 2 अन्य।
कोरम: जस्टिस पार्थिव ज्योति सैकिया