[NEET] प्राइवेट कॉलेजों में कुछ विशेषाधिकार प्राप्त और उच्च संपर्क वाले उम्मीदवारों को पिछले दरवाजे से एडमिशन दिया गया: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2023-10-09 05:34 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि कम अंक वाले कुछ उम्मीदवारों को उत्तर प्रदेश राज्य के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में पिछले दरवाजे से एडमिशन दिया गया, जबकि विभिन्न राज्यों से संबंधित याचिकाकर्ताओं को उनके निवास स्थान की कमी के आधार पर काउंसलिंग में भाग लेने का अवसर देने से इनकार कर दिया गया।

ग्यारह याचिकाकर्ता, यूपी राज्य के गैर-निवासी/गैर-निवास, डेंटल कॉलेजों में नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा आयोजित नेशनल एलीजिबल एंड एंट्रेस्ट टेस्ट में उपस्थित हुए और 108-132 के बीच अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए। याचिकाकर्ता ओबीसी/एससी वर्ग से हैं, जिसके लिए कट-ऑफ 107 घोषित किया गया है, जबकि सामान्य वर्ग के लिए कट-ऑफ 138 है।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने प्रस्तुत किया कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों के साथ-साथ प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में शैक्षणिक सत्र 2023-24 के लिए एमबीबीएस/बीडीएस कोर्स के लिए काउंसलिंग में उपस्थित होने वाले उम्मीदवारों के लिए दिशानिर्देशों/नीति के अनुसार, काउंसलिंग के बाद मॉप-अप राउंड होता है। खंड 2 (2) में पात्रता मानदंड में प्रावधान है कि सभी सरकारी मेडिकल/डेंटल कॉलेजों/मेडिकल यूनिवर्सिटी/अल्पसंख्यक संस्थानों में एमबीबीएस/बीडीएस कोर्स में प्रवेश के लिए केवल यूपी का मूल निवासी ही आवेदन कर सकता है। हालांकि, प्राइवेट मेडिकल/डेंटल कॉलेजों में एडमिशन के लिए खंड 2(4) उत्तर प्रदेश राज्य का डोमिसाइल आवश्यक मानदंड नहीं है। इसके अलावा, खंड 7 में विशेष रूप से प्रावधान है कि प्राइवेट मेडिकल/डेंटल कॉलेजों में किसी भी प्रकार का कोई आरक्षण नहीं होगा।

तर्क दिया गया कि सत्र 2023-24 के लिए काउंसलिंग डायरेक्टर जनरल, मेडिकल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग, उत्तर प्रदेश द्वारा केंद्रीय स्तर पर आयोजित की गई। जब याचिकाकर्ताओं ने अपनी श्रेणियों में काउंसलिंग के लिए आवेदन करने की कोशिश की तो काउंसलिंग के पहले और दूसरे दौर के साथ-साथ एमओपी-राउंड और स्ट्रे वैकेंसी राउंड के लिए "पात्र नहीं" दिखाया गया। हालांकि, एडमिशन उन अभ्यर्थियों को दिया गया, जिन्होंने याचिकाकर्ताओं की तुलना में कम अंक प्राप्त किए और उत्तर प्रदेश राज्य के मूल निवासी हैं।

इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि शैक्षणिक सत्र 2021-22 के बाद से कोई नीति परिवर्तन नहीं हुआ, जहां विभिन्न डोमिसाइल वाले उम्मीदवारों को एडमिशन दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि शैक्षणिक सत्र 2023-24 के लिए मानदंडों में बदलाव मनमाना और नीति/दिशानिर्देशों के खिलाफ है। अंत में यह बताया गया कि एमबीबीएस/बीडीएस कोर्स में 780 सीटें अभी भी खाली पड़ी हैं और याचिकाकर्ता उक्त सीटों पर एडमिशन के लिए पात्र हैं।

राज्य के वकील द्वारा प्राप्त निर्देशों के संबंध में न्यायालय ने कहा कि एक तरफ डायरेक्टर जनरल, मेडिकल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग, उत्तर प्रदेश ने स्वीकार किया कि यूपी राज्य में प्राइवेट मेडिकल/डेंटल कॉलेजों में कोई आरक्षण नहीं है और सीटें अनारक्षित (खुली) हैं, जबकि दूसरी ओर, संघ द्वारा सरकारी आदेश का आश्रय लिया गया, जिसमें NEET (यूजी) -2023 में ओबीसी / एससी उम्मीदवारों के लिए अंकों में न्यूनतम कटौती 107 निर्धारित की गई है, जो ओबीसी/एससी कटेगरी और यूपी राज्य का डोमिसाइल होने से संबंधित उम्मीदवारों को एडमिशन देने का औचित्य साबित करने के लिए लिया गया।

कोर्ट ने कहा,

“जब प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में कोई आरक्षण नहीं है तो बिंदु संख्या 2, 3 और 4 के स्टूडेंट, जिनके याचिकाकर्ताओं की तुलना में बहुत कम अंक हैं, उन्हें प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में कैसे एडमिशन दिया जा सकता है। रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि कुछ विशेषाधिकार प्राप्त और उच्च संपर्क वाले उम्मीदवारों को पिछले दरवाजे से एडमिशन दिया गया।''

जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने राज्य के वकील द्वारा प्राप्त निर्देशों में विसंगतियों और विरोधाभासों को ध्यान में रखते हुए प्रतिवादी अधिकारियों को चल रही काउंसलिंग में 11 ग्रेजुएट सीटों को भरने से रोक दिया।

यूपी राज्य को पक्षकार बनाते हुए याचिका में प्रमुख सचिव, मेडिकल स्वास्थ्य और शिक्षा के माध्यम से न्यायालय ने निर्देश दिया कि प्रमुख सचिव, मेडिकल स्वास्थ्य और शिक्षा और डायरेक्टर जनरल, मेडिकल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग, उत्तर प्रदेश लखनऊ द्वारा व्यक्तिगत हलफनामा दायर किया जाए, जिसमें बताया जाए कि ओबीसी/एससी उम्मीदवारों के साथ कैसे व्यवहार किया जाएगा। 120, 114 और 125 अंक प्राप्त करने वालों को प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन दिया गया, जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य के बाहर के अभ्यर्थियों के लिए आरक्षण लागू नहीं है। वहीं, जिनके अंक याचिकाकर्ताओं से अधिक हैं, उनको परामर्श में भाग लेने की अनुमति न देने का क्या कारण है?"

हालांकि, जब बुधवार को मामले की सुनवाई हुई तो कोर्ट ने व्यक्तिगत हलफनामे के माध्यम से दी गई अधूरी जानकारी पर गंभीर नाराजगी व्यक्त की। तदनुसार, न्यायालय ने राज्य के वकीलों को बेहतर निर्देश प्राप्त करने के लिए समय देते हुए मामले को स्थगित कर दिया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से ऋषि उपाध्याय की सहायता से वकील निपुण सिंह उपस्थित हुए। राज्य की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल उपस्थित हुए।

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