[NDPS Act] नमूने मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में लिए जाएंगे, केवल अदालत के समक्ष पेश करना एक्ट की धारा 52ए को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में इस बात पर जोर दिया कि नारकोटिक्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम (NDPS Act) की धारा 52 (ए) के अनुसार, नमूने मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में लिए जाने चाहिए और केवल जब्त करने के बाद अदालत के समक्ष नमूने पेश करना पर्याप्त नहीं है।
जस्टिस पी धनबल ने इस प्रकार अधिनियम के तहत एक व्यक्ति की दोषसिद्धि रद्द कर दी, क्योंकि अभियोजन एजेंसी एक्ट के तहत और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करने में विफल रही है।
अदलात ने कहा,
“...यह स्पष्ट है कि नमूने मजिस्ट्रेट की उपस्थिति और पर्यवेक्षण में लिए जाने चाहिए और पूरी प्रक्रिया को उनके द्वारा सही होने के लिए प्रमाणित किया जाना चाहिए। इसलिए पुलिस द्वारा जब्त किए गए नमूनों को अदालत के समक्ष पेश करना NDPS Act की धारा 52 (ए) की शर्तों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।''
अदालत मदुरै में NDPS Act मामलों के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ उगनचंद कुमावत की अपील पर सुनवाई कर रही, जिसमें उन्हें अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया। उन्हें 10 साल के कठोर कारावास और एक लाख रुपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई गई।
कुमावत के खिलाफ मामला यह है कि गुप्त सूचना मिलने पर जब वाहन निरीक्षण किया गया तो 30 किलोग्राम गांजा से भरे दो पॉलिथीन बैग जब्त किए गए। नमूने निकाले गए और कुमावत को पुलिस स्टेशन ले जाया गया, एफआईआर दर्ज की गई और बाद में उन्हें दोषी ठहराया गया।
अपील पर यह तर्क दिया गया कि ट्रायल कोर्ट का फैसला कानून, सबूतों के वजन और मामले की संभावनाओं के खिलाफ है। यह तर्क दिया गया कि संपूर्ण तलाशी और जब्ती की कार्यवाही संदेह से परे साबित नहीं हुई और अभियोजन पक्ष के गवाहों के बीच विरोधाभास है।
यह तर्क दिया गया कि कुमावत को तमिल नहीं आती है, लेकिन पूरे साक्ष्य को अनुवादक नियुक्त किए बिना दर्ज किया गया। इस प्रकार ट्रायल कोर्ट ने निष्पक्ष सुनवाई के उनके अधिकार को अस्वीकार कर दिया। यह भी प्रस्तुत किया गया कि NDPS Act की धारा 50 और 52 (ए) और 57 के तहत प्रक्रियाओं का अनुपालन नहीं किया गया और जिस वाहन से प्रतिबंधित सामग्री जब्त की गई, उसके स्वामित्व की भी पहचान नहीं की गई।
दूसरी ओर, अतिरिक्त लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि अनिवार्य प्रक्रियाओं से कोई विचलन नहीं हुआ। यह प्रस्तुत किया गया कि अभियोजन पक्ष ने स्पष्ट रूप से कुमावत के खिलाफ मामला स्थापित किया। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि चूंकि वाहन कुमावत के नाम पर पंजीकृत नहीं है, इसलिए उन्हें NDPS Act की धारा 25 के तहत अपराध के लिए बरी कर दिया गया।
NDPS Act की धारा 50 के संबंध में, जिसके लिए निकटतम राजपत्रित अधिकारी या निकटतम मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में तलाशी की आवश्यकता होती है, अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में पुलिस ने कुमावत की तलाशी नहीं ली और केवल वाहन की तलाशी ली। इस प्रकार एक्ट की धारा 50 में विचारित प्रक्रिया लागू नहीं है।
अनुवादक की अनुपस्थिति के संबंध में अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने आरोप तय करते समय इस आशय का समर्थन किया कि हालांकि कोई विशेष अनुवादक नहीं है, लेकिन आरोपी को हिंदी जानने वाले व्यक्ति द्वारा आरोपों के बारे में समझाया गया। अदालत ने यह भी कहा कि धारा 57 के तहत प्रक्रियाओं का भी पालन किया गया, क्योंकि गिरफ्तारी और सामग्री की बरामदगी के बाद रिपोर्ट सीनियर अधिकारी को भेजी गई।
हालांकि, अदालत इस बात से सहमत है कि एक्ट की धारा 52 (ए) के तहत प्रक्रियाओं का अनुपालन नहीं किया गया। अदालत ने यह भी देखा कि अभियोजन पक्ष कब्जे को साबित करने में विफल रहा है। इस प्रकार अधिनियम की धारा 35 और 54 के तहत अनुमान लागू नहीं होता है।
इस प्रकार, यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा, अदालत ने दोषसिद्धि के आदेश रद्द कर दिया और आरोपी को बरी कर दिया।
अपीलकर्ता के लिए वकील: ना.मणिमारन के लिए करुप्पुसामी पांडियन और प्रतिवादी के वकील: एस.रवि अतिरिक्त लोक अभियोजक
केस टाइटल: एन.उगनचंद कुमावत बनाम पुलिस इंस्पेक्टर
केस नंबर: आपराधिक अपील (एमडी) नंबर 551/2021
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