'तमिलनाडु बाल अधिकार आयोग की ओर से केवल सम्‍मन जारी होना रिट याचिका का कारण नहीं हो सकता': मद्रास हाईकोर्ट ने ईशा फाउंडेशन को राहत देने से इनकार किया

Update: 2021-11-25 09:26 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी स्‍थ‌ित ईशा योग केंद्र द्वारा संचालित स्कूलों में कथित बाल अधिकारों के उल्लंघन पर तमिलनाडु बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा जारी सम्मन को रद्द करने से इनकार कर दिया। जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत आयोग द्वारा केवल सम्मन जारी करने से याचिकाकर्ता को वर्तमान रिट याचिका दायर करने का कारण नहीं मिलेगा।

कोर्ट ने नोट किया कि इस तरह की रिट याचिका तभी मान्य होगी जब सम्मन किसी ऐसे प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया हो जो सक्षम न हो और न ही उसके पास ऐसा करने का अधिकार क्षेत्र हो। अन्यथा, याचिकाकर्ता को यह दिखाना होगा कि सम्मन दुर्भावना से जारी किया गया था और यह स्थापित करना चाहिए कि अपनी आपत्तियां दर्ज करके कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।

आयोग द्वारा बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 14(1) के तहत दर्ज स्वत: संज्ञान शिकायत पर , अदालत ने कहा, "आयोग को प्रदान की गई स्वतः संज्ञान शक्तियां यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि शैक्षणिक संस्थान शिक्षा पैटर्न की मान्यता प्राप्त योजना के तहत काम करते हैं और बच्चों के अधिकारों के किसी भी उल्लंघन या अतिक्रमण की स्थिति में कार्रवाई आसन्न है और इसलिए, अधिनियम के प्रावधानों के तहत आयोग द्वारा केवल सम्मन जारी करना याचिकाकर्ता को वर्तमान रिट याचिका दायर करने का कारण प्रदान नहीं करेगा।"

अदालत ने कहा कि ईशा योग केंद्र को आयोग द्वारा जारी सम्मन को रद्द करने के लिए जांच स्तर पर ही हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने का विकल्प नहीं चुनना चाहिए था। बल्कि ईशा योग केंद्र आयोग के समक्ष ही अपने ऊपर लगे आरोपों का बचाव कर सकता था और अपना पक्ष रख सकता था।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि आयोग ने प्रारंभिक चरण में ही मुद्दों को पूर्वनिर्धारित कर दिया था और ईशा फाउंडेशन की दलीलों को खुले दिमाग से सुनने के लिए अनिच्छुक था।

अदालत ने जिसके बाद आयोग को याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान करने और स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से जांच करने का आदेश दिया।

कोर्ट ने कहा, "प्रतिवादी को निर्देश दिया जाता है कि वह याचिकाकर्ता को नए सिरे से सम्मन जारी करे, तारीख और समय तय करे, रिट याचिकाकर्ता को पेश होने और दस्तावेजों के साथ अपनी स्पष्टीकरण/आपत्तियां, यदि कोई हो, उसे आदेश की प्राप्ति की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर प्रस्तुत करे।..."

ईशा योग केंद्र भी न्यायालय के आदेश के अनुसार आयोग से सम्मन प्राप्त होने के एक सप्ताह के भीतर अपनी आपत्तियां प्रस्तुत करें। इसके अलावा, आयोग को अदालत ने सम्मन जारी होने के आठ सप्ताह के भीतर कार्यवाही को निपटाने के लिए कहा है।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता के अनुसार, ईशा फाउंडेशन के प्रमुख सद्गुरु जग्गी वासुदेव हैं। फाउंडेशन ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल चलाता है। इसने अपने स्कूल दत्तक ग्रहण कार्यक्रम के तहत कई सरकारी स्कूलों को भी गोद लिया है। वकील एएम अमृता गणेश ने कहा कि यह शिक्षा की गुरुकुल प्रणाली का पालन करके वैदिक ज्ञान प्रदान करता है।

मामले में वकीन ने प्रस्तुत किया, सम्मन में निर्दिष्ट दिन पर प्रशासक ने प्रासंगिक दस्तावेजों के साथ आयोग से संपर्क किया था, लेकिन याचिकाकर्ता को देरी के कारण नहीं सुना गया। राज्य के प्रतिवादी वकील, एडवोकेट सी जय प्रकाश ने तर्क दिया कि आयोग जब भी उचित समझे, जांच करने के लिए स्वतंत्र है और फाउंडेशन को कानून के अनुसार अपना बचाव प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।

मौजूदा मामले में आयोग ने सितंबर 2016 में सम्मन जारी किया था। आयोग ने अधिनियम की धारा 13 (1) (जे), (के) के उल्लंघन का हवाला दिया था, जो जांच शुरू करने और बाल अधिकार से वंचित करने, बच्चों केसंरक्षण और विकास के लिए कानूनों को लागू न करने और नीतिगत निर्णयों/दिशानिर्देशों आदि का पालन न करने से संबंधित है।

केस शीर्षक: प्रशासक, ईशा योग केंद्र बनाम तमिलनाडु बाल अधिकार संरक्षण आयोग

मामला संख्या: WP No.35102 of 2016 और WMP No.30255 2016

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