केवल यह तथ्य कि एफआईआर प्रतिवाद के रूप में दर्ज की गई, धारा 482 सीआरपीसी के तहत रद्द करने का आधार नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2022-02-15 05:25 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि केवल यह तथ्य कि आरोपी के खिलाफ एफआईआर प्रतिवाद (counterblast) के रूप में दर्ज की गई थी, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। जांच के बाद ही यह पता किया जा सकता है।

जस्टिस चीकाती मानवेंद्रनाथ राय ने कहा,

"आरोप झूठे हैं या नहीं और रिपोर्ट वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज की गई रिपोर्ट के प्रतिवाद के रूप में दर्ज की गई है या नहीं, यह जांच के दरमियान जांच अधिकारी द्वारा पता लगाए जाने का विषय है। इसलिए, इस स्तर पर एफआईआर को रद्द करने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत इस न्यायालय के हस्तक्षेप का वैध कानूनी आधार नहीं हैं।"

मौजूदा मामले में एफआईआर रद्द कराने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आपराधिक याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता पर धारा 341 (गलत तरीके से रोकना), 323, (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) 324 (खतरनाक हथियारों या साधनों से चोट पहुंचाना), 354 (महिला पर शील भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग), 506 (आपराधिक धमकी) सहपठित धारा 34 आईपीसी, के तहत मामला दर्ज किया गया था।

वास्तविक शिकायतकर्ता, जो दूसरा प्रतिवादी है, उसने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि याचिकाकर्ताओं ने उस पर हमला किया था और उसे पीटा था और उसकी पत्नी का शील भंग किया था। एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच की जा रही थी।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने वास्तविक शिकायतकर्ता के खिलाफ पुलिस में एक रिपोर्ट दर्ज कराई थी और उसके खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई थी। जिसके बाद वास्तविक शिकायतकर्ता ने एक काउंटरब्लास्ट के रूप में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ झूठे आरोपों के साथ 30 दिनों की देरी के साथ वर्तमान रिपोर्ट दर्ज की। इस आधार पर याचिकाकर्ता के वकील ने एफआईआर रद्द करने की मांग की थी।

अतिरिक्त लोक अभियोजक ने आपराधिक याचिका का विरोध किया और प्रस्तुत किया कि एफआईआर में स्पष्ट आरोप हैं कि जिस तरह से याचिकाकर्ताओं ने शिकायतकर्ता को पीटा है और उसकी पत्नी का शील भंग किया है, सच्चाई का पता लगाने के लिए मामले की जांच की जरूरत थी। इस आधार पर अधिवक्ता ने आपराधिक याचिका खारिज करने की प्रार्थना की थी।

अदालत ने पाया कि एफआईआर की सामग्री याचिकाकर्ता के खिलाफ स्पष्ट आरोप लगाती है और ये आरोप प्रथम दृष्टया आईपीसी की धारा 341, 323, 324, 506 सहप‌ठित धारा 34 के तहत दंडनीय अपराध हैं, जिसके लिए एफआईआर दर्ज की गई थी।

कोर्ट ने कहा,

"आरोप झूठे हैं या नहीं और क्या रिपोर्ट वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज की गई रिपोर्ट के प्रतिवाद के रूप में दर्ज की गई थी या नहीं, यह जांच अधिकारी द्वारा जांच के दौरान पता लगाया जाना है।"

इस तरह कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

केस शीर्षक: श्रीमती एच मल्लेश्वरम्मा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य।

सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (एपी) 17

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