18 साल की उम्र तक अमान्य घोषित ना हो तो नाबालिग ‌का विवाह वैध हो जाता है, हिंदू विवाह अधिनियम के धारा 13B के तहत भंग करने की अनुमति: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2021-09-25 11:06 GMT

Punjab & Haryana High Court

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि किसी लड़की ने 18 वर्ष की उम्र से पहले शादी की है तो भी वह तलाक की डिक्री के जरिए अलग होने की मांग कर सकती है, यदि वयस्क होने तक उसके विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) के तहत शून्य घोषित नहीं किया गया था।

जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस अरुंग मोंगा की खंडपीठ ने कहा कि इस प्रकार के विवाह को एचएमए की धारा 13(2)(iv) के तहत अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्रावधान उस लड़की पर लागू होता है, जिसकी शादी पन्द्रह वर्ष की उम्र से पहले हुई है।

कोर्ट ने कहा,

" यदि 18 साल से कम उम्र की लड़की या 21 साल से कम उम्र के लड़के का विवाह हुआ है तो यह शून्य विवाह नहीं होगा बल्कि शून्य करणीय विवाह होगा, जो इस प्रकार के "बच्चे", बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की धारा 2 (ए) के अर्थ के भीतर, की ओर से कोई कदम नहीं उठाए जाने पर वैध हो जाएगा।"

कोर्ट ने आगे जोड़ा,

"धारा 13 (2) (iv) के तहत शून्यता के लिए एक याचिका दायर की जा सकती है, यदि पत्नी की शादी 15 साल की उम्र में हो गई थी और वह 18 साल की उम्र से पहले शादी के विघटन के लिए याचिका दायर कर सकती थी। "

पृष्ठभूमि

पार्टियों ने हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार विवाह किया था। उस समय पति की उम्र 23 साल और पत्नी की उम्र 17 साल थी। वे एक साथ रहते थे और ग्यारह साल तक वैवाहिक जीवनन में रहे और उन्हें एक बच्चा हुआ।

ग्यारह वर्षों के बाद उन्होंने पारिवारिक न्यायालय के समक्ष आपसी सहमति से तलाक की डिक्री के माध्यम से विवाह के विघटन के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 बी के तहत एक संयुक्त याचिका दायर की। हालांकि, फैमिली कोर्ट ने उनकी संयुक्त याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि शादी के समय पत्नी की उम्र 18 साल से कम होने के कारण उनका विवाह वैध नहीं था और इसलिए, उन्हें हिंदू विवाह अध‌िनियम की धारा 13 (2) (iv) के अनुसार विवाह को रद्द करने की आवश्यकता थी। कोर्ट ने प्रेमा कुमारी बनाम एम पलामी (2013) पर भरोसा किया।

परिणाम

हाईकोर्ट ने कहा कि उक्त निर्णय मौजूदा मामले पर लागू नहीं होता है, क्योंकि धारा 13 (2) (iv) केवल तभी लागू की जा सकती है, जब पत्नी 15 वर्ष की हो, जब‌कि मौजूदा मामला ऐसा नहीं है। यह देखते हुए कि प्रतिवादी-पत्नी ने 2010 में ही 18 वर्ष की आयु पार कर ली थी, हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया।

हाईकोर्ट ने कोर्ट ऑन इट्स मोशन (लज्जा देवी) वर्सेस राज्य (2012) का संदर्भ दिया, जहां दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 (iii), 11 और 12 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की धारा 2 और 3 का उल्लेख करते हुए में कहा है कि यदि 18 वर्ष से कम उम्र की महिला या 21 वर्ष से कम उम्र के पुरुष का विवाह शून्य विवाह नहीं होगा, लेकिन शून्य करणीय विवाह होगा, जो बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की धारा 2(ए) के तहत इस प्रकार के "बच्चे" द्वारा इस विवाह को अमान्य घोषित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाने पर वैध हो जाएगा।

कोर्ट ने नोट किया,

"दोनों पक्षों ने एक साथ रहना जारी रखा और 2009 से 2017 तक पति-पत्नी के रूप में साथ रहे। प्रतिवादी-पत्नी ने अपनी शादी को रद्द करने के लिए याचिका दायर करने का विकल्प नहीं चुना। इसलिए, सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए जब उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी के तहत एक याचिका दायर की, प्रतिवादी-पत्नी बालिग थी और विवाह दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ (लज्जा देवी) द्वारा की गई टिप्पणी के अनुसार वैध था।"

कोर्ट ने जितेंद्र कुमार शर्मा बनाम राज्य और अन्य (2010) और टी. शिवकुमार बनाम पुलिस निरीक्षक, तिरुवल्लूर टाउन पुलिस स्टेशन और अन्य (2012) का भी हवाला दिया। मौजूदा मामले में कोर्ट ने कहा कि सुलह के लिए पार्टियों और दोस्तों द्वारा किए गए हर संभव प्रयास विफल रहे। पार्टियों ने आपसी सहमति से अपनी शादी को खत्म करने का फैसला किया।

पक्षों के बीच हुए समझौते के अनुसार बेटे की कस्टडी पति को दे दी गई, और उसने बच्चे के पालन-पोषण के लिए सभी खर्चों को वहन करने का बीड़ा उठाया और प्रतिवादी-पत्नी से किसी भी खर्च का दावा नहीं करेगा। इसलिए डिक्री-शीट तैयार करने के निर्देश के साथ अपील की अनुमति दी गई।

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