"लोकतंत्र में राज्य की भूमिका मुझे वह कहने की अनुमति देना है, जो मैं चाहता हूं": मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष रूट मार्च मुद्दे पर आरएसएस का तर्क
मद्रास हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा किए जाने वाले रूट मार्च पर कुछ शर्तों को लागू करने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं के बैच पर आदेश सुरक्षित रखा लिया।
जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस मोहम्मद शफीक की पीठ के समक्ष आदेश को चुनौती देते हुए आरएसएस ने प्रस्तुत किया कि एकल न्यायाधीश जानबूझकर अवज्ञा का आरोप लगाते हुए अवमानना याचिका में जुलूस की अनुमति देने वाले अपने पहले के आदेश को संशोधित नहीं कर सकते।
एकल जज ने अपने आदेश में इस हद तक संशोधन किया कि संगठन को ग्राउंड या स्टेडियम जैसे परिसरों में जुलूस निकालने का निर्देश दिया जाए। अदालत ने प्रतिभागियों को यह भी निर्देश दिया कि वे कोई भी छड़ी, लाठी या हथियार न लाएं, जिससे किसी को चोट लग सकती है।
सीनियर वकील एनएल राजा ने अदालत के समक्ष तर्क दिया,
"अदालत ने आदेश पारित किया और पक्षकार (आरएसएस) ने आदेश पर अमल किया। अब पुलिस अदालत में वापस नहीं आ सकती और यह नहीं कह सकती कि वे आदेश का पालन नहीं कर सकते। अदालत उस सबमिशन पर ध्यान नहीं दे सकती और अपने स्वयं के आदेश को संशोधित नहीं कर सकती। यह एकपक्षीय आदेश का मामला नहीं है। उन्हें नोटिस दिया गया है और उन्हें पर्याप्त अवसर दिए गए थे।"
यह कहते हुए कि सार्वजनिक जुलूस बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने का स्वीकार्य तरीका है, उन्होंने कहा कि राज्य का कर्तव्य है कि वह इसकी अनुमति दे।
उन्होंने कहा,
"लोकतंत्र में राज्य की भूमिका मुझे वह कहने की अनुमति देना है, जो मैं कहना चाहता हूं। मेरे भाषण को रोकने के लिए नहीं।"
सीनियर वकील जी राजगोपाल ने तर्क दिया कि राज्य ने कानून और व्यवस्था की समस्या का हवाला केवल तब दिया जब आरएसएस ने अनुरोध किया, जबकि अन्य पक्षकारों द्वारा किए गए विभिन्न जुलूसों के लिए अनुमति दी जा रही है। इस प्रकार, उन्होंने सरकार के आचरण पर सवाल उठाया और प्रस्तुत किया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
सीनियर वकील जी कार्तिकेयन ने प्रस्तुत किया कि पुलिस केवल कानून और व्यवस्था की समस्या का हवाला नहीं दे सकती और संगठन को अपना जुलूस निकालने की अनुमति से इनकार नहीं कर सकती; यह वास्तव में कानून बनाए रखने में अपनी अक्षमता को स्वीकार करने के बराबर है।
यह तर्क देते हुए कि एकल न्यायाधीश अपने पहले के आदेश को संशोधित नहीं कर सकते, सीनियर वकील रवि शनमुघम ने प्रस्तुत किया कि अवमानना याचिका में अदालत किसी आदेश के सही होने पर विचार नहीं कर सकती, लेकिन केवल यह देखना है कि अवमानना की गई है या नहीं।
वकील ने कहा कि वर्तमान मामले में 49 अधिकारियों ने अदालत के पहले के आदेश के खिलाफ जाकर अनुमति देने से इनकार कर दिया, जो स्पष्ट रूप से अवमानना का मामला है। इस प्रकार, उन्होंने अवमानना याचिका की बहाली और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गुहार लगाई।
पुलिस अधिकारियों की ओर से पेश सीनियर वकील एनआर एलंगो ने कहा कि अनुमति से इनकार करना खुफिया रिपोर्ट के आधार पर नीतिगत निर्णय है। वही संगठन के सदस्यों की सुरक्षा के लिए निर्णय लिया गया है।
केस टाइटल: जी सुब्रमण्यन बनाम के फणींद्र रेड्डी आईएएस (बैच केस)
केस नंबर: एलपीए 6/2022