मनी लॉन्ड्रिंग: मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु की मत्स्य मंत्री अनीता राधाकृष्णन के खिलाफ ईडी की कार्रवाई पर रोक लगाई

Update: 2022-06-30 06:02 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार को तमिलनाडु राज्य की मत्स्य पालन, मछुआरा कल्याण और पशुपालन मंत्री अनीता राधाकृष्णन के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जांच की जा रही मनी लॉन्ड्रिंग मामले की सुनवाई की अगली तारीख तक रोक लगा दी।

प्रवर्तन कार्रवाई को रद्द करने की मांग करते हुए मंत्री द्वारा याचिका में अंतरिम राहत दी गई। अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय को अपना काउंटर दाखिल करने के लिए भी समय दिया।

जस्टिस परेश उपाध्याय और जस्टिस एडी जगदीश चंडीरा की पीठ ने कहा:

आक्षेपित ईसीआईआर में नोट किए गए तथ्यों पर संयुक्त रूप से विचार करने पर अधिनियम की संबंधित धाराओं को लागू करने की मांग की गई, उसमें आगे संशोधन और बाद के संशोधनों द्वारा अधिनियम की अनुसूची को शामिल करते हुए प्रतिवादी अधिकारियों को जवाब देना है। इसके लिए उन्होंने समय मांगा है, जो हमने प्रदान किया है, इसलिए रिट याचिकाकर्ता द्वारा प्रार्थना की गई अंतरिम राहत सुनवाई की अगली तारीख तक प्रदान की जाती है।

मंत्री के खिलाफ आरोप यह कि 2002-2006 की अवधि के दौरान तिरुचेंदूर विधानसभा क्षेत्र के विधायक और बाद में आवास और शहरी विकास विभाग के मंत्री के रूप में सेवा करते हुए उन्होंने आय के ज्ञात स्रोतों से उनके नाम पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित की। 2,68,24,7555/- रूपये की संपत्ति उनकी पत्नी के नाम, दो भाई और तीन बेटे। मामला प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, थूथुकुडी के न्यायालय में विचाराधीन है।

उपरोक्त के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय ने एक प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) दायर की जिसे याचिकाकर्ता द्वारा रद्द करने की मांग की गई।

याचिकाकर्ता मंत्री ने तर्क दिया कि ईसीआईआर इस आधार पर दायर किया गया कि अपराध अनुसूचित अपराध है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि निदेशालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की धारा 3 और 4 के तहत अपराधों के लिए ईसीआईआर दर्ज किया था। हालांकि, पीएमएलए केवल एक जुलाई 2005 को लागू हुआ और उस समय भी धारा 13 भाग नहीं था। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि विधेय अपराध की अवधि 14.05.2001 से 31.03.2006 की जांच अवधि थी। इसलिए, अधिनियम के प्रावधानों को उनके खिलाफ पूर्वव्यापी रूप से लागू किया गया था।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि धन शोधन निवारण अधिनियम दंडात्मक क़ानून होने के कारण पूर्वव्यापी रूप से संचालित नहीं हो सकता है और अन्यथा यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 (1) का उल्लंघन होगा।

मामले की अगली सुनवाई अब 14 जुलाई, 2022 को होगी।

केस टाइटल: अनीता आर राधाकृष्णन बनाम प्रवर्तन निदेशालय और अन्य

मामला नंबर: 2022 का डब्ल्यू.पी.सं.16467

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