एक ही मामले के आधार पर 'यूपी गैंगस्टर्स एक्ट' के तहत एफआईआर दर्ज करना वैध और अनुमेय: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2021-08-10 12:08 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एंड एंटी सोशल एक्ट‌िवीट‌ीज (प्र‌िवेंशन) एक्ट, 1986 के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर, भले ही उसकी केवल एक ही मामले में भागीदारी हो, वैध और स्वीकार्य है।

जस्टिस समित गोपाल और जस्टिस प्रिटिंकर दिवाकर की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों पर भरोसा करने के बाद यह निष्‍कर्ष दिया।

संक्षेप में मामला

कोर्ट ने रितेश कुमार उर्फ ​​रिक्की और अन्य की 12 रिट याचिकाओं को खारिज करते हुए निम्न प्रश्न पर विचार किया-

" क्या उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एंड एंटी सोशल एक्ट‌िवीट‌ीज (प्र‌िवेंशन) एक्ट, 1986 [इसके बाद 'गैंगस्टर एक्ट' के रूप में संदर्भित] के प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज की जा सकती है और याचिकाकर्ता की संलिप्तता/पूर्व में एक ही केस में आरोपी हो, के आधार पर सुनवाई योग्य है।"

सभी 12 रिट याचिकाओं में आम आधार यह था कि याचिकाकर्ताओं को एक ही मामले में संलिप्तता के कारण उन पर गैंगस्टर एक्ट के प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज कर आरोपी बनाया गया था।

यहां तक ​​कि प्राधिकरण द्वारा तैयार और स्वीकृत गैंग चार्ट से पता चलता है कि यहां उनके खिलाफ एक भी मामला है, जिसके आधार पर आक्षेपित एफाआईआर दर्ज की गई है, जो कि अवैध है और गैंगस्टर अधिनियम के सार के खिलाफ है।

यह तर्क दिया गया कि उक्त एफआईआर इकलौते मामले के आधार पर दर्ज नहीं की जा सकती थी और इस तरह, उक्त रिट याचिकाओं को अनुमति देने की प्रार्थना की गई थी और संबंधित एफआईआर को रद्द करने का आग्रह किया गया था।

न्यायालय की टिप्पणियां

इस प्रस्ताव पर जोर देते हुए कि क्या गैंगस्टर एक्ट के तहत केवल एक मामले में आरोपी की संलिप्तता के आधार पर एफआईआर दर्ज की जा सकती है, अब रेस इंटेग्रा नहीं है, कोर्ट ने शुरुआत में सुभाष बनाम यूपी राज्य और अन्य, 1998 एससीसी ऑनलाइन ऑल 973, में इलाहाबाद उच्च के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था,

" इस निर्णय की अगली कड़ी के रूप में जब किसी एफआईआर को न्यायोचित ठहराने के लिए एक्ट के तहत अपराध करने के संबंध में किसी कार्य या चूक के कुछ आरोप हैं, तो यह इस प्रकार है कि इस तरह की एफआईआर एक घटना के लिए भी हो सकती है क्योंकि कृत्यों की आदत है अपराध करने के लिए आवश्यक नहीं है। धारा 2 में प्रयुक्त शब्द निस्संदेह बहुवचन में "असामाजिक गतिविधियों में लिप्त" का संकेत देते हैं, लेकिन वाक्य "असामाजिक गतिविधियों" शब्दों के साथ नहीं रुकता है। यह शब्द के साथ चलता है , "अर्थात्।" इसके बाद असामाजिक गतिविधियों के 15 खंड इसमें शामिल हैं।"असामाजिक गतिविधियों" में बहुवचन एकल अपराध की छाया में शामिल बड़ी संख्या में गतिविधियों को संदर्भित करता है और इसका मतलब यह कभी नहीं होगा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ एक्ट के तहत मुकदमा चलाने या उसे दोषी ठहराए जाने से पहले कार्रवाई की बहुलता होनी चाहिए..."

इसके अलावा, कोर्ट ने, अन्य बातों के साथ-साथ, रिंकू उर्फ ​​हुक्कू बनाम यूपी राज्य और एक अन्य और 2001 (Suppl) ACC को भी संदर्भित किया , जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने माना था कि एकवचन में बहुवचन और इसका उलटा शामिल है, जिससे एक व्यक्ति की इकलौती असामाजिक गतिविधि भी अपराध भी गैंगस्टर एक्ट के लिए पर्याप्त है।

अंत में, सभी 12 दलीलों को खारिज करते हुए और फैसला सुनाते हुए कि एक ही घटना के आधार पर, गैंगस्टर एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की जा सकती है, अदालत ने इस प्रकार कहा, "भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका में, यह न्यायालय आक्षेपित प्रथम सूचना रिपोर्ट या जिन मामलों के आधार पर आक्षेपित प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई है, में आरोपों की सत्यता का फैसला नहीं कर सकता है।"

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