LGBTQIA+ समुदाय को कमजोर हालात में नहीं छोड़ा जा सकताः मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ दिशा निर्देश जारी किया

Update: 2021-06-07 10:28 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

एक महत्वपूर्ण फैसले में LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों के अधिकारों को बरकरार रखते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए हैं कि समुदाय के सदस्यों के माता-पिता द्वारा दर्ज की गई गुमशुदगी की शिकायतों में उन्हें पुलिस परेशान न करे।

पुलिस उत्पीड़न के मामले में दो समलैंगिक महिलाओं द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार करते हुए, जस्टिस आनंद वेंकटेश की एकल पीठ ने कहा कि LGBTQIA+ संबंधों के प्रति दृष्टिकोण में एक सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है। वे जिन शत्रुताओं का सामना करते हैं, वे इस तथ्य के कारण हैं कि उनके रिश्ते को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त नहीं है।

कोर्ट ने मामले में कहा, "... वास्तविक समस्या यह नहीं है कि कानून किसी रिश्ते को मान्यता नहीं देता है, बल्‍कि समाज की स्वीकृति नहीं है। केवल इसी कारण से, मुझे दृढ़ता से लगता है कि सामाजिक स्तर पर परिवर्तन होना चाहिए और जब यह एक कानून द्वारा पूरक होगा तो समलैंगिक संबंधों को मान्यता देकर समाज के दृष्टिकोण में उल्लेखनीय परिवर्तन होगा।"

कोर्ट ने कहा कि LGBTQIA+ समुदाय के खिलाफ सामाजिक भेदभाव को मिटाने और उनके जीवन और सम्मान की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विधायी परिवर्तनों की आवश्यकता है। इस संबंध में, अदालत ने उल्लेख किया कि कैसे विधायी हस्तक्षेप से विकलांग व्यक्तियों और मानसिक बीमारी के प्रति दृष्टिकोण बदल रहे हैं। कोर्ट ने LGBTQIA+ समुदाय के संबंध में भी इसी तरह के विधायी हस्तक्षेप का आह्वान किया।

अदालत ने दिशानिर्देश जारी करने के लिए आगे बढ़ते हुए कहा, "जब तक विधायिका एक अधिनियम के साथ नहीं आती है, तब तक LGBTQIA + समुदाय को एक कमजोर माहौल में नहीं छोड़ा जा सकता है, जहां उनकी सुरक्षा और संरक्षण की कोई गारंटी नहीं है। इस अंतर को कानून बनने तक दिशानिर्देश के माध्यम से भरने की मांग की गई है।"

न्यायालय ने निम्नलिखित अंतरिम दिशानिर्देश/निर्देश जारी किए,

A. पुलिस, लड़की/महिला/पुरुष के लापता होने के मामलों के संबंध में कोई शिकायत प्राप्त होने पर, जिसमें जांच/पूछताछ होने पर LGBTQIA+ समुदाय से संबंधित सहमत वयस्कों को शामिल पाया जाता है, उनके बयान प्राप्त होने पर, शिकायत को बिना किसी उत्पीड़न के बंद कर देगी।

B.सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को गैर-सरकारी संगठनों और समुदाय-आधारित समूहों को सूचीबद्ध करना है, जिनके पास LGBTQIA+ समुदाय के मुद्दों पर काम करने की पर्याप्त विशेषज्ञता है। ऐसे गैर सरकारी संगठनों की सूची, पते, संपर्क विवरण और सेवाओं के साथ आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाए और समय-समय पर संशोधित किया जाए। इस तरह के विवरण इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से 8 सप्ताह के भीतर प्रकाशित किए जाएंगे।

C.कोई भी व्यक्ति जो LGBTQIA+ समुदाय से संबंधित होने के कारण किसी समस्या का सामना करता है, अपने अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए किसी भी सूचीबद्ध गैर सरकारी संगठन से संपर्क कर सकता है।

D.संबंधित एनजीओ एमएसजेई के परामर्श से, ऐसे व्यक्तियों के गोपनीय रिकॉर्ड बनाए रखेगा, जो सूचीबद्ध एनजीओ से संपर्क करते हैं और पूरा डेटा संबंधित मंत्रालय को प्रति दो वर्ष बाद प्रदान किया जाएगा।

E.इस प्रकार की समस्याओं को प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर सबसे उपयुक्त तरीके से संबोधित किया जाएगा, चाहे वह परामर्श, मौद्रिक सहायता, जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के समर्थन से कानूनी सहायता, या LGBTQIA+ समुदाय से संबंधित किसी भी व्यक्ति के खिलाफ किए गए अपराध के मामले में कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय के बारे में हो।

F. आवास के मुद्दे की विशिष्टता के साथ, मौजूदा अल्पावधि घरों, आंगनवाड़ी आश्रयों और गरिमा गृह (ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए एक आश्रय गृह, जिसका उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को बुनियादी सुविधाएं जैसे आश्रय, भोजन, चिकित्सा देखभाल और मनोरंजन सुविधाओं आदि के साथ आश्रय प्रदान करना है।इसके अलावा, यह समुदाय में व्यक्तियों के क्षमता निर्माण/कौशल विकास के लिए सहायता प्रदान करेगा, जो उन्हें सम्मान से जीवन जीने में सक्षम बनाता है।) ) में उपयुक्त परिवर्तन किए जाने हैं, ताकि LGBTQIA+ समुदाय के सदस्य सदस्यों, जिन्हें आश्रयों और/या घरों की आवश्यकता होती है को समायोजित किया जा सके। एमएसजेई इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से 12 सप्ताह की अवधि के भीतर इस संबंध में पर्याप्त ढांचागत व्यवस्था करेगा।

G.ऐसे अन्य उपाय जो LGBTQIA+ समुदाय के प्रति पूर्वाग्रहों को दूर करने और उन्हें मुख्यधारा में वापस लाने के लिए आवश्यक हैं, भी उठाए जाएंगे। संघ और राज्य सरकारें क्रमशः ऐसे अन्य मंत्रालयों और/या विभागों के परामर्श से ऐसे उपायों और नीतियों को लागू करने का प्रयास करेंगी।

H. जागरूकता पैदा करने के लिए, यह न्यायालय केंद्र/राज्य सरकार (सरकारों) के संबंधित मंत्रालय द्वारा संचालित किए जाने वाले संवेदीकरण कार्यक्रमों का सुझाव देता है (निर्णय में संवेदीकरण कार्यक्रमों की एक सांकेतिक सूची सूचीबद्ध है)।

उच्च न्यायालय ने उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के नवतेज सिंह जौहर के फैसले में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है।

समलैंगिकता को समझने के लिए जज की काउंसलिंग

फैसले में जस्टिस आनंद वेंकटेश ने अपनी व्यक्तिगत अज्ञानता और पूर्वाग्रहों को त्यागकर समलैंगिक व्यक्तियों को पेश आने वाली समस्याओं को समझने के लिए उनके द्वारा अपनाई गई परामर्श प्रक्रिया का विवरण दिया।

जस्टिस वेंकटेश ने फैसले में कहा कि LGBTQIA+ समुदाय के साथ मनोवैज्ञानिक-शिक्षा सत्र और बातचीत ने उन्हें आश्वस्त किया कि " मुझे मेरी सभी पूर्वकल्पित धारणाओं को बदलना चाहिए और संबंधित व्यक्तियों को वैसे ही देखना शुरू करना चाहिए जैसे वे हैं। मुझे स्पष्ट रूप से स्वीकार करना चाहिए कि याचिकाकर्ता, सुश्री विद्या दिनाकरन और डॉ त्रिनेत्रा मेरे गुरु बनीं, जिन्होंने मुझे समझने की इस प्रक्रिया में मदद की और मुझे अंधेरे (अज्ञान) से बाहर निकाला।

मामले का विवरण

टाइटिल: एस सुषमा और एक अन्य बनाम पुलिस आयुक्त और अन्य।

खंडपीठ: जस्टिस आनंद वेंकटेश

प्रति‌निध‌ित्व: याचिकाकर्ताओं के लिए एस मनुराज; हसन मोहम्मद जिन्ना राज्य लोक अभियोजक; शनमुगसुंदरम एडवोकेट जनरल, सुश्री शबनम बानो सरकारी वकील ; शंकरनारायणन अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल, श्री वी.चंद्रशेखर केंद्र सरकार के स्थायी परामर्शदाता।

फैसला पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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