केरल हाईकोर्ट में साजी चेरियन की संविधान पर टिप्पणी को लेकर उनकी विधायकी को अयोग्य घोषित करने की मांग वाली याचिका दायर
केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर यह घोषित करने का निर्देश दिए जाने की मांग की गई है कि संविधान पर अपमानजनक टिप्पणी करने के कारण माकपा विधायक और पूर्व मंत्री साजी चेरियन विधायकी के हकदार नहीं हैं। साजी की उक्त टिप्पणी ने राज्य भर में विवाद पैदा कर दिया है।
चीफ जस्टिस एस. मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी. शैली की खंडपीठ ने मंगलवार को मामले पर सुनवाई हुई करते हुए प्रथम दृष्टया पाया कि विधायक होने की योग्यता से संबंधित संविधान का अनुच्छेद 173 यहां लागू नहीं हो सकता है।
खंडपीठ ने कहा,
"उक्त प्रावधान राज्य विधानमंडल की सदस्यता के लिए योग्यता से संबंधित है और मामले में योग्य होने के नाते चौथे प्रतिवादी साजी चेरियन पहले ही राज्य विधानमंडल के सदस्य के रूप में चुने जा चुके हैं। प्रथम दृष्टया हमने देखा कि उक्त संवैधानिक प्रावधान यहां लागू नहीं हो सकता।"
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इस सवाल पर कि क्या चेरियन का भाषण अनुच्छेद 188 के तहत अयोग्यता को आकर्षित करेगा, इस पर गौर किया जाना चाहिए।
पूर्व मत्स्य और संस्कृति मंत्री चेरियन ने कथित तौर पर कहा था कि इस महीने की शुरुआत में पार्टी कार्यक्रम में बोलते हुए संविधान का इस्तेमाल 'आम लोगों का शोषण करने के लिए' किया गया है। इस बयान के बाद राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था। एक विधायक ने इस मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था।
हाईकोर्ट के समक्ष दायर याचिका में कहा गया कि पूर्व मंत्री ने राजनीतिक बैठक में अपने भाषण में सार्वजनिक रूप से संविधान का अपमान किया, जो मलयालम दैनिक मातृभूमि में प्रकाशित हुआ था।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट पीके प्रीतीप कुमार ने तर्क दिया कि चेरियन का आचरण संविधान के अनुच्छेद 173 (ए) और 188 का उल्लंघन है, जबकि उसके खिलाफ इस घटना को लेकर अपमान राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम, 1971 के तहत मामला भी दर्ज किया गया है।
याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि इन सबके बावजूद चेरियन अभी भी केरल विधानसभा के विधायक के पद पर है।
एडवोकेट जनरल के गोपालकृष्ण कुरुप ने प्रस्तुत किया कि विधायक को अयोग्य घोषित करने के लिए संविधान कुछ मानकों और पालन की जाने वाली प्रक्रिया प्रदान करता है। उन्होंने याचिका में मांगी गई राहत का इस आधार पर विरोध किया कि अगर किसी मंत्री द्वारा शपथ का उल्लंघन भी किया जाता है तो यह विधायक के रूप में अयोग्यता का आह्वान नहीं करेगा।
कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री को देखने पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों का कोई संदर्भ नहीं है।
कोर्ट ने कहा,
"रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से पता चलता है कि चौथे प्रतिवादी साजी चेरियन ने संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ बयान दिए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम, 1971 के प्रावधान के तहत अपराध दर्ज किया गया है। रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री हमें विधानसभा के सदस्य की अयोग्यता के संबंध में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों का कोई संदर्भ नहीं मिलता है।"
इसी तरह यह पाया गया कि चेरियन को अयोग्य घोषित करने के लिए भारत के चुनाव आयोग को अभ्यावेदन दिया जाए। याचिका के समर्थन में दायर किए गए दावों में किसी प्रावधान का उल्लेख नहीं किया गया है।
ऐसे में बेंच ने याचिकाकर्ता को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, चुनाव कानूनों या इस संबंध में भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए किसी भी आदेश के प्रासंगिक प्रावधानों को पेश करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: बीजू पी. चेरुमन बनाम भारत निर्वाचन आयोग और अन्य।
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