केरल हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले में लेखक-एक्टिविस्ट सिविक चंद्रन की अग्रिम जमानत रद्द की
केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने सत्र अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार और पीड़िता की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए लेखक और सोशल एक्टिविस्ट सिविक चंद्रन (Civic Chandran) की यौन उत्पीड़न के एक मामले में (Sexual Harassment Case) अग्रिम जमानत रद्द कर दी।
जस्टिस ए. बधारुद्दीन ने आदेश पारित किया।
केरल राज्य सरकार और वास्तविक शिकायतकर्ता ने सिविक चंद्रन को दी गई अग्रिम जमानत को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। केरल राज्य सरकार और वास्तविक शिकायतकर्ता का कहना है कि यह आदेश अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के खिलाफ अत्याचार की रोकथाम के लिए बनाए गए विशेष कानून की भावना के खिलाफ है।
आरोपी पर आईपीसी की धारा 354, 354 ए (1) (ii), 354 ए (2), 354 डी (2) आईपीसी और एससी / एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1999 के तहत संबंधित प्रावधानों के तहत दंडनीय यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया गया था।
जांच के दौरान आरोपी ने अग्रिम जमानत मांगी थी और अभियोजन पक्ष और पीड़िता की आपत्ति के बावजूद निचली अदालत ने अग्रिम जमानत मंजूर कर ली गई थी।
अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि फरवरी 2022 में, दलित लेखिका, वास्तविक शिकायतकर्ता ने नंदी में अपनी पुस्तक के प्रकाशन के संबंध में एक समारोह का आयोजन किया था। समारोह के बाद, आरोपी ने शिकायतकर्ता की सहमति के बिना उसकी गर्दन के पिछले हिस्से को चूमा और कथित तौर पर उसका यौन उत्पीड़न किया। पुलिस के अनुसार, आरोपी ने पीड़िता के शील को इस ज्ञान के साथ भंग कर दिया कि वह अनुसूचित जाति से संबंधित है।
जब मामला पहले उच्च न्यायालय द्वारा उठाया गया था, तो राज्य द्वारा यह माना गया था कि सत्र न्यायालय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत आवेदन पर विचार करने में गलत हो गया था, जब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (पीए) अधिनियम, 1989 की धारा 18 और 18 ए के तहत पूर्ण रोक है।
इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया था कि सत्र न्यायालय ने आदेश में यह कहते हुए गंभीरता से गलती की कि अभियुक्त के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है, यह तर्क देते हुए कि केवल अधिनियम की धारा 18 के तहत बार को दरकिनार करने के उद्देश्य से निष्कर्ष दिया गया था।
उसी सत्र न्यायालय ने एक अन्य यौन उत्पीड़न मामले में लेखक-कार्यकर्ता को अग्रिम जमानत भी दी थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने वास्तविक शिकायतकर्ता का यौन उत्पीड़न किया और उसकी शील भंग करने की कोशिश की, जो एक युवा महिला लेखिका है।
कोर्ट ने अग्रिम जमानत देते हुए कहा था कि अगर महिला ने 'यौन उत्तेजक कपड़े' पहन रखी है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 354 ए के तहत अपराध प्रथम दृष्टया आकर्षित नहीं होगा।
हाईकोर्ट ने इस टिप्पणी को खारिज कर दिया है।
दोनों आदेशों की कड़ी आलोचना हुई है, विशेष रूप से अदालत की यह टिप्पणी कि भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए के तहत अपराध प्रथम दृष्टया तब आकर्षित नहीं होता जब महिला ने 'यौन उत्तेजक कपड़े' पहने हों।
सिविक चंद्रन को पूर्वोक्त अग्रिम जमानत आदेश के खिलाफ याचिकाएं भी दायर की गईं। केरल उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने इस महीने की शुरुआत में सिविक चंद्रन को अग्रिम जमानत के आदेश के खिलाफ राज्य के साथ-साथ वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा पेश की गई दो याचिकाओं का निपटारा करते हुए कहा था कि भले ही निचली अदालत द्वारा कारण दिखाया गया हो, अग्रिम जमानत देने को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की उत्तेजक कपड़े के संबंध में आक्षेपित आदेश में टिप्पणी को कायम नहीं रखा जा सकता और इस तरह इसे हटा दिया गया।
केस टाइटल: केरल राज्य बनाम सिविक चंद्रन @ वी. कुट्टन और XXXXX बनाम केरल राज्य