'माँ को बहुत ही निराधार और क्रूर आरोपों के साथ कटघरे में खड़ा कर दिया': केरल हाईकोर्ट ने बेटे के यौन शोषण मामले में आरोपी महिला को जमानत दी
केरल हाईकोर्ट ने अपने नाबालिग बेटे (कडककवूर पाॅक्सो मामला) के यौन शोषण के मामले में आरोपी महिला को जमानत दे दी है।
न्यायमूर्ति वी. शर्की ने कहा कि यह मामला काफी अजीब, चैंकाने वाला और असामान्य है,जहां एक माँ को बहुत ही निराधार और क्रूर आरोपों के साथ कटघरे में खड़ा कर दिया गया है।
जज ने कहा कि,
''इसमें संदेह नहीं है कि इस मामले में मातृत्व की पवित्रता को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया था। एक माँ अपने गर्भ में नौ चंद्र महीनों तक अपने बच्चे को पालती है और इसलिए उसके जन्म से पहले ही एक माँ और बच्चे का रिश्ता जुड़ा होता है। अपने बच्चे के प्रति एक माँ के प्यार, स्नेह और गर्मजोशी की तुलना दुनिया के किसी भी प्यार से नहीं की जा सकती है। कोई भी माँ इस तरह के घृणित कार्य का सहारा नहीं लेगी।''
अदालत ने पुलिस को यह भी जांच करने का निर्देश दिया है कि क्या मामले में शामिल बच्चे का किसी ने ब्रेनवाश या ट्यूट किया है ताकि वह अपनी मां के खिलाफ इस तरह के निराधार आरोप लगा सकें? न्यायाधीश ने पुलिस को निम्नलिखि पहलुओं के बारे में ठोस जवाब देने का भी निर्देश दिया हैः
1-याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज करने में देरी का कारण, हालांकि बच्चा अपने पिता के साथ सितंबर, 2020 में केरल आया था।
2-क्या पीड़ित को केरल लौटने के बाद और पुलिस,कडक्कवूर को शिकायत दर्ज करने से पहले किसी भी तरह की काउंसलिंग दी गई थी और यदि हां, तो उसका विवरण दिया जाए।
3-क्या याचिकाकर्ता द्वारा 8 अक्टूबर 2019 को उसके पति के खिलाफ दायर शिकायत में डिप्टी एसपी,अत्तिनगल ने कोई कार्रवाई की थी?
4-क्या याचिकाकर्ता का पति याचिकाकर्ता द्वारा उसके खिलाफ दायर किए गए मुकदमों को लड़ने के लिए फैमिली कोर्ट के समक्ष उपस्थित हुआ था या नहीं और क्या इस अपराध का पंजीकरण उसके नाबालिग बच्चे की कस्टडी के साथ-साथ भरण-पोषण के लिए याचिकाकर्ता के वैध दावे को हराने के लिए है, विशेष रूप से जब पति और पत्नी के वैवाहिक संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं?
5-जांच एजेंसी को यह सत्यापित करना होगा कि क्या बच्चे को याचिकाकर्ता की कस्टडी से लेकर शारजाह ले जाने के बाद उसे नियमित स्कूल में अपनी औपचारिक शिक्षा जारी रखने की अनुमति दी गई? जांच एजेंसी को यह भी सत्यापित करना होगा कि क्या याचिकाकर्ता के पति के साथ जाने वाले महिला के बच्चे को अपनी औपचारिक शिक्षा जारी रखने के लिए एक नियमित स्कूल में प्रवेश दिलाया गया है?
6-जांच एजेंसी को यह सत्यापित करना होगा कि क्या याचिकाकर्ता ने किसी भी डॉक्टर से एलर्जी के लिए या किसी अन्य बीमारियों के लिए परामर्श किया था या नहीं, क्या मिथाइलप्रेडनिसोलोन टैबलेट किसी डॉक्टर द्वारा दी गई थी?
7-जांच एजेंसी को यह सत्यापित करना होगा कि क्या सीडब्ल्यूसी के पास कोई ऐसा रिकॉर्ड उपलब्ध हैं,जो यह दिखाता हो कि सीडब्ल्यूसी से जुड़े होम में रहने के दौरान बच्चे को काउंसलिंग दी गई थी,हालांकि एफआर के साथ संलग्न रिपोर्ट में दो दिनों की काउंसलिंग का उल्लेख किया गया है।
8-चूंकि इस याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए अपराध काफी गंभीर और चिंताजनक हैं और काफी अनसुने हैं, इसलिए राज्य पुलिस प्रमुख को एक आईपीएस अधिकारी(एक महिला अधिकारी को तरजीह दी जाए) की अगुवाई में विशेष टीम गठित करने का निर्देश दिया जाता है,ताकि आरोपों की गहराई से जांच करते हुए मामले की जांच को आगे बढ़ाया जा सकें और इसे जल्द से जल्द पूरा किया जाए।
9-जांच एजेंसी को बच्चे का मेडिकल परीक्षण कराने के लिए भी निर्देशित किया गया है, जिसमें इमोशनल कोटिएंट एंड इंटेलिजेंस क्वोटिएंट भी कराना होगा। इसके लिए तिरुवंतपुरम मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक से परामर्श के बाद एक मेडिकल बोर्ड का गठन करना होगा। इस बोर्ड में बाल रोग विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक (जिसे बाल मनोविज्ञान का अनुभव हो), मनोचिकित्सक, न्यूरोलॉजिस्ट सहित अनुभवी डाक्टरों को शामिल किया जाए। बोर्ड की एक सदस्य एक महिला चिकित्सक होनी चाहिए।
10-पीड़ित को उसके पिता की कस्टडी से लेकर सीडब्ल्यूसी के तहत होम में रखा जाए ताकि उसके सुरक्षित आवास, देखभाल और संरक्षण को सुनिश्चित किया जा सकें।
जमानत देने के लिए, पीठ ने कहा कि जांच के लिए आरोपी को न्यायिक हिरासत में रखने की आवश्यकता नहीं है। जमानत देते समय कुछ शर्तें भी लगाई गई हैं।
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