[जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम] भ्रष्ट इरादे के अभाव में लोक सेवक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती: हाईकोर्ट

Update: 2022-10-20 06:18 GMT

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि लोक सेवक की ओर से किसी भी बेईमान मकसद या इरादे के अभाव में उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आपराधिक मुकदमा शुरू नहीं किया जा सकता।

जस्टिस संजय धर की पीठ जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 2006 की धारा 5 (2) के तहत अपराध के लिए पुलिस स्टेशन, सतर्कता संगठन जम्मू (अब भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो) के साथ दर्ज एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकर्ता ने प्राथमिक रूप से इस आधार पर एफआईआर को चुनौती दी कि हालांकि उसके पिता की वार्षिक आय 2004 के अधिनियम के तहत निर्धारित सीमा से अधिक है, फिर भी याचिकाकर्ता के पक्ष में आरबीए सर्टिफिकेट जारी करने के उद्देश्य से यह केवल याचिकाकर्ता के रूप में उसकी आय है, उसके पिता की आय नहीं।

आक्षेपित एफआईआर के अनुसार, अधिकांश चयनित केएएस द्वारा तथ्यों को छिपाने और नकली आरबीए/ओएससी/एएलसी सर्टिफिकेट को शामिल करने के संबंध में जम्मू-कश्मीर पीएससी के अधिकारियों के खिलाफ शिकायत के आधार पर सतर्कता संगठन, जम्मू द्वारा उम्मीदवार का सत्यापन किया गया।

सत्यापन के दौरान, यह पता चला कि याचिकाकर्ता इंद्रा ठाकुर के पक्ष में आरबीए पीठ ने कहा जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 के प्रावधानों के उल्लंघन में जारी किया गया, क्योंकि उसके पिता की वार्षिक आय निर्धारित सीमा से अधिक है और याचिकाकर्ता ने अपनी पूरी स्कूली शिक्षा स्थानीय क्षेत्र से पूरी नहीं की।

यह पाया गया कि संबंधित पटवारी की रिपोर्ट में तथ्य परिलक्षित होते हैं, लेकिन इसके बावजूद तत्कालीन तहसीलदार बनिहाल जितेंद्र मिश्रा ने 2004 के अधिनियम में निहित प्रावधानों के उल्लंघन में याचिकाकर्ता के पक्षकार में आरबीए पीठ ने कहा जारी किया। यह भी पता चला कि याचिकाकर्ता आरबीए सर्टिफिकेट के आधार पर केएएस 2001 बैच में चयनित हो गया, जिससे योग्य उम्मीदवारों को उनके अधिकार से वंचित कर दिया गया।

सत्यापन के अनुसार, तत्कालीन तहसीलदार बनिहाल और अन्य के खिलाफ जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 5 (2) के तहत अपराध का खुलासा किया गया।

जस्टिस संजय धर ने पक्षकारों के वकीलों को सुनने और रिकॉर्ड का विश्लेषण करने के बाद कहा कि 2005 के आरक्षण नियम के नियम 21 में प्रावधान है कि यदि पिछड़े क्षेत्र के निवासी किसी व्यक्ति के बच्चे को संबंध में क्षेत्र से बाहर जाना पड़ता है और वे अपने रोजगार, व्यवसाय या अन्य पेशेवर या व्यावसायिक कारणों से उक्त क्षेत्र में निवास नहीं कर रहे हैं तो उन्हें पिछड़े क्षेत्र के निवासी होने के लाभ का दावा करने से वंचित नहीं किया जाएगा।

पीठ ने स्पष्ट किया,

"जहां तक ​​आय सीमा का सवाल है, 2005 के नियम 22 के खंड (iii) में प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति अपने माता-पिता पर निर्भर नहीं है और उनके साथ नहीं रह रहा है तो उसके निर्धारण के उद्देश्य से यह उसकी आय है, जिसे ध्यान में रखा जाना चाहिए न कि उसके माता-पिता की आय को ध्यान में रखा जाना चाहिए।"

हाईकोर्ट ने 1994 के एसआरओ 126 के संबंध में जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा दिनांक 14.11.2003 को जारी स्पष्टीकरण पर स्पष्ट करते हुए कहा,

"स्पष्टीकरण के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि यदि किसी व्यक्ति का पुत्र या पुत्री नियोजित या लाभप्रद रूप से लगे हुए हैं और वह श्रेणी प्रमाण पत्र के अनुदान के लिए आवेदन करता है तो यह उसकी आय है, जिसे आय के निर्धारण के लिए ध्यान में रखा जाना चाहिए न कि उसके माता-पिता की आय को।

बेंच ने रेखांकित किया कि विवाद के मामले पर आगे विस्तार करते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को उसके पक्ष में आरबीए सर्टिफिकेट दिए जाने के समय वकील के रूप में नामांकित किया गया। इस तरह यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह प्रासंगिक समय पर लाभप्रद रूप से लगी हुई है। इस प्रकार संबंधित क़ानूनों और नियमों के अनुसार, यह केवल उसकी आय है, उसके पिता की नहीं है, जो यह निर्धारित करने के लिए प्रासंगिक होगी कि क्या वह आरबीए सर्टिफिकेट देने की हकदार है।

जस्टिस संजय धर ने एडिशनल एडवोकेट जनरल की दलीलों की ओर इशारा करते हुए कहा,

"यह सवाल उठेगा कि क्या जम्मू-कश्मीर पीसी अधिनियम की धारा 5 (2) के तहत अपराध के लिए आपराधिक मुकदमा केवल लोक सेवक के खिलाफ गलत व्याख्या के आधार पर शुरू किया जा सकता है। विशेष रूप से जब न तो एफआईआर में कोई आरोप है और न ही सत्यापन फ़ाइल के रिकॉर्ड में कोई सामग्री है, जो यह दर्शाती है कि सक्षम प्राधिकारी ने सर्टिफिकेट जारी करते समय या तो कोई भ्रष्ट साधन अपनाया या अपने लिए कोई आर्थिक लाभ प्राप्त किया है।"

उक्त प्रश्न का उत्तर देते हुए पीठ ने सी.के.शरीफ बनाम राज्य (थ्री सीबीआई), (2013) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया और कहा कि यह स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 5(1)(डी) और धारा 5 (2) के तहत दंडनीय है, लेकिन जब तक यह नहीं दिखाया जाता कि लोक सेवक ने भ्रष्ट या अवैध तरीके से अपने पद का दुरुपयोग किया है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उसने आपराधिक कदाचार का अपराध किया है।

पीठ ने कहा,

"मौजूदा मामले में संबंधित तहसीलदार ने क़ानूनों और नियमों की संभावित व्याख्या के आधार पर यह विचार किया कि याचिकाकर्ता आरबीए सर्टिफिकेट प्रदान करने का हकदार है। केवल इसलिए कि इन नियमों की व्याख्या से संबंधित एक और दृष्टिकोण है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि तत्कालीन तहसीलदार ने आपराधिक कदाचार का अपराध किया।"

जस्टिस धर ने याचिकाकर्ता द्वारा किसी भी संज्ञेय अपराध के कमीशन का खुलासा नहीं करने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करते हुए निष्कर्ष निकाला,

"जारी करने वाले प्राधिकारी की ओर से किसी भी बेईमान मकसद या इरादे के अभाव में और किसी भी सामग्री के अभाव में यह दर्शाता है कि याचिकाकर्ता ने सक्षम प्राधिकारी के साथ मिलीभगत की, लेकिन इससे यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अपराध किया गया।"

केस टाइटल: इंद्र ठाकुर बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य।

साइटेशन: लाइव लॉ (जेकेएल) 188/2022

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News