Seditious Article लिखने के लिए UAPA के तहत आरोपी PhD स्कॉलर को मिली जमानत

Update: 2025-02-18 03:30 GMT

जम्मू के सेशन कोर्ट ने UAPA Act के तहत आरोपों पर लिखे गए लेख के लिए गिरफ्तार की गई PhD स्कॉलर को जमानत दी। अदालत ने पाया कि आवेदक द्वारा लिखे गए लेख और उसके परिणामस्वरूप भड़की कथित हिंसा के बीच कोई कारणात्मक संबंध नहीं है।

अदालत ने यह भी पाया कि केवल UAPA के तहत आरोपित होने से अदालत को जमानत देने से नहीं रोका जा सकता, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार कड़े कानून में भी 'जमानत नियम है और जेल अपवाद है'।

अदालत ने कहा कि विचाराधीन लेख (Seditious Article) 2011 में प्रकाशित हुआ था और आवेदक के खिलाफ 6-11-2011 से 4-4-2022 तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। अदालत ने कहा कि इससे पता चलता है कि आवेदक द्वारा लिखे गए लेख ने न तो कानून और व्यवस्था में कोई गड़बड़ी पैदा की और न ही उग्रवाद को बढ़ावा दिया। इसने यह भी कहा कि आवेदक के जेल में रहने की भरपाई कोई नहीं कर सकता।

जज मदन लाल ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि सह-आरोपी, जो उक्त लेख का प्रकाशक है, उसको हाईकोर्ट द्वारा पहले ही जमानत दी गई। साथ ही कहा कि हाईकोर्ट ने उक्त लेख का मूल्यांकन करते समय यह टिप्पणी की कि 'लेखक द्वारा हथियार उठाने का कोई आह्वान नहीं किया गया, राज्य के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह के लिए कोई उकसावा नहीं है। किसी भी प्रकार की हिंसा के लिए कोई उकसावा नहीं है, आतंकवाद के कृत्यों या हिंसा के कृत्यों के साथ राज्य के अधिकार को कमजोर करने की बात तो दूर की बात है।'

इसमें यह भी कहा गया कि यदि सामग्री हिंसा भड़काने वाली प्रकृति की होती तो पुलिस याचिकाकर्ता के विरुद्ध कार्रवाई करती और उसके विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए 11 वर्ष की अवधि का इंतजार नहीं करती।

तदनुसार, न्यायालय ने एक लाख रुपये के व्यक्तिगत मुचलके और उतनी ही राशि के दो जमानती बांड प्रस्तुत करने की शर्त पर जमानत देने के लिए आवेदन स्वीकार कर लिया।

केस टाइटल: अब्दुल आला फाजिली बनाम जम्मू और कश्मीर यूटी, 2025

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