मोटर दुर्घटना दावा | बाल पीड़ित को गैर-कमाई वाले वयस्क के बराबर नहीं गिना जा सकता, गैर-आर्थिक मदों के तहत मुआवजा दिया जाना चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया

Update: 2022-08-16 09:37 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया कि मोटर दुर्घटनाओं के शिकार बच्चे मुआवजे के मामले में कमाई न करने वाले वयस्कों से अलग पायदान पर खड़े होते हैं।

जस्टिस गीता गोपी की खंडपीठ ने मल्लिकार्जुन बनाम डिवीजनल मैनेजर, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को याद करते हुए कहा कि मुआवजे से बच्चे को कुछ हासिल करने या जीवन शैली विकसित करने में सक्षम होना चाहिए, जो अपंगता से उत्पन्न होने वाली असुविधा या परेशानी को कुछ हद तक दूर करेगा।

इस प्रकार, नाबालिग पीड़ितों के लिए मुआवजे की गणना गैर-आर्थिक मदों के तहत की जानी चाहिए। इसमें उपचार, परिवहन, परिचारक की सहायता आदि के लिए खर्च की गई वास्तविक राशि शामिल नहीं होगी।

हाईकोर्ट ने वर्तमान मामले में नाबालिग पीड़िता को मेडिकल और भोजन पोषण खर्च के अलावा चार लाख मुआवजा देने का आदेश दिया।

11 साल के बच्चे को लापरवाही से चला जा रहे ट्रक ने टक्कर मार दी थी। इस दुर्घटना में बच्चे के दाहिने निचले अंग में 80% स्थायी विकलांगता आ गई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल पीड़ितों के मामले में क्षति के मुख्य तत्व हैं- 'दर्द, सदमा, हताशा, सामान्य सुखों से वंचित होना और स्वस्थ और गतिशील अंगों से जुड़े आनंद' का खो देना।

इस प्रकार यह कहा गया कि यदि विकलांगता 10% से अधिक है और पूरे शरीर में 30% तक विकलांगता है तो मुआवजा 3 लाख रुपये होना चाहिए; 60% तक विकलांगता होने पर मुआवजा 4 लाख रुपए; 90% तक विकलांगता होने पर मुआवजा 5 लाख रुपए और 90% से ऊपर विकलांगता होने पर यह मुआवजा 6 लाख रुपए हो सकता है। जब तक कि कोई अलग मानदंड लेने के लिए असाधारण परिस्थितियां न हों तब 10% तक की स्थायी विकलांगता के लिए मुआवजा एक लाख रुपये होना चाहिए।

इस पृष्ठभूमि में हाईकोर्ट ने कहा,

"दावेदार .4,00,000/- +5,500/- रुपए (मेडिकल व्यय) + 10,000/- रुपए (वाहन, परिचारक और भोजन पोषण व्यय) = रु.4,15,500/- कुल प्राप्त करने का हकदार होगा। बच्चे को ट्रिब्यूनल द्वारा निर्देशित ब्याज दर के साथ मुआवजा दिया जाएगा।"

केस नंबर: सी/एफए/3654/2021

केस टाइटल: शैलेशभाई कंदुभाई रथवा बनाम गुर्जर शंकरलाल देवलाल

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