जमानत का आधार यह तय करने के लिए महत्वपूर्ण कि अभियुक्त की निवारक हिरासत जरूरी या नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि हिरासतकर्ता प्राधिकरण जब यह तय करे कि अभियुक्त को निवारक रूप से हिरासत में लेने की जरूरत है या नहीं, उसे जमानत के आधारों पर विचार करना होगा।
जस्टिस सुनील बी शुकरे और जस्टिस एमडब्ल्यू चंदवानी की खंडपीठ ने एमपीडीए एक्ट की धारा 3 के तहत एक व्यक्ति की निवारक हिरासत के आदेश को रद्द कर दिया।
याचिकाकर्ता के खिलाफ तीन अपराधों में मामला दर्ज किया गया था। तीनों अपराधों में उसे जमानत मिल दे दी गई थी।
याचिकाकर्ता ने पुलिस आयुक्त की ओर से दिए गए निवारक निरोध आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। आदेश की पुष्टि राज्य ने भी की थी। उसने जिलाधिकारियों और पुलिस आयुक्तों क हिरासत आदेश आदेश पारित करने की शक्ति सौंपने के गृह विभाग के आदेश को भी चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील विजय सावल ने प्रस्तुत किया कि हिरासतकर्ता प्राधिकरण ने उन आधारों पर विचार नहीं किया, जिन पर याचिकाकर्ता को तीन अपराधों में जमानत पर रिहा किया गया था।
राज्य की ओर से पेश एपीपी एसएस डोईफोड ने कहा कि हिरासतकर्ता प्राधिकरण ने न केवल तीन अपराधों पर विचार किया बल्कि याचिकाकर्ता के खिलाफ उपलब्ध अतिरिक्त सामग्री यानी गोपनीय गवाहों के दो बयानों पर भी विचार किया।
राज्य ने कहा कि हिरासतकर्ता प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता के खिलाफ सामग्री और संभावित गवाहों पर इसके प्रभाव पर समग्र दृष्टिकोण लिया और निरोध आदेश पारित करने की आवश्यकता के बारे में व्यक्तिपरक संतुष्टि पर पहुंच गया।
अदालत ने कहा कि गृह विभाग के आदेश में संतोष दर्ज है कि एमपीडीए एक्ट की धारा 32 के तहत राज्य सरकार को प्रत्यायोजन की अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए बाध्यकारी परिस्थितियां मौजूद हैं।
अदालत ने आदेश को कायम रखते हुए कहा कि जहां प्रशासनिक प्राधिकरण द्वारा विचार की गई सामग्री पेश नहीं की गई है, वहीं कुछ भी यह नहीं बताता है कि जब राज्य सरकार ने इस शक्ति का प्रयोग किया तो उसके पास कोई सामग्री नहीं थी।
अदालत ने कहा कि हिरासतकर्ता अधिकारी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज तीन अपराधों पर विचार किया, लेकिन किसी भी तरह से उन आधारों पर विचार नहीं किया जिनके आधार पर याचिकाकर्ता को सभी अपराधों में जमानत पर रिहा किया गया था।
अदालत ने कहा कि आरोपी को दी गई जमानत का आधार आरोपी के खिलाफ उपलब्ध सामग्री का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और हिरासत में लेने वाले प्राधिकरण का कर्तव्य है कि वह इस पर विचार करे।
याचिकाकर्ता के खिलाफ नशीले पदार्थों के सेवन के मामले से संबंधित जमानत आदेश में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने कहा था कि उसे सलाखों के पीछे रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
जेएमएफसी ने अभियोजन पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया कि अगर उसे जमानत पर रिहा किया गया तो वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ करेगा और गवाहों को धमकाएगा।
अदालत ने कहा कि जमानत के आदेशों को किसी भी अपराध में चुनौती नहीं दी गई और अंतिम रूप दिया गया।
अदालत ने यह देखते हुए निरोध आदेश को रद्द कर दिया -
"... न्यायिक राय याचिकाकर्ता के पक्ष में झुकती है क्योंकि यह याचिकाकर्ता के स्वतंत्र और व्यापक होने की आवश्यकता के पहलू से संबंधित है। यदि यह संबंधित जेएमएफसी के न्यायालय द्वारा व्यक्त की गई न्यायिक राय है, तो हिरासत में लेने वाला प्राधिकरण इसके प्रति अपना सम्मान देने के लिए बाध्य है। यह डिटेनिंग अथॉरिटी द्वारा नहीं किया गया है।"
केस नंबरः आपराधिक रिट याचिका संख्या 626/2022
केस टाइटलः अलक्षित पुत्र राजेश अंबाडे बनाम महाराष्ट्र राज्य