डॉक्टरों पर हमले के मामलों में अग्रिम जमानत देने से 'खतरनाक स्थिति' पैदा होगी: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ऐसे व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया, जिसने अपनी पत्नी की जांच करने वाले डॉक्टर पर यह आरोप लगाते हुए हमला किया कि डॉक्टर ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया।
जस्टिस ए. बदरुद्दीन की एकल न्यायाधीश पीठ का विचार था कि ऐसे मामले में अग्रिम जमानत देने से 'खतरनाक स्थिति' पैदा होगी, जिससे डॉक्टर, जो इलाज के लिए आए मरीजों का इलाज करने के लिए बाध्य हैं, उन्हें सुरक्षा नहीं मिलेगी। साथ ही बड़े पैमाने पर जनता के स्वास्थ्य का उचित रखरखाव भी संकट में होगा।
अदालत ने कहा,
"जिस डॉक्टर ने रोगियों के इलाज की विधि सीखने के लिए अपनी ऊर्जा और समय को बर्बाद किया, वह रोगियों की नैदानिक जांच करते समय रोगियों को छूए बिना उक्त काम नहीं कर सकते। यदि कोई रोगी उपचार चाहता है तो उसे स्पर्श करने के मामले में व्यथित नहीं होना चाहिए। याचिकाकर्ता के शरीर की जांच के हिस्से के रूप में डॉक्टर के लिए नैदानिक जांच का सहारा लेकर अपना मेडिकल पेशा करना मुश्किल है। इसमें हृदय की धड़कन की जांच और मूल्यांकन करने के लिए रोगी के बाएं सीने के हिस्से पर स्टेथोस्कोप रखना शामिल होगा। साथ ही यह न्यायालय इस तथ्य से अवगत है कि रोगियों की जांच करते समय डॉक्टर की सीमा को लांघकर दुर्व्यवहार के आधार पर सभी आरोप झूठे हैं। इस तरह के वास्तविक मामलों को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता। लेकिन आम तौर पर यह यह माना जा सकता है कि उन आरोपों की सत्यता का मूल्यांकन सामग्री और उपस्थित परिस्थितियों से किया जाना चाहिए, जिससे अनाज को फूस से अलग किया जा सके।"
अभियोजन का मामला यह था कि शिकायतकर्ता डॉक्टर उस समय ऑन-कॉल ड्यूटी कर रहा था। उसने आरोपी व्यक्ति की पत्नी की जांच की। इसी दौरान आरोपी ने डॉक्टर के गाल पर यह कहते हुए थप्पड़ मार दिया कि डॉक्टर ने आरोपी की पत्नी के शरीर को छुआ है। इसलिए याचिकाकर्ता पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 341, 323 और 294 (बी) के साथ-साथ केरल हेल्थकेयर सर्विस पर्सन एंड हेल्थकेयर सर्विस इंस्टीट्यूशंस (हिंसा की रोकथाम और क्षति की रोकथाम) एक्ट की धारा 3 और 4 के तहत दंडनीय अपराध करने का आरोप लगाया गया। इसी संदर्भ में याचिकाकर्ता अभियुक्त ने अग्रिम जमानत के लिए तत्काल आवेदन दायर किया।
याचिकाकर्ता के वकीलों ने तर्क दिया कि वह इस मामले में निर्दोष है और उसके खिलाफ लगाए गए आरोप झूठे हैं। यह माना गया कि डॉक्टर ने याचिकाकर्ता/आरोपी की पत्नी के साथ दुर्व्यवहार किया, जिसके लिए बाद वाले द्वारा उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 354 के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की गई, जिसके लिए जांच जारी है।
वकीलों ने इस प्रकार प्रस्तुत किया,
"यह मामला कानूनी परिणाम से बचने के लिए प्रतिवाद के रूप में दर्ज किया गया, जो आरोपी की पत्नी द्वारा दर्ज मामले से उत्पन्न होगा।"
वहीं, सीनियर लोक अभियोजक पी.जी. मनु ने उसी का खंडन किया और तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की आपराधिक पृष्ठभूमि है। वह पहले से ही चार अपराधों में शामिल है। उसने डॉक्टर के साथ बदसलूकी की, जबकि डॉक्टर उसकी पत्नी की जांच कर रहा था।
यह आगे तर्क दिया गया कि डॉक्टरों के खिलाफ हमले अब उच्च अलार्म पर हैं, इस प्रकार रोगियों की मेडिकल जांच करके अपना कर्तव्य निभाते और अपराधों में अपने निहितार्थ को देखते हुए वे खतरे और भय के अधीन हैं।
सीनियर लोक अभियोजक ने प्रस्तुत किया,
"इसलिए डॉक्टरों के खिलाफ धमकी बड़े पैमाने पर लोगों के हित के लिए हानिकारक होगी। इस प्रकार यह प्रस्तुत किया जाता है कि अग्रिम जमानत देने के लिए यह उपयुक्त मामला नहीं है, जहां अभियोजन पक्ष के आरोप अच्छी तरह से बनाए गए हैं।"
इस मामले में अदालत ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि अभियोजन पक्ष के मामले को अच्छी तरह से बनाया गया, दृश्य महजर और गवाहों के बयानों के साथ रिकॉर्ड का अवलोकन किया।
अदालत ने इस संबंध में जोड़ा,
"डॉक्टर के विकल्प पर दुर्व्यवहार का आरोप ऐसा हो, जिसे याचिकाकर्ता के वकील द्वारा कथित तौर पर दो बहनों की उपस्थिति में इंगित किया गया और अस्पताल में खुली जगह में किया गया, प्रथम दृष्टया इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। यह ध्यान रखना प्रासंगिक है कि दुर्व्यवहार का आरोप इस अपराध के रजिस्ट्रेशन के बाद उठाया गया।"
यह इस संदर्भ में है कि न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि याचिकाकर्ता के इशारे पर डॉक्टर के खिलाफ हमला सुनियोजित था और ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत देने से खतरनाक स्थिति पैदा होगी। इसमें कहा गया कि ऐसे मामलों में गिरफ्तारी और हिरासत में पूछताछ 'सफल जांच और घटनापूर्ण अभियोजन को पूरा करने के लिए आवश्यक' होगी।
अदालत ने कहा,
"इसलिए ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत देना, जब प्रथम दृष्टया अपराध बनता है, न केवल जांच को खराब करेगा, बल्कि दर्दनाक स्थिति पैदा करेगा। इसलिए मैं इस याचिका को अनुमति देने के लिए इच्छुक नहीं हूं।"
अग्रिम जमानत अर्जी खारिज करते हुए।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट जेआर प्रेम नवाज, सुमीन एस और मोहम्मद स्वदिक पेश हुए।
केस टाइटल: जमशेद पी.वी. बनाम केरल राज्य
साइटेशन: लाइवलॉ (केरल) 104/2023
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें