'दोपहर-भोजन योजना' के लिए सरकारी फंड अपर्याप्त, स्कूल हेडमास्टर पर्सनल लोन लेने को मजबूर: केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर
केरल हाईकोर्ट में केरल प्रदेश स्कूल शिक्षक संघ और कुछ सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों के हेडमास्टरों ने याचिका दायर की है। अपनी इस याचिका में उन्होंने सामान्य शिक्षा निदेशक को 'दोपहर भोजन योजना' (Noon-Meal Scheme) चलाने की जिम्मेदारी से हेडमास्टरों को मुक्त करने और उसे स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने का निर्देश देने की मांग की है।
सरकार द्वारा राज्य के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में आठवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए दोपहर-भोजन योजना शुरू की गई है। यह याचिका योजना के तहत धन के कथित असामयिक और अपर्याप्त वितरण के आलोक में दायर की गई है।
यह दावा किया जाता है कि योजना के तहत आवंटित धनराशि वास्तविक लागत का 50% भी पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। स्कूलों के हेडमास्टरों को अक्सर योजना के खर्चों को अपने वेतन और उधार ली गई धनराशि से पूरा करना पड़ता है। इसके अलावा, ऐसा कहा जाता है कि तथाकथित आवंटित धनराशि भी समय पर वितरित नहीं की जाती है।
याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि जब सरकार ने योजना लागू की थी तो प्रत्येक स्कूल में स्टूडेंटो की संख्या के आधार पर स्कूलों को देय राशि तय करने और उक्त राशि को हेडमास्टरों के अकाउंट में अग्रिम रूप से स्थानांतरित करने का आदेश दिया था। हालांकि, यह कहा गया कि प्रति बच्चा तय की गई लागत पर एक नज़र डालने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि लागत "पूरी तरह से अव्यवहारिक और अपर्याप्त" है।
याचिका में कहा गया,
"लागत में अंतर को संबंधित प्रधानाचार्यों को अपनी जेब से वहन करना होगा। हेडमास्टरों को इस कठिन स्थिति का सामना करना पड़ता है।"
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने यह भी निर्देश दिया था कि स्टूडेंट को अंडे और मिल्मा दूध दिया जाए। इसलिए प्रति स्टूडेंट अकेले इन चीजों की कुल लागत कम से कम 22.80/- रुपये होगी।
याचिका में कहा गया,
"सरकार द्वारा प्रति स्टूडेंट प्रति सप्ताह अधिकतम प्रतिपूर्ति केवल 40 रुपये दिए जाते है। अंडे और दूध की लागत घटाकर, जो बचता है वह प्रति स्टूडेंट प्रति सप्ताह केवल 17.20/- रुपये है। इसलिए प्रति स्टूडेंट प्रति दिन केवल 3.54/ रुपये बचते हैं। इसमें ईंधन और परिवहन की लागत शामिल है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार के वर्तमान सहायता के साथ इस योजना को चलाना असंभव है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अधिकांश हेडमास्टरों ने योजना को चलाने के लिए भारी पर्सनल लोन लिया है। वे इस योजना को रोकने की स्थिति में भी नहीं हैं, अन्यथा उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। इस प्रकार याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार के पास योजना को चलाने के लिए हेड मास्टरों को अपनी जेब से भुगतान करने के लिए मजबूर करने का कोई अधिकार नहीं है। राज्य को या तो योजना के लिए पूरे खर्चों को वहन करना चाहिए और अग्रिम भुगतान करना चाहिए या इसे पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए।
इन परिस्थितियों में यह आवश्यक है कि उत्तरदाता योजना की वास्तविक लागत का पता लगाने के लिए तत्काल कदम उठाएं और स्कूलों को अग्रिम भुगतान करें, जो लागत को पूरा करने के लिए पर्याप्त हो। अन्यथा सभी स्कूलों को उनकी कीमत पर किराने के सामान, अंडा और दूध की आपूर्ति करें। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार के लिए एकमात्र व्यावहारिक तरीका यह है कि वह इस योजना को चलाने के लिए एक बाहरी एजेंसी को नियुक्त करे।
याचिकाकर्ताओं ने इस प्रकार सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में 'दोपहर-भोजन योजना' को लागू करने की लागत का वैज्ञानिक रूप से पता लगाने और संबंधित स्कूलों के हेडमास्टरों को इसके लिए प्रत्येक माह आवश्यक राशि वितरित करने के लिए सरकार को निर्देश जारी करने की मांग की।
उन्होंने यह निर्देश जारी करने की भी मांग की कि हेडमास्टर योजना लागू करने के लिए तब तक बाध्य नहीं होंगे, जब तक कि इसे लागू करने के लिए खर्च का भुगतान उन्हें हर महीने अग्रिम रूप से नहीं किया जाता है। इसके अतिरिक्त, हेडमास्टर योजना लागू करने की जिम्मेदारी से मुक्त होने और इसे किसी अन्य स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने की मांग कर रहे हैं।
अंत में अंतरिम राहत के रूप में याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि हेडमास्टर को तब तक योजना को लागू करने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, जब तक कि प्रतिवादी याचिका के निपटारे तक हर महीने अग्रिम रूप से इसकी लागत का भुगतान नहीं करते।
यह याचिका एडवोकेट टोनी जॉर्ज कन्ननथनम, थॉमस जॉर्ज और एलेक्स जॉर्ज के माध्यम से दायर की गई।
केस टाइटल: केरल प्रदेश स्कूल शिक्षक संघ और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य।
केस नंबर: W.P.(C) 29565/2023