RT-PCR टेस्ट रिपोर्ट फर्जी बनाने का मामलाः केरल हाईकोर्ट ने COVID19 लहर का हवाला देते हुए लैब मालिक को जमानत दी

Update: 2021-05-30 09:45 GMT

Kerala High Court

केरल हाईकोर्ट  ने शुक्रवार को एक अरमा लैब और स्वास्थ्य के मालिक द्वारा दायर अग्रिम जमानत आवेदन पर विचार किया, जिसने कथित तौर पर रोगियों की फर्जी RT-PCR COVID19 रिपोर्ट तैयार की थी।

COVID19 की स्थिति पर विचार करने के बाद आवेदक को जमानत देते हुए, न्यायमूर्ति अशोक मेनन ने हालांकि कहा कि जांच अधिकारी द्वारा एकत्र की गई सामग्री आवेदक की मिलीभगत का संकेत देती है।

''जांच अधिकारी द्वारा अभी तक एकत्र की गई सामग्री आवेदक की मिलीभगत का संकेत देती है। आरोप भी गंभीर है और सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। लेकिन वर्तमान महामारी की स्थिति और जेलों में भीड़भाड़ कम करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए मुझे लगता है कि आवेदक को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की आवश्यकता नहीं है।''

जमानत मांगने वाले आवेदक और उसकी लैब के कर्मचारियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 465, 468, 471 और 420 के तहत जालसाजी और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था। आवेदक की प्रयोगशाला माइक्रो हेल्थ लेबोरेटरीज, कोझीकोड में किए जाने वाले COVID19 टेस्ट के लिए नमूनों की संग्रहकर्ता थी। इस लैब पर आरोप लगाया गया था कि उसने बेईमानी से जनता को अपनी प्रयोगशाला में कोरोना का टेस्ट कराने के लिए माइक्रो लैब में नमूने भेजे बिना प्रयोगशाला परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। जिन व्यक्तियों ने नमूने दिए, उनमें से ज्यादातर ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें विदेश यात्रा करने की आवश्यकता थी, उन्हें बिना किसी टेस्ट के माइक्रो लैब के नाम से नकली प्रमाणपत्र जारी कर दिए गए। इसके बाद माइक्रो लैब के जनसंपर्क निदेशक ने आवेदक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।

इसके तुरंत बाद, एक अन्य निजी प्रयोगशाला आर-सेल डायग्नोस्टिक एंड रिसर्च सेंटर ने आरोप लगाया कि आवेदक COVID19 टेस्ट के लिए उसका संग्रह एजेंट था और उसने एक व्यक्ति को नकारात्मक परीक्षण रिपोर्ट दी थी, जो वास्तव में पाॅजिटीव था। आर-सेल ने कहा कि जब उनकी लैब में नमूने का परीक्षण किया गया, तो व्यक्ति की रिपोर्ट पाॅजिटीव आई और उसके बाद आर-सेल ने इस तथ्य के बारे में अधिकारियों को सूचित किया।

जब अधिकारियों ने उस व्यक्ति से संपर्क किया, तो व्यक्ति ने अधिकारियों को सूचित किया कि उसे एक नकारात्मक रिपोर्ट मिली है। इसके बाद आर-सेल के एमडी ने भी आवेदक के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

अदालत में आवेदक ने आरोप लगाया कि दोनों प्रयोगशालाओं ने इसलिए शिकायत दायर की है क्योंकि उनको अपनी झूठी रिपोर्ट के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई का डर था।

लैब के कर्मचारियों के बयानों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि इस बात के संकेत थे कि आवेदक मान्यता प्राप्त लैब के नाम का इस्तेमाल कर रिपोर्ट में हेरफेर कर रहा था। स्टाफ ने कहा था कि आवेदक ने व्यक्तिगत रूप से माइक्रो लैब में भेजे जाने के लिए अपनी लैब में नमूने एकत्र किए थे। उन्होंने यह भी कहा कि नमूनों का केवल एक हिस्सा भेजा गया था, हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें नहीं पता था कि कोझीकोड नहीं भेजे गए बाकी नमूनों का क्या किया गया था।

इसके अतिरिक्त, जांच अधिकारी ने प्रस्तुत किया था कि आवेदक ने 2000 से अधिक नमूने एकत्र किए थे, लेकिन उनमें से केवल 500 को कोझीकोड की प्रयोगशालाओं में परीक्षण के लिए भेजा था।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि,

''यह एक मजबूत संकेत है कि आवेदक मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं के नाम का उपयोग करके रिपोर्ट में हेरफेर कर रहा था।''

हालाँकि, चूंकि आवेदक के खिलाफ कथित अपराधों में 7 साल से अधिक की सजा का प्रावधान नहीं है, इसलिए अदालत ने इंगित किया कि कोरोना की स्थिति और जेलों में भीड़भाड़ कम करने की आवश्यकता को देखते हुए कारावास का सहारा केवल तभी लिया जाना चाहिए,जब ऐसा करना आवश्यक हो और कोर्ट ने आवेदक को जमानत देना उचित समझा।

उन्हें एक महीने के भीतर जांच अधिकारी के समक्ष आत्मसमर्पण करने  और पूछताछ व रिकवरी के बाद 1,00,000 रुपये (एक लाख रुपये केवल) के बांड के निष्पादन व दो जमानदार पेश करने की शर्त पर जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया है।

केस का शीर्षकः सुनील सदाथ बनाम केरल राज्य

प्रतिनिधित्वःवरिष्ठ अधिवक्ता पी. विजया भानु, अधिवक्ता बी. प्रेमोद, पूजा पंकज, लोक अभियोजक वी. श्रीजा

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