परोपकारी कानूनों के मामले में साक्ष्यों का मूल्यांकन उदार तरीके से किया जाना चाहिएः केरल हाईकोर्ट

Update: 2022-09-06 09:35 GMT

केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि मोटर वाहन अधिनियम जैसे परोपकारी कानूनों के मामले में 'संभावनाओं और अनुमानों की प्रबलता' के चरम रूप पर जोर दिए बिना सबूतों का मूल्यांकन उदार तरीके से किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा,

"'संभावनाओं और अनुमानों की प्रबलता' दीवानी मामलों में आरोप संबंधी सबूतों की पूछताछ के लिए लागू साक्ष्य का नियम है। जब उदार कानूनों की बात आती है तो साक्ष्य का नियम कुछ और नहीं बल्कि 'संभावनाओं और अनुमानों की प्रबलता' है और ऐसे मामलों में, 'संभावनाओं और अनुमानों की प्रबलता' के चरम रूप पर जोर दिए बिना साक्ष्य का मूल्यांकन उदार तरीके से किया जाना चा‌हिए।"

ज‌स्टिस ए बदरुद्दीन ने उक्त टिप्‍पणी के आलोक में कहा कि एक लॉरी में क्लीनर के रूप में काम कर रहे एक व्यक्ति, जिसकी मृत्यु हो चुकी है, उसकी नौकरी साबित करने के लिए दस्तावेजी सबूत जोड़ना हमेशा संभव नहीं होगा और ऐसी परिस्थितियों में उपलब्ध साक्ष्यों का उदारतापूर्वक विश्लेषण किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा,

"... एक परोपकारी कानून पर आधारित मामले में, जैसा कि यहां ऊपर चर्चा की गई है, उपलब्ध साक्ष्यों की यह मानने के लिए अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि मृतक लॉरी में क्लीनर नहीं था, क्योंकि इस संबंध में कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं दिया गया है।"

मामला

मृतक नजमल एक लॉरी में क्लीनर के रूप में काम कर रहा था। उक्त लॉरी का ड्राइवर मौजूदा याचिका दूसरा प्रतिवादी है। वह केबिन में बैठा था और लॉरी को रिवर्स करा रहा था। इसी बीच उसका सिर नारियल के एक पेड़ और लॉरी के बीच फंस गया। चोट के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार, दावेदार याचिकाकर्ताओं ने 'नो फॉल्ट' के सिद्धांत पर मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163ए के तहत याचिका दायर की।

बीमाकर्ता न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, जो मामले में तीसरा प्रतिवादी है, उसने दावे से इनकार किया और कहा कि चूंकि कैरिज लॉरी को कवर कर रही पॉलिसी 'केवल देयता' पॉलिसी थी, और चूंकि मृत व्यक्ति लॉरी में एक 'फ्री पैसेंजर' था, इसलिए उसे पॉलिसी के तहत कवर नहीं किया जाएगा।

मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए मुआवजे की मात्रा के संबंध में भी विवाद उठाया गया।

ट्रिब्यूनल ने 3,25,500 रुपये का मुआवजा दिया था। ट्रिब्यूनल के निर्णय के खिलाफ दो अपीलें दायर की गईं - पहली बीमाकर्ता द्वारा और दूसरी मूल याचिकाकर्ताओं/दावेदारों द्वारा राशि की अपर्याप्तता के ‌खिलाफ।

दावेदारों ने तर्क दिया कि चूंकि एमवी एक्ट की धारा 163ए में संलग्न अनुसूची के अनुसार मृतक की आयु 18 वर्ष (20 वर्ष से कम) थी, इसलिए 6,84,000 रुपये के दो तिहाई के साथ अंतिम संस्कार के खर्च के लिए 2,000 रुपये और संपत्ति के नुकसान के लिए 2,500 रुपये दिए जाने चाहिए थे।

दावेदारों/अपीलकर्ताओं ने कहा कि कि ट्रिब्यूनल ने 'गुणक पद्धति' का प्रयोग किया, जिससे मुआवजा कम हो गया।

आगे यह तर्क दिया गया कि प्रथम दावेदार और मृतक के पिता ने स्पष्ट प्रमाण दिया था कि मृतक क्लीनर का काम कर रहा था और जिरह में वह अपने साक्ष्य पर अडिग रहा। इस आलोक में यह प्रस्तुत किया गया कि कंपनी पर दायित्व बन्धन के मामले में ट्रिब्यूनल को दोष नहीं दिया जा सकता।

आगे यह तर्क दिया गया कि भले ही यह स्वीकार कर लिया गया हो कि दुर्घटना के समय मृतक लॉरी का क्लीनर नहीं था, बीमा पॉलिसी के अनुसार एनएफपीपी के तहत प्रीमियम के रूप में 75 रुपये एकत्र किए गए थे, जिससे यह संकेत मिलता है कि कंपनी वास्तव में उत्तरदायी थी।

दूसरी ओर प्रतिवादी बीमा कंपनी (जो अन्य अपील में भी अपीलकर्ता है) ने तर्क दिया कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया कि दुर्घटना के समय मृतक लॉरी का क्लीनर था। आगे यह तर्क दिया गया कि मृतक एक नि:शुल्क यात्री था और इसलिए, बीमाधारक को क्षतिपूर्ति करने के लिए कंपनी का कोई दायित्व नहीं है, क्योंकि एक नि:शुल्क यात्री के जोखिम को कवर करने के लिए कोई प्रीमियम एकत्र नहीं किया गया था।

यह इस संदर्भ में था कि न्यायालय ने टिप्पणी की कि उदार कानूनों के मामले में साक्ष्य का मूल्यांकन उदार तरीके से किया जाना चाहिए, और यह माना गया कि मृतक वास्तव में दुर्घटना के समय लॉरी में क्लीनर के रूप में काम कर रहा था।

बीमाकर्ता द्वारा उठाया गया यह तर्क कि पॉलिसी 'केवल देयता' की थी, को भी खारिज कर दिया गया, क्योंकि न्यायालय को यह स्पष्ट हो गया कि दो कर्मचारियों के जोखिम को कवर किया गया था और उक्त कवर के लिए प्रीमियम भी एकत्र किया गया था।

हालांकि, कोर्ट ने इस सवाल को खुला छोड़ दिया कि क्या एनएफपीपी के तहत प्रीमियम का संग्रह भी कंपनी द्वारा दावेदारों को मुआवजे का भुगतान करने का हकदार होगा, भले ही स्थिति एक नि: शुल्क यात्री की हो।

अपीलीय न्यायालय ने इस प्रकार आदेश दिया कि दावेदार याचिका की तारीख से जमा या वसूली की तारीख तक 7.5% की दर से कुल मुआवजे के रूप में 4,60,500 रुपये के हकदार थे, और बीमा कंपनी को निर्देश दिया गया था कि निर्णय की तारीख से 2 महीने के भीतर दावेदारों के नाम समान अनुपात में जमा करने का निर्देश दिया गया।के

केस टाइटलः अब्दुल मजीद और अन्य बनाम पीवी प्रजोश व अन्य।

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 473

निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News