पोक्सो एक्ट के तहत 'पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट' को साबित करने के लिए स्खलन पूर्वशर्त नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत परिभाषित 'पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट' के अपराध को साबित करने के लिए केवल पेनिट्रेशन आवश्यक है।
कोर्ट ने उक्त टिप्पणियों के साथ बलात्कार के एक मामले में आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा।
2016 में छह साल की बच्ची के साथ गंभीर यौन उत्पीड़न और बलात्कार करने के लिए आरोपी को निचली अदालत ने दस साल की अवधि के लिए कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। अपील में दोषी की ओर से तर्क दिया गया कि चिकित्सा साक्ष्य से पता चलता है कि पीड़ित लड़की के साथ यौन संबंध नहीं बना था, क्योंकि जांच में वीर्य का पता नहीं चला था।
जस्टिस चीकती मानवेंद्रनाथ रॉय की पीठ ने दलील को खारिज करते हुए समझाया कि पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के मुताबिक "पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को साबित करने के लिए वीर्य का स्खलन आवश्यक शर्त नहीं है।"
कोर्ट ने कहा,
"अगर रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत से पता चलता है कि नाबालिग लड़की की योनि में लिंग या आरोपी के शरीर के किसी हिस्से या किसी वस्तु का प्रवेश है, तो वीर्य के स्खलन के बिना भी यह पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त है। पोक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत यही परिभाषा है। यहां तक कि IPC की धारा 375 के तहत अपराध को भी यही परिभाषा दी गई है।"
तथ्य
अभियुक्तों ने दोषसिद्धि और सजा के आक्षेपित निर्णय की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी थी कि रिकॉर्ड पर चिकित्सा साक्ष्य, जैसा कि अंतिम रिपोर्ट और आरएफएसएल रिपोर्ट से देखा गया है, और पीड़ित लड़की की जांच करने वाले डॉक्टर के साक्ष्य से पता चलता है कि पीड़ित लड़की पर हाल ही में संभोग का कोई सबूत नहीं था, क्योंकि उसकी जांच के समय वीर्य का पता नहीं चला था।
अभियुक्त की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने रिकॉर्ड में मौजूद चिकित्सा साक्ष्य की ठीक से सराहना नहीं की और एक गलत निष्कर्ष पर पहुंची कि अभियुक्त ने पीड़िता के खिलाफ पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट किया था।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि आरोपी ने पीड़िता की मां और उसके पति की मांग के अनुसार अपनी संपत्ति बेचने से इनकार कर दिया, उन्होंने उसके खिलाफ शिकायत की और उसके खिलाफ मामला दर्ज करवा दिया।
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, पीड़िता अपने घर के पीछे अपनी बड़ी बहन सहित अन्य बच्चों के साथ खेल रही थी। आरोपी उनके पास पहुंचा और पीड़िता को चॉकलेट का लालच दिया। जब अन्य बच्चे भाग गए तो आरोपी पीड़ित लड़की को अपने घर ले गया और पेनीट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट किया। पीड़िता की मां उसके घर पहुंची और शोर मचाया। इसके बाद आरोपी पीड़िता को धक्का देकर फरार हो गया।
लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि अभियुक्त द्वारा मामले में खुद पर झूठे आरोप लगाने के लिए पेश किया गया मकसद बिल्कुल झूठा है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि डॉक्टर के साक्ष्य "स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि रक्त मौजूद था। योनि में एक उंगली प्रवेश कर पा रही थी, और पीड़ित लड़की की योनि का हाइमन फटा हुआ है, इसलिए पीड़ित लड़की को संभोग के अधीन किया जा सकता है। "
निर्णय
अदालत ने पाया कि यह साबित करने के लिए कि अभियुक्त ने पीड़ित लड़की के खिलाफ गंभीर पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का अपराध किया था, अभियोजन पक्ष ने मुख्य रूप से पीड़ित लड़की की मां की गवाही पर भरोसा किया, जो घटना की चश्मदीद गवाह थी, साथ ही पीड़िता के सबूत और उसकी जांच करने वाले डॉक्टर पर भरोसा किया गया।
कोर्ट ने मां के साक्ष्य पर ध्यान दिया, जिसने आरोपी को अपनी बेटी के खिलाफ अपराध करते देखा था। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित बच्चे की मां प्रत्यक्षदर्शी है, जिसने आरोपी को अपने घर में पीड़ित लड़की के ऊपर पड़े देखा था।
अदालत ने आरोपी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि उसे झूठा फंसाया गया है क्योंकि उसने पीड़िता की मां को अपना घर बेचने से इनकार कर दिया था और वह उसके खिलाफ थी।
कोर्ट ने कहा, "कोई भी मां किसी व्यक्ति से प्रतिशोध लेने के लिए अपनी बेटी की गरिमा को बर्बाद करने का जोखिम नहीं उठाएगी, वह भी केवल इस आधार पर कि उसने अपनी संपत्ति को उसे बेचने से इनकार कर दिया। इसलिए, आरोपी द्वारा पीड़िता की मां के मकसद को जिम्मेदार ठहराते हुए उक्त बचाव में बिल्कुल भी सच्चाई या योग्यता नहीं है।"
अदालत ने कहा कि पोक्सो एक्ट की धारा 3 के तत्वों के आलोक में रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की जांच करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि आरोपी ने पीड़ित लड़की के खिलाफ यौन उत्पीड़न किया है।
अदालत ने पीड़ित लड़की और मां के बयान पर भी संज्ञान लिया। अदालत ने कहा कि यह साक्ष्य, चिकित्सा साक्ष्य के साथ मिलकर, निर्णायक रूप से साबित करता है कि आरोपी ने पीड़िता पर यौन उत्पीड़न का कृत्य किया है।
अदालत ने अपील खारिज करते हुए कहा, "किसी भी तर्क के तहत यह नहीं कहा जा सकता है कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि अभियुक्त ने पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट किया था।"
केस टाइटल: मिरियाला वजीराम बनाम आंध्र प्रदेश