अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के मामलों में अपील दायर करने पर राय देने के लिए दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियों की प्रतीक्षा न करें: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2021-06-22 07:26 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को राज्य सरकार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में बरी करने वाले आदेश के खिलाफ अपील दायर करने के लिए राय देने का काम शुरू करने के लिए अभियोजन विभाग द्वारा अपनाई जाने वाली प्रथा को ठीक करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि अपील दायर करने पर अपना ओपनियन देने के लिए आदेश और अन्य दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियों की प्रतीक्षा करना सही प्रैक्टिस नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की खंडपीठ ने कहा:

"अभियोजन विभाग और सरकारी मुकदमेबाजी विभाग के निदेशक एचके जगदीश द्वारा 9 जून को दायर किए गए एक हलफनामे पर कहा गया कि राज्य आसानी से बरी होने के फैसले की सामान्य प्रतियां और अन्य प्रासंगिक कागजात जैसे प्रदर्शित दस्तावेज, जमा की प्रतियां प्राप्त कर सकता है। ये आम तौर पर अभियोजक के पास उपलब्ध होती हैं।

अपने हलफनामे में जदगीश ने कहा कि जब तक प्रासंगिक दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त नहीं हो जाती, अपील दायर करने के मुद्दे पर राय देने का काम शुरू नहीं हो सकता। शायद प्रमाणित प्रतियों की प्रतीक्षा करने की यह सदियों पुरानी प्रथा देरी में बरी करने के खिलाफ अपील दायर करने में योगदान दे रही है।"

अदालत ने कहा,

"हम राज्य को उक्त पद्धति को ठीक करने का निर्देश देते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि बयानों, प्रदर्शित दस्तावेजों की प्रतियों और फैसले की सामान्य प्रति के आधार पर राय देने का काम शुरू हो। केवल तभी जब संबंधित अभियोजक जो राय देने वाला हो पाता है कि कुछ दस्तावेज गायब हैं, प्रमाणित प्रति के लिए आवेदन किया जा सकता है।"

अदालत ने अभियोजन निदेशक को इस संबंध में उचित दिशा-निर्देश तैयार करने और तीन सप्ताह की अवधि के भीतर अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया है।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के प्रावधानों के कार्यान्वयन से संबंधित, PARISHISTA JATHI / PARISHISTA PANGADAGALA MELVICHARANE MATTU BALAVARDANA SANGHA द्वारा दायर एक मामले के दौरान यह निर्देश आया।

अदालत ने राज्य सरकार को उन आंकड़ों को भी रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया, जैसा कि पहले के आदेश में निर्देश दिया गया था कि वास्तव में दायर अपीलों की संख्या और उन अपीलों की संख्या जहां दायर करने में देरी हुई थी। पूर्व में उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2015 में राज्य सरकार ने बीस अपीलें दायर करने की सिफारिश की थी।

हालांकि, जनवरी 2021 में राज्य सरकार द्वारा रिकॉर्ड पर रखे गए चार्ट में रिकॉर्ड किया गया है कि वर्ष 2015 में केवल छह अपीलें दायर की गई थीं। अदालत ने राज्य सरकार को 30 अप्रैल 2021 तक की जानकारी वाला एक संशोधित चार्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

मामले की अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी।

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