दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदी उपन्यासकार अनिल मोहन के उपन्यासों से ऑडियो बुक्स बनाने पर रोक लगाई

Update: 2020-12-04 11:45 GMT

 दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में प्रकाशकों (कुल 5) को वादी (अनिल मोहन भारद्वाज) के उपन्यास से ऑडियोबुक्स बनाने से रोक दिया है क्योंकि वादी ने दावा किया है कि उसके पास वैध काॅपीराइट है और उनकी लिखित सहमति के बिना ही ऐसा किया जा रहा है।

न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की खंडपीठ ने प्रतिवादियों को वादी (अनिल मोहन) की लिखित सहमति के बिना, उपन्यासों को प्रकाशित करने या फिर से प्रकाशित करने से भी रोक दिया है।

न्यायालय के समक्ष मामला

पीठ प्रसिद्ध हिंदी उपन्यासकार अनिल मोहन भारद्वाज के आवेदन पर सुनवाई कर रही थी।

उन्होंने न्यायालय के समक्ष कहा कि उन्होंने लगभग 750 उपन्यासों को लिखा और प्रकाशित किया है और लगभग 258 उपन्यास उनके मूल नाम के तहत लिखे गए हैं और उनके बाकी उपन्यासों को कई ट्रेड नामों के तहत प्रकाशित किया गया है।

वादी के अनुसार, उसने प्रतिवादी नंबर 1 (रवि पॉकेट बुक्स) के साथ वर्ष 2001 से 2015 की अवधि के बीच कई समझौते किए थे और पिछले वर्षों में,उसने प्रतिवादी नंबर 6 के साथ अपने 47 से अधिक उपन्यासों के प्रकाशन के लिए कुछ समझौते किए थे, जो प्रतिवादी नंबर 1 का पूर्ववर्ती/प्रेडिसेसर है। इन सभी उपन्यास का कॉपीराइट वादी के पास है और प्रतिवादियों को केवल प्रकाशन के अधिकार सौंपे गए हैं।

वादी की शिकायत यह है कि प्रतिवादियों को पता है कि उक्त उपन्यासों में उनका कोई काॅपीराइट नहीं है,इस तथ्य के बावजूद भी वह वादी की अनुमति के बिना उपन्यासों को प्रकाशित और पुनः प्रकाशित कर रहे हैं।

इसके अलावा, यह भी प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी उक्त उपन्यासों के लिए सहमत कीमतों से अधिक वसूल रहे हैं,और अब प्रतिवादी नंबर 1, 2, 4, 5 और 6 काल्पनिक नाम देते हुए उपन्यासों से ऑडियो बुक्स बनाने लग गए है, जो फिर से उनके कॉपीराइट का उल्लंघन करता है।

दूसरी ओर, प्रतिवादी नंबर 1 और 2 और 4 से 6 की तरफ से कहा गया कि प्रतिवादियों के कुछ उपन्यासों में कॉपीराइट हैं और अधिकांश उपन्यासों में प्रकाशन के अधिकार हैं।

कोर्ट का आदेश

वादी की दलीलों के साथ-साथ मामले में दायर किए गए दस्तावेजों पर विचार करते हुए, न्यायालय ने पाया कि वादी ने अपने पक्ष में एक प्रथम दृष्टया मामला बनाया है।

न्यायालय ने कहा कि यदि कोई अंतरिम निषेधाज्ञा नहीं दी जाती है, तो वादी को एक अपूरणीय क्षति होगी।

इसलिए, इस अदालत के समक्ष सुनवाई की अगली तारीख तक, प्रतिवादियों को वादी की लिखित सहमति के बिना उन उपन्यास को प्रकाशित करने या फिर से प्रकाशित करने से रोक दिया गया है जिनमें वैध कॉपीराइट अभी भी वादी के पास ही है।

प्रतिवादी नंबर 1, 2, 4, 5 और 6 को वादी की सहमति के बिना उन उपन्यासों की कीमतों में भी बदलाव नहीं करने के लिए निर्देशित किया गया है,जिसमें वैध कॉपीराइट वादी के पास है। वहीं वादी की लिखित सहमति के बिना उन उपन्यासों से ऑडियो बुक्स बनाने से भी रोका गया है,जिनमें वादी के पास वैध कॉपीराइट है।

इस मामले को आगे की सुनवाई के लिए 19 फरवरी, 2021 को सूचीबद्ध किया गया है।

वादी (अनिल मोहन भारद्वाज) का प्रतिनिधित्व एडवोकेट हर्षित बत्रा ने किया है,जिनके साथ एडवोकेट सुभोश्री सिल, जाह्नवी शर्मा और तवीश प्रसाद भी पेश हुए थे।

केस का शीर्षक - अनिल मोहन भारद्वाज बनाम रवि पॉकेट बुक्स व अन्य,सीएस (सीओएमएम) 525/2020,

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