दिल्ली हाईकोर्ट ने 3499 अंडर ट्रायल कैदियों को अंतरिम ज़मानत अवधि समाप्त होने से पहले जेल में आत्मसमर्पण करने के निर्देश दिए
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को COVID-19 के मद्देनजर अंतरिम जमानत पर छूटे सभी 3499 अंडरट्रायल कैदियों को जमानत अवधि समाप्त होने से पहले आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। इन कैदियों को कोरोना माहमारी के दौरान उच्चाधिकार समिति की सिफारिशों पर अंतरिम जमानत दी गई थी।
अब इन्हें अंतरिम जमानत अवधि समाप्त होने से पहले या 7 मार्च से पहले जेल अधीक्षकों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की खंडपीठ ने जेल के महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि उक्त आदेश को सभी 3499 अंडर ट्रायल कैदियों को टेलीफोन के साथ-साथ अन्य संबंधित माध्यमों से भी सूचित करें।
उक्त निर्देश 17 फरवरी, 2021 की उच्चाधिकार समिति की बैठक द्वारा किए गए अवलोकन और सिफारिशों पर आया है, जिसमें कहा गया था कि अंडरट्रायल कैदियों की अंतरिम जमानत की सीमा को नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।
18 फरवरी को दिए गए हाईकोर्ट के विडियो आदेश ने अंडरट्रायल कैदियों की अंतरिम जमानत को 15 दिनों के लिए और बढ़ा दिया था।
ऐसा करने के लिए कोर्ट ने कंवलजीत अरोड़ा, सदस्य सचिव, डीएसएलएसए को निर्देश दिया कि वे सुनवाई की अगली तारीख से पहले 17.02.2021 को आयोजित समिति की बैठक की रिपोर्ट रिकॉर्ड पर रखें।
बैठक की रिपोर्ट के अनुसार, यह देखा गया कि ऐसी परिस्थितियों में अंतरिम जमानत का लाभ, "सामाजिक व्यवस्था की गिरावट के लिए नहीं हो सकता है।"
यह कहा गया कि,
"समिति के सदस्य पिछली बैठक की रिपोर्ट से भी गुजरे हैं, जिसमें यह सुझाव किया गया है कि यदि दिल्ली में COVID-19 की स्थिति समान रहती है या गिरावट की प्रवृत्ति का पता चलता है, तो इस समिति द्वारा अंतरिम जमानत का कोई और विस्तार नहीं किया जाएगा। ऐसे सभी अंडरट्रायल कैदियों को अपने निजी वकील या डीएसएलएसए के पैनल के माध्यम से नियमित जमानत पाने के लिए अपने संबंधित न्यायालयों को स्थानांतरित करने के लिए पर्याप्त रूप से अधिसूचित किया गया।"
इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने 3499 अंडरट्रायल कैदियों की अंतरिम जमानत की अवधि को आगे बढ़ाने के लिए इच्छुक नहीं है। हालांकि न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सभी अंडरट्रायल कैदियों को नियमित जमानत देने के लिए संबंधित न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का आह्वान कर सकते हैं, जो उसके बाद कानून के अनुसार, खासियतों के आधार पर समान विचार कर सकते हैं।
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