चाइल्ड पोर्नोग्राफीः केवल भारतीय संस्कृति कवच का काम कर सकती है, इस खतरे से तभी निपटा जा सकता है, जब हम उचित मूल्यों को अपनाएंः मद्रास हाईकोर्ट
चाइल्ड पोर्नोग्राफिक कंटेट साझा करने के आरोप में गिरफ्तार एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए, मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खतरे से तभी निपटा जा सकता है, जब हम सभी सही मूल्यों को अपनाएं।
यह देखते हुए कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी बहुत ही गंभीर मुद्दा है, जिसके लिए कठोर रुख अपनाने की आवश्यकता है, जस्टिस जीआर स्वामीनाथन की खंडपीठ ने, हालांकि, एक बार के उपभोक्ता और डिजिटल डोमेन में ऐसी सामग्री को प्रसारित या प्रचारित या प्रदर्शित या वितरित करने वालों के बीच अंतर किया।
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा कि जैसे ही कोई डिजिटल स्पेस में कदम रखता है, वह राज्य या सोशल नेटवर्किंग साइट्स को चलाने वालों की निगरानी में आ जाता है। कोर्ट ने कहा, "अगर कोई निजता को लेकर उत्सुक है, तो ऐसे नेटवर्क से बाहर रहना ही एकमात्र विकल्प है। बेशक, मौजूदा दुनिया में, यह एक व्यवहार्य विकल्प नहीं है।"
इसके अलावा, यह देखते हुए कि POCSO एक्ट, 2012 की धारा 43 [अधिनियम के बारे में जन जागरूकता] केंद्र और राज्य सरकारों को कानून के प्रावधानों के बारे में जन जागरूकता फैलाने के उपाय करने के लिए बाध्य करती है। न्यायालय ने कहा, "लेकिन यह अकेले पर्याप्त नहीं हो सकता है। यह कि 'बिग ब्रदर' हमें देख रहा है, उन लोगों को नहीं रोक सकता है, जो इस तरह के दुराचार में शामिल होने के लिए दृढ़ हैं। सिस्टम भी हर अपराधी पर मुकदमा चलाने में सक्षम नहीं हो सकता है। इसलिए, केवल नैतिक शिक्षा के माध्यम से कोई रास्ता निकाला जा सकता है। केवल भारतीय संस्कृति ही एक बांध के रूप में कार्य कर सकती है।"
मामला
आरोपी पर पोक्सो एक्ट, 2012 की धारा 15 (1) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 बी के तहत मामला दर्ज किया गया था और गिरफ्तारी की आशंका के साथ, उसने एक अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी।
मामले में, अदालत ने पाया कि आरोपी ने फेसबुक मैसेंजर के से अपने दोस्त के साथ आपत्तिजनक सामग्री साझा की और चूंकि, घटना के बाद उसे प्रतिकूल सूचना नहीं दी गई और चूंकि उसने जांच में सहयोग किया, इसलिए उसे अग्रिम जमानत दी गई।
कोर्ट ने कहा कि यह एकबारगी की कार्रवाई थी और यह प्रसारण या व्यावसायिक उद्देश्यों का मामला नहीं था। हालांकि कोर्ट ने आरोपी को पुलिस के समक्ष पेश होने और एफआईआर में उल्लिखित सिम कार्ड और अपराध में शामिल अन्य उपकरणों के साथ मोबाइल फोन सौंपने का निर्देश दिया।
आरोपी को गिरफ्तारी की स्थिति में 5,000/- रुपये की राशि की दो जमानतों अरैर समान राशि के व्यक्तिगत बांड पर रिहा करने का आदेश दिया गया।
"चाइल्ड पोर्नोग्राफी स्वतंत्रता के दायरे से बाहर है"
कोर्ट ने कहा कि आज की तारीख में, पोर्नोग्राफी देखने जैसे निजी कृत्यों को प्रतिबंधित करने का कोई प्रावधान नहीं है। कई लोग ऐसे हैं जो इसे स्वतंत्र अभिव्यक्ति और गोपनीयता के अधिकार के अंतर्गत मानते हैं, हालांकि चाइल्ड पोर्नोग्राफी स्वतंत्रता के इस दायरे से बाहर है।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67-बी का उल्लेख करते हुए, जो चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित हर तरह के कृत्य को दंडित करता है, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी एक अपराध है।
कोर्ट ने कहा कि पिछले साल द इंडियन एक्सप्रेस ने एक पुलिस अधिकारी का हवाला दिया था, जिसने नागरिकों को चेतावनी दी थी कि उन्हें समझना चाहिए कि साइबर स्पेस पर गतिविधियों पर हमेशा नजर रखी जाती है।
न्यायालय ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि एनसीएमईसी (नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रेन) नामक एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ है और यह एक साइबर टिपलाइन रखता है, और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और उक्त एनजीओ के बीच एक समझौता है, जिसके जरिए वह अपनी सामग्री एनसीआरबी को उपलब्ध कराता है।
अदालत ने कहा, "पुलिस को भेजी गई एक ऐसी टिपलाइन ने याचिकाकर्ता को यहां फंसाया है और इस तरह मामला दर्ज किया गया।"
केस टाइटिल- पीजी सैम इन्फैंट जोन्स बनाम पुलिस निरीक्षक, थल्लाकुलम एडब्ल्यूपीएस, मदुरै की ओर से राज्य प्रतिनिधि
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें