क्या धारा 482 सीआरपीसी याचिका को केवल इस आधार पर खारिज किया जा सकता है कि डिस्चार्ज एप्लिकेशन लंबित है? सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

Update: 2023-02-04 13:07 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक विशेष अनुमति याचिका में नोटिस जारी किया, जिसमें यह मुद्दा उठाया गया था क्या हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक याचिका को केवल इस आधार पर खारिज कर सकता है कि डिस्चार्ज एप्लिकेशन लंबित है?

इस मामले में, याचिकाकर्ताओं-अभियुक्तों ने मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

अदालत ने देखा कि इस याचिका के लंबित रहने के दरमियान, सभी आरोपियों ने सीआरपीसी की धारा 239 के तहत ट्रायल कोर्ट के समक्ष आरोपमुक्त करने की याचिका दायर की थी, इसलिए अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि आरोपी समानांतर उपचार की मांग नहीं कर सकते।

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ के समक्ष,याचिकाकर्ताओं-अभियुक्तों की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आर बसंत ने आनंद कुमार मोहट्टा और अन्य बनाम राज्य (दिल्ली एनसीटी) (2019) 11 एससीसी 706 पर भरोसा किया, और दलील दी कि हाईकोर्ट को मामले के गुण-दोष पर विचार किए बिना याचिका को खारिज नहीं करना चाहिए।

आनंद कुमार मोहता मामले में, यह कहा गया था कि हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका पर विचार कर सकता है, जिसमें एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई हो, भले ही उस याचिका के लंबित रहने के दरमियान आरोप पत्र दायर किया गया हो।

कोर्ट ने कहा,

"इस धारा के शब्दों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग या न्याय के गर्भपात को रोकने के लिए न्यायालय की शक्ति के प्रयोग को केवल एफआईआर के चरण तक सीमित करता है। यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग तब भी कर सकता है, जब डिस्चार्ज एप्लिकेशन 2 (2011) 7 एससीसी 59 7 ट्रायल कोर्ट के पास लंबित हो।

वास्तव में, यह मानना न्याय का उपहास होगा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही में एफआईआर के स्तर पर हस्तक्षेप किया जा सकता है, लेकिन तब नहीं जब वह आगे बढ़ चुकी हो, और आरोप आरोप पत्र में तब्दील हो गए हों।

इसके विपरीत यह कहा जा सकता है कि अगर जांच के बाद एफआईआर चार्जशीट का रूप ले लेती है तो एफआईआर के कारण होने वाली प्रक्रिया का दुरुपयोग बढ़ जाता है। शक्ति निस्संदेह किसी भी अदालत की शक्ति की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रदान की जाती है।"

ज‌स्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने आदेश में कहा, धारा 482 सीआरपीसी के तहत आवेदन पर विचार करने के लिए मामला हाईकोर्ट को क्यों नहीं भेजा जा सकता है, कारण बताओ नोटिस जारी करें।

मामलाः सीवीके बालाकृष्णन बनाम तमिलनाडु राज्य | एसएलपी (सीआरएल) डायरी सं. 2041/2023

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News