क्या अग्रिम जमानत देते समय भरण-पोषण के भुगतान की शर्त लगाई जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस
क्या कोर्ट अग्रिम जमानत देते समय भरण-पोषण देने की शर्त लगा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस सवाल को उठाने वाली एक विशेष अनुमति याचिका में नोटिस जारी किया है।
इस मामले में पत्नी द्वारा आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 379 और 498A और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत शिकायत दर्ज कराई गई थी। गिरफ्तारी को लेकर आरोपी ने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि इसने उन्हें अग्रिम जमानत दे दी, लेकिन निर्देश दिया कि उन्हें 10,000 रुपये का गुजारा भत्ता देना चाहिए।
लगाई गई शर्त को चुनौती देते हुए आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मुनीश भसीन बनाम राज्य सरकार एनसीटी दिल्ली (2009) 4 एससीसी 45 पर इस तर्क के लिए भरोसा किया कि ऐसी स्थिति टिकाऊ नहीं है।
उक्त निर्णय में कहा गया था-
संहिता की धारा 438 के तहत एक कार्यवाही में, पत्नी और बच्चे को भरण-पोषण देने में न्यायालय को न्यायोचित नहीं ठहराया जाएगा... आम तौर पर, भरण-पोषण देने का प्रश्न को सक्षम न्यायालय द्वारा एक उचित कार्यवाही में निर्णय लिए जाने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए, जहां पक्ष अपने संबंधित मामले के समर्थन में सबूत पेश कर सकते हैं, जिसके बाद पति के भरण-पोषण का भुगतान करने का दायित्व निर्धारित किया जा सकता है और उचित आदेश पारित किया जाए सकता है, जिसमें पति को पत्नी के लए भरण-पोषण की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया जाएगा।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने नोटिस जारी करते हुए इस शर्त पर रोक लगा दी।
केस: अभिषेक कात्यायन बनाम बिहार राज्य | Special Leave to Appeal (Crl।) No(s)। 8750/2022