पीड़िता को नग्न करना आरोपी की आपराधिक मानसिक स्थिति को साबित करता है, निजी अंग को छूना आवश्यक नहीं है: कलकत्ता हाईकोर्ट पॉक्सो मामले में गंभीर यौन उत्पीड़न के लिए सजा को बरकरार रखा

Update: 2022-05-14 10:02 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पोक्सो एक्ट की धारा 10 के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न के दोषी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा नाबालिग पीड़िता को नग्न करने जैसी परिस्थितियां आरोपी की अपराधी मानसिक स्थिति को साबित करती हैं।

जस्टिस विवेक चौधरी ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि चूंकि किसी ने भी आरोपी को पीड़ित लड़की के निजी अंगों को छूते नहीं देखा, इसलिए यह यौन उत्पीड़न का अपराध नहीं होगा।

कोर्ट ने कहा,

"अपीलकर्ता की ओर से पेश विद्वान एडवोकेट का निवेदन कि किसी ने भी आरोपी को पीड़िता के निजी अंगों को छूते नहीं देखा और पीडब्लू-3 के साक्ष्य से यह पाया गया कि आरोपी पीड़िता के बगल में बैठा था; वह नग्न अवस्था में पीडब्लू-3 के बरामदे पर लेटी थी, आरोपी को यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए पोक्सो एक्ट की धारा 11 के तहत दोषी ठहराया जाना चाहिए था।

मैं अपीलकर्ता की ओर से पेश विद्वान एडवोकेट के इस अनुरोध को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं हूं क्योंकि अपीलकर्ता के विशिष्ट कृत्यों को पोक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत यौन कृत्य नहीं मानने का कोई कारण नहीं है।"

मौजूदा मामले में नाबालिग पीड़िता के पिता ने अपनी लिखित शिकायत में कहा था कि 18 अगस्त 2018 को उसकी बेटी उसके भाई यानि चाचा के घर शौच करने गई थी क्योंकि उस समय उसके घर में शौचालय नहीं था। चाचा के घर जाते समय आरोपी उसे जबरन घर के पास बने शौचालय के पीछे ले गया और उसकी पैंट उतार दी।

शिकायत में आगे कहा गया के आरोपी ने अपनी पैंट खोली और नाबालिग के निजी अपनी हाथों से छुआ। जब उसने लड़की के साथ बलात्कार करने की कोशिश की तो वह चिल्लाई। उसकी मदद के लिए आए ग्रामीणों ने आरोपी को ऐसी स्थिति में पकड़ लिया।

कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के दरमियान संबंधित ट्रायल जज ने पाया कि आरोपी ने पेनेट्रेटिव सेक्‍सुल असॉल्ट का कोई अपराध नहीं किया था और इसलिए उन्होंने माना कि आरोपी को पोक्सो एक्‍ट की धारा 9 के क्लॉज एम के अर्थ में गंभीर यौन हमले के आरोप के लिए दोषी ठहराया जा सकता है।

पोक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत 'यौन हमले' की परिभाषा में दिए गए वाक्यांश 'किसी अन्य कृत्य' की व्याख्या पर विचार करते हुए, न्यायालय ने कहा,

"'कोई अन्य कृत्य' में कृत्यों की प्रकृति शामिल है, जो उन कृत्यों के जैसे हैं, जिनका विशेष रूप से "एजुस्डेम-जेनेरिस" के सिद्धांत के आधार पर परिभाषा में उल्लेख किया गया है। कृत्य को उसी प्रकृति का या उसके आसपास होना चाहिए।"

रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर, अदालत ने कहा कि पीड़ित लड़की के साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि वह अपने चाचा के घर शौच करने गई थी। आरोपी ने उसे पीछे से पकड़कर उसका मुंह बंद कर दिया और उसे जबरन घर के पीछे ले गया, जहां उसने उसकी पैंट उतारी और उसके न‌िजी अंगों को छुआ। यह भी नोट किया गया कि प्रत्यक्षदर्शी की गवाही से पता चला था कि पीड़िता को बरामदे पर नग्न अवस्था में देखा गया था और आरोपी उसके बगल में बैठा था।

यह मानते हुए कि आरोपी के यौन इरादे को किसी भी संदेह से परे साबित कर दिया गया है, अदालत ने रेखांकित किया,

"आसपास की परिस्थितियां जैसे कि आरोपी का पीड़िता को पीडब्लू -3 के घर ले जाना, जबकि वह मौजूद नहीं थी। उसकी पैंट नीचे खींचना, उसे नग्न करना, आरोपी की मानसिक स्थिति को साबित करता है, और ऐसे मामले में, अदालत को पोक्सो एक्ट की धारा 30 के तहत आरोपी की आपराधिक मानसिक स्थिति के बारे में वैधानिक अनुमान लगाने का अधिकार है। आरोपी ने उक्त अनुमान का खंडन, यह साबित करके नहीं किया है कि उसकी ऐसी कोई मानसिक स्थिति नहीं है। इसलिए, आरोपी का यौन इरादा किसी संदेह से परे स्‍थापित हो चुका है।"

इस प्रकार, अदालत ने दोषसिद्धि के आदेश और निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा।

केस शीर्षक: चित्त बिस्वास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्‍य।

केस सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Cal) 172

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News