सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों ने भारत की बहुसांस्कृतिक प्रकृति की पुष्टि की हैः मद्रास हाईकोर्ट में दायर हस्तक्षेप आवेदन
मद्रास हाईकोर्ट में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन में कहा गया है कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के जगहें भारतीय समाज की बहुसांस्कृतिक प्रकृति की "प्रभावशाली अभिपुष्टि" हैं।
हस्तक्षेप आवेदन उन याचिकाओं के के विरोध में दायर किया है, जिनमें सभी विरोध सभाओं को हटाने की मांग की गई है। चेन्नई के नागरिक कुरुविल्ला आब्रहम ने हस्तक्षेप आवदेन दायर करते हुए कहा है, "मुझे अदालत को यह बताना चाहिए कि ये विरोध मेरे लिए शानदार अभिपुष्टि है कि भारतीय समाज अभिमानपूर्वक बहु-सांस्कृतिक है और उत्साहपूर्वक ऐसा है और कोई भी सरकार सुंदर भारतीय समाज पर कानून के जरिए एकरूपता थोप नहीं सकती है।"
कुरुविल्ला अब्राहम ने दावा किया कि वह नई दिल्ली स्थित शाहीन बाग और जंतर मंतर जैसे सीएए विरोधी प्रदर्शन स्थलों का कई दौरा कर चुके हैं।
उन्होंने अपने आवेदन में कहा है, "इन विरोध प्रदर्शनों की सुंदरता यह है कि वे नेतृत्वविहीन हैं। हर प्रदर्शनकारी ने भारत के उस विचार की जिम्मेवारी खुद उठा रखी है, जिसके लिए वे विरोध कर रहे हैं; और वे महात्मा गांधी के शांतिपूर्ण विरोध के आदर्शों के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। इन प्रदर्शनों ने मुझे 57 साल की उम्र में सक्रिय कर दिया है। इन प्रदर्शनों ने मुझे देश और समाज प्रति आशा और गर्व दिया है। इस देश के युवा और महिलाएं, जो इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे हैं, वे भारत के विचार का बचाव करने वाले सैनिक हैं।"
उन्होंने कहा कि इन विरोध प्रदर्शनों ने संविधानवाद और प्रस्तावना के विचार को लोकप्रिय बनाया है और भारतीय राष्ट्र की "विविधता में एकता" की अवधारणा को मजबूत किया है।
"संवैधानिक मूल्यों को इन विरोधों पर बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया गया है और बरकरार रखा गया है। हम प्रस्तावना को नियमित रूप से पढ़ते हैं और खुद को बताते हैं कि हम ऐसा देश हैं जो सभी के लिए समानता और अपनी विविधता में एकता के लिए प्रतिबद्ध हैं; हम विचार, अभिव्यक्ति और विश्वास की स्वतंत्रता के लिए खड़े होंगे। कि हम भाईचारे के साथ और मिलजुल कर रहेंगे। मैं प्रस्तावना को इससे पहले नहीं जानता था। मैंने इन विरोध प्रदर्शनों में इसे सीखा।
यहां एकता, बंधुत्व और भाईचारे के गीत गाए जाते हैं। युवा रैप गाने, कविता, पेंटिंग, कोलम, रंगोली के जरिए कला का निर्माण कर रहे हैं, एक ऐसी सुंदर कला, जो एक एकजुट, विविध नागरिक समाज को दिखाती है, जो विविधता में एकता के एक देश के रूप में भारत के विचार की खातिर उत्साह और रचनात्मकता के साथ खड़े हैं।"
विरोध प्रदर्शनों को हटाने की मांग ऐसे व्यक्तियों का समूह कर रहा है, जिनका कहना है कि विरोध अनुचित है और जनता के लिए असुविधा का कारण बन रहा है।
कुरुविल्ला अब्राहम ने अपने आवेदन में कहा है कि सीएए और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ विरोध वास्तविक चिंताओं पर आधारित है। यह बताया गया है कि कई बुद्धिजीवियों ने सीएए की यह कहते हुए आलोचना की है कि यह धार्मिक आधार पर भेदभाव को बढ़ावा दिया है और नागरिकता को धर्म से जोड़कर राष्ट्र की धर्मनिरपेक्ष नींव को झकझोर दिया है।
असम में हुई एनआरसी की कवायद के नतीजों का उल्लेख करते हुए आवेदन में कहा गया है कि ऐसी प्रक्रिया का देशव्यापी विस्तार कई कई सच्चे भारतीयों को नागरिकता से वंचित करेगा, और प्रभावित होने वाले में अल्पसंख्यक और हाशिए के लोग होंगे।
आवेदन में में यह भी उल्लेख किया गया है कि कई राज्यों की विधानसभाओं ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से कई व्यक्तियों और संगठनों ने सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सौ से अधिक रिट याचिकाएं दायर की हैं।
"लोग अपने परिवारों के लिए चिंतित हैं। लोग अपने धर्मनिरपेक्ष, बहु-सांस्कृतिक, बहुलतावादी भारत के विचार में किए जा रहे बदलावों को लेकर डरे हुए हैं, जो हमारे बच्चों के लिए सबसे बड़ी संपत्ति है। यही कारण है कि हम विरोध कर रहे हैं।"
"यह स्पष्ट है कि कोई भी व्यक्ति जो भारत की विविधता और बहुलतावाद में विश्वास करता है और मानता है कि भारत संस्कृतियों के समागम की भूमि है, वो ऊपर बताए गए घटनाक्रम (सीएए-एनआरसी) से परेशान होगा। ये घटनाक्रम सामान्य नहीं हैं। असाधारण हैं। बड़ी संख्या में नागरिकों के मन में भय और क्षोभ है, जिनका मानना है कि कि भारत के मूल विचार को खतरा है।"
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एम रामास्वामी की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।
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