[अनुच्छेद 233] पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अतिरिक्त और जिला सत्र न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए अधिसूचना जारी नहीं करने पर हरियाणा सरकार की आलोचना की
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए अपेक्षित अधिसूचना जारी नहीं करने पर हरियाणा सरकार से जवाब मांगा है। इस नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट द्वारा रिटन एग्जाम और वाइवा दिसंबर, 2022 में संपन्न हुआ था।
अतिरिक्त और जिला सत्र न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति के लिए 13 न्यायाधीशों की सूची इस साल फरवरी में राज्य को भेजी गई थी।
जस्टिस जी.एस. संधावालिया और जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन की खंडपीठ ने कहा,
"6 महीने से अधिक समय बीत चुका है... हमें कोई ठोस कारण नहीं दिख रहा है कि राज्य को संविधान के अनुच्छेद 233 के प्रावधानों के मद्देनजर अपेक्षित अधिसूचना जारी करने में देरी क्यों करनी चाहिए, जबकि पहले ही देर हो चुकी है। चंद्रमौलेश्वर प्रसाद बनाम पटना हाईकोर्ट, (1969) 3 एससीसी 56 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ही जिला न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नत होने के लिए उपयुक्त पाए जाने वाले अधिकारियों की दक्षता और गुणवत्ता से परिचित निकाय होता है। हाईकोर्ट को ही उन्हें नियुक्ति के लिए अनुशंसित किए जाने वाले व्यक्ति की उपयुक्तता और विश्वसनीयता देखनी होगी।''
कोर्ट को सूचित किया गया कि इसी तरह की कवायद पंजाब में भी की गई थी और वहां की राज्य सरकार ने अप्रैल में कोर्ट द्वारा की गई सिफारिशों का सम्मान करते हुए पंजाब सुपीरियर ज्यूडिशियल सर्विसेज रूल्स, 2007 के रूल 7(3)(ए) के तहत पदोन्नति को पहले ही अधिसूचित कर दिया है।
अब इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट मांगी गई है। स्टेटस रिपोर्ट पेश करने में विफल रहने पर हरियाणा सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव को 13 सितंबर को न्यायालय के समक्ष उपस्थित रहने और सिफारिशों पर बैठने का औचित्य साबित करने को कहा गया है।
अपीयरेंस: याचिकाकर्ता के लिए सीनियर एडवोकेट गुरमिंदर सिंह, एडवोकेट सिमुरिता सिंह के साथ और हरियाणा के एडवोकेट जनरल बी.आर. महाजन, अरुण बेनीवाल, डीएजी, हरियाणा के साथ।