हाईकोर्ट ने रायबरेली से राहुल गांधी के लोकसभा चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका की खारिज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वकील की याचिका खारिज की, जिसमें विपक्ष के नेता राहुल गांधी के रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के मामले में उनके खिलाफ क्वो वारंटो रिट की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता अशोक पांडे ने दावा किया था कि "सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों है" वाली टिप्पणी पर क्रिमिनल मानहानि केस में गांधी को दोषी ठहराए जाने के कारण उन्हें सांसद चुने जाने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
इस दलील को खारिज करते हुए जस्टिस शेखर बी सराफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला की डिवीजन बेंच ने कहा कि एक बार जब ऊपरी अदालत द्वारा सजा के आदेश पर रोक लगा दी जाती है तो रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट, 1951 की धारा 8(3) के तहत रोक लागू नहीं होती है।
कोर्ट ने कहा कि जब अपील पेंडिंग है और सजा पर रोक लगी हुई है तो "दोषी का पक्का निशान ऐसे व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता"। ध्यान दें, अगस्त, 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने क्रिमिनल मानहानि केस में उनकी सज़ा पर रोक लगा दी थी।
हाईकोर्ट में याचिका
अशोक पांडे ने खुद जाकर यह रिट याचिका फाइल की थी, जिसमें यह सवाल उठाया गया था कि राहुल गांधी किस कानूनी अधिकार के तहत लोकसभा के मेंबर का पद संभाल रहे हैं।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि सूरत कोर्ट द्वारा दर्ज की गई सज़ा और दो साल की सज़ा ने गांधी को संविधान के आर्टिकल 102 के साथ R.P. Act की धारा 8(3) के तहत डिसक्वालिफाई कर दिया।
पांडे ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने सज़ा के ऑर्डर पर रोक तो लगा दी थी, लेकिन उसने गांधी को चुनाव लड़ने की साफ तौर पर इजाज़त नहीं दी थी।
अफजल अंसारी के केस से तुलना करते हुए पांडे ने कहा कि अंसारी के केस में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें भविष्य के चुनाव लड़ने की इजाज़त देने वाले खास शब्दों का इस्तेमाल किया, लेकिन गांधी को ऐसी कोई खास इजाज़त नहीं दी गई।
इसलिए पांडे ने दलील दी कि गांधी डिसक्वालिफाई रहे और रायबरेली सीट के लिए उनका नॉमिनेशन पेपर गलत तरीके से एक्सेप्ट कर लिया गया। दूसरी तरफ, इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया (ECI) की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट ओपी श्रीवास्तव ने इस याचिका का विरोध किया, क्योंकि उन्होंने लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बहुत ज़्यादा भरोसा किया।
उन्होंने तर्क दिया कि अगर किसी सज़ा पर ऊपरी अदालत रोक लगा देती है तो सज़ा से होने वाली अयोग्यता खत्म हो जाती है।
हाईकोर्ट का निष्कर्ष
हाईकोर्ट ECI के वकील की इस बात से सहमत था, क्योंकि उसने सज़ा पर रोक और खुद सज़ा पर रोक के बीच फ़र्क बताया। बेंच ने कहा कि पहले मामले में धारा 8(3) के तहत रोक लागू होगी, लेकिन दूसरे मामले में नहीं।
कोर्ट ने कहा:
"जिस पल कोई ऊपरी अदालत सज़ा पर रोक लगाती है, सज़ा का अभिशाप खत्म हो जाता है और जिस व्यक्ति के खिलाफ़ ऐसी सज़ा पर रोक लगाई जाती है, भले ही उसे बरी न किया गया हो, उसे दोषी नहीं कहा जा सकता। यह तभी पता लगाया जा सकता है जब अपील पर फ़ैसला हो जाए कि वह दोषी होगा या बरी हुआ।"
इसके अलावा, बेंच ने लिली थॉमस (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी ज़िक्र किया, जिसमें यह माना गया कि सजा पर रोक के ऑर्डर की तारीख से डिसक्वालिफिकेशन लागू नहीं होगी।
हाईकोर्ट ने कहा,
"रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ पीपल्स एक्ट की धारा 8 के उप-धारा (1), (2) या (3) के तहत डिसक्वालिफिकेशन, कोड की धारा 389 के तहत अपीलेट कोर्ट या कोड की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट द्वारा सजा पर रोक के ऑर्डर की तारीख से लागू नहीं होगी।"
इसके बाद हाईकोर्ट ने पाया कि याचिका में कोई दम नहीं है। इसलिए उसने दिनेश कुमार सिंह को रायबरेली से चुना हुआ सदस्य घोषित करने की अर्जी खारिज कर दी।
बेंच ने आर्टिकल 134-A के तहत सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए सर्टिफिकेट के लिए पांडे की अर्जी भी खारिज की, क्योंकि उसने कहा कि इस मामले में कानून का कोई बड़ा सवाल नहीं उठता।
Case title - Ashok Pandey vs. Rahul Gandhi And 3 Others