चुनाव के बाद चुनाव चिन्हों के उपयोग पर आपत्त‌ि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका पर चुनाव आयोग को जारी किया नोटिस

Update: 2020-12-11 06:28 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग को 'आरक्षित चुनाव चिन्हों' के 'दुरुपयोग' से संबंधित एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया। चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और ज‌स्टिस पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील को निर्देश दिया कि मामले की जांच करें और जवाब दाखिल करें।

प्रतीक (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा 5 के तहत, आरक्षित चुनाव चिन्ह एक प्रतीक है, जिसे किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के "प्रत्याशियों के अनन्य आवंटन" के लिए आरक्षित किया जाता है।

याचिकाकर्ता ने चुनाव के बाद भी राजनीतिक दलों द्वारा आरक्षित चुनाव चिन्हों के प्रयोग पर आपत्ति जताई। उसने अपील की कि चुनाव चिन्ह को केवल और केवल एक उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के उद्देश्य से आवंटित किया जाना चाहिए, किसी अन्य उद्देश्य से नहीं।

याच‌िकाकर्ता ने कहा कि यदि राजनीतिक दलों को चुनाव के अलावा किसी अन्य उद्देश्य से चुनाव चिन्ह का उपयोग करने की अनुमति दी जाती है तो यह अन्यायपूर्ण और भेदभावपूर्ण होगा। ऐसे उम्मीदवार, जो मान्यता प्राप्त दलों से संबद्ध नहीं हैं, उनके पास चुनाव चिन्हों का हमेशा प्रचार करने का मौका नहीं होगा, जैसा कि मान्यता प्राप्त राजन‌ीतिक दलों के उम्‍मीदवारों के पास है।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, "जनप्रतिनिधित्व कानून और 1968 के आदेश के तहत, चुनाव चिन्हों की अवधारणा केवल चुनाव के उद्देश्य से लागू होती है और ऐसे ‌चिन्हों का उपयोग किसी राजनीतिक दल के प्रतीक के रूप में नहीं किया जा सकता। चुनाव चिन्हों की वैधता, मान्यता प्राप्त दल के उम्मीदवार के लिए आरक्षित चिन्ह की ‌थी, केवल एक विशिष्ट चुनाव के लिए है और उसी चिन्ह को अन्य मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों या अन्य चुनावों में अन्य उम्मीदवारों (निर्दलीय) को भी आवंटित किया जा सकता है।"

वकील ने कहा कि 1968 के आदेश के आदेश 16-ए के तहत, आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने स्थिति में, चुनाव आयोग के पास, किसी राजनीतिक दल की मान्यता को निलंबित करने या वापस लेने का अधिकार है....

याचिका में आग्रह किया गया था कि आरक्षित चुनाव चिह्न का उपयोग नि‌षिद्ध करने लिए आयोग को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए जाएं और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को आरक्षित प्रतीकों का दुरुपयोग न करने के लिए न‌िर्देश जारी किए जाएं।

याचिका में कहा कि गया था कि अधिकांश लोकतांत्रिक देशों ने, उच्च साक्षरता दर के बाद, चुनाव चिन्हों की अवधारणा को वापस ले लिया है, लेकिन भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में, चुनाव चिन्हों को वापस लेने का सरकार का कोई इरादा नहीं है..

इन दलीलों को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए 12 जनवरी, 2021 की तारीख तय की। मामले में संबंध‌ित राजनीतिक दलों को शामिल करने की अनुमति भी दी गई।

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पिछले साल, इलाहाबाद हाईकोर्ट की की लखनऊ बेंच ने सभी राष्ट्रीय दलों से राजनीतिक दलों द्वारा "आरक्षित चुनाव चिन्हों" के इस्तेमाल के खिलाफ दायर एक याचिका पर प्रतिक्रिया मांगी थीं।

उस मामले में, यह तर्क दिया गया था कि चुनाव आचरण नियम, 1961 के नियम 5 के अनुसार, "उम्मीदवारों" को प्रतीक का आवंटन केवल चुनाव में भागीदारी के लिए किया जाता है; राजनीतिक दलों द्वारा अपने दल के प्रतीक के रूप में इसका स्थायी रूप से उपयोग नहीं किया जा सकता है।

केस टाइटिल: काली शंकर बनाम भारत निर्वाचन आयोग और अन्य।

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