"दिल्ली की जेलों में खौफनाक स्थिति", पीयूडीआर ने राज्य सरकार, जेल अधिकारियों को आवश्यक दिशानिर्देश जारी करने की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा
पीपुल्स ऑफ यूनियन फॉर डेमोक्रैटिक राइट्स (पीयूडीआर) ने COVID की नयी संक्रामक लहर के मद्देनजर दिल्ली की जेलों के भीतर खौफनाक स्थिति के संदर्भ में दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल को एक पत्र लिखा है।
'इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित एक रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए पत्र में कहा गया है कि फिलहाल जेल के कैदियों में संक्रमण के 67 सक्रिय मामले सामने आये हैं और एक जेल अधीक्षक एवं दो जेल चिकित्सकों सहित 11 जेल कर्मी संक्रमित हैं। पत्र में यह भी कहा गया है कि कुल मिलाकर दिल्ली की जेलों में करीब 200 कैदी एवं 300 जेल कर्मी टेस्ट में COVID पॉजिटिव पायेगये हैं।
पत्र में महत्वपूर्ण रूप से कहा गया है,
"जेल में चिकित्सा व्यवस्था के खराब हालात और कैदियों की अत्यधिक भीड़ के कारण जेल के कैदी और स्टाफ खास तौर पर COVID संक्रमण को लेकर अति संवेदनशील होते हैं। सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट ने इस तथ्य को स्वीकार किया था और उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन के साथ ही 5124 कैदियों को अंतरिम जमानत, पैरोल और सजा माफी के नाम पर रिहा किया गया था।"
पत्र में आगे कहा गया है कि कैदियों को वापस जेल आने के संबंधित उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गत 17 फरवरी 2021 के आदेश के परिणामस्वरूप मार्च के प्रारम्भ में बड़ी संख्या में कैदी तिहाड़ और मंडोली जेल लौट चुके थे।
पत्र में कहा गया है,
"जिसके परिणामस्वरूप, जेल की आबादी 20 हजार से अधिक पहुंच गयी है, जो क्षमता से दोगुनी है। वर्तमान में, ऐसा कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है जिससे पता चल सके कि कितने कैदी खास तौर पर उम्र, कोमॉर्बिडिटी और अन्य कारकों की वजह से वायरस के संक्रमण के प्रति अति संवेदनशील हैं।"
महत्वपूर्ण रूप से, पत्र में इस बात का उल्लेख किया गया है कि अस्पताल में बिस्तरों, आईसीयू सुविधाओं, ऑक्सीजन, प्लाज्मा और आवश्यक दवाओं का घोर अभाव है, यहां तक कि अग्रिम मोर्चे के कर्मचारी अपनी सेवा देने में जरूरत से अधिक संलग्न हैं। जेलों के भीतर तो स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचों की स्थिति बहुत ही दयनीय है।
पत्र में कहा गया है कि इन दलीलों के मद्देनजर दिल्ली की जेलों के भीतर संक्रमण का विस्फोट प्रभावी मृत्यु दंड हो सकता है।
इसलिए, पत्र में मुख्य न्यायाधीश से राज्य सरकार, जेल अधिकारियों और अन्य को उचित दिशानिर्देश जारी करने पर विचार करने का आग्रह किया जाता है, ताकि कैदियों के स्वास्थ्य का अधिकार सुरक्षित रह सके।
पत्र में निम्न मांगें भी की गयी हैं :-
1. संक्रमण के प्रसार के आंकलन के लिए प्रत्येक जेल में कैदियों और कर्मचारियों का टेस्ट अभियान चलाया जाये। यह सूचना सार्वजनिक तौर पर पहुंच योग्य होनी चाहिए। रैपिड टेस्ट किट्स उपलब्ध कराकर निरंतर मोनिटरिंग सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किये जा सकते हैं।
2. जेलों के भीतर अधिक बिस्तर, आवश्यक मेडिकल उपकरण, पारा मेडिकल स्टाफ और एम्बुलेंस उपलब्ध कराकर अस्पताल वार्ड की क्षमता बढ़ायी जाये। वायरस के आगे प्रसार को रोकने के लिए सभी कैदियों और मेडिकल स्टाफ सहित सभी जेलकर्मियों को मास्क, दस्ताने, पीपीई किट्स आदि की आपूर्ति की जानी चाहिए।
3. सभी अति संवेदनशील कैदियों को, जो अंतरिम जमानत / पैरोल पर अपने परिवार में लौटने मे सक्षम हैं, उनके अपराध या सजा की प्रकृति को ध्यान में रखे बिना तत्काल रिहा किया जाये ।
(1) अति संवेदनशील कैदियों में महिलाएं एवं बच्चे, 50 साल की उम्र से अधिक के कैदी और कोमॉर्बिडिटी या दिव्यांगता वाले कैदी शामिल हैं।
(2) जमानतदार ला पाने में अक्षम कैदियों को निजी बॉण्ड पर रिहा किया जाना चाहिए।
(3) अधिकारियों द्वारा रिहा कैदियों की सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करनी चाहिए।
(4) साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कैदियों के अन्य अधिकार लंबित न किये जाएं। इनमें मजिस्ट्रेट के समक्ष समुचित साधनों के जरिये पेश होने के अधिकार, जमानत के लिए आवेदन करने तथा अन्य कानूनी उपायों के अधिकार, परिजनों, केयरटेकर और वकीलों आदि से ई-मुलाकात के अधिकार शामिल हैं।