निचली अदालत के निष्कर्ष को उलटने के लिए निष्पादन कार्यवाही के दौरान एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति नहीं की जा सकती: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2022-02-09 07:48 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि जब निचली अदालत संपत्ति के कब्जे के सवाल का फैसला कर चुकी हो, उसके बाद निष्पादन न्यायालय निष्पादन कार्यवाही में एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति नहीं कर सकता है।

जस्टिस आर रघुनंदन राव ने कहा, "मौजूदा मामले में, सक्षम क्षेत्राधिकार के ट्रायल कोर्ट ने पहले ही याचिकाकर्ता के पक्ष में संपत्ति के कब्जे के सवाल का फैसला कर लिया है। निष्पादन याचिका में आदेश पारित करते समय इस निष्कर्ष को निष्पादन न्यायालय उलट नहीं सकता है। निष्पादन न्यायालय को ऐसी स्थिति में एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति का निर्देश नहीं देना चाहिए था।"

तथ्य

याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा देने के लिए एक मुकदमा दायर किया था, जिससे उन्हें विवादग्रस्त संपत्ति पर याचिकाकर्ता के कब्जे में हस्तक्षेप करने से रोका जा सके।

याचिकाकर्ता के मामले को ट्रायल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया क्योंकि याचिकाकर्ता ने मालिकाना हक और कब्जे को साबित कर द‌िया। मुकदमे के निपटारे के बाद, याचिकाकर्ता ने इस आधार पर निष्पादन याचिका दायर की कि प्रतिवादी ट्रायल कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करने की मांग कर रहा था। प्रतिवादी ने संपत्ति की भौतिक विशेषताओं को नोट करने के लिए की एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति के लिए निष्पादन अपील दायर की।

प्रतिवादी का यह तर्क था कि चूंकि याचिकाकर्ता के पास कभी भी विवादग्रस्त संपत्ति का अधिकार नहीं था और चूंकि याचिकाकर्ता ने सही तथ्यों को छुपाकर निर्णय और डिक्री प्राप्त की थी, इसलिए विवाद्रग्रस्त संपत्ति का निरीक्षण करने के लिए एक एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति महत्वपूर्ण होगी।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी ने अपने मामले को साबित करने के लिए ‌विवादग्रस्त संपत्ति की तस्वीरें पहले ही दाखिल कर दी हैं और एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति आवश्यक नहीं है क्योंकि इससे मुकदमेबाजी लंबी होगी।

निष्पादन न्यायालय ने मामले के न्यायसंगत निर्धारण के लिए एक एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति के लिए आवेदन की अनुमति दी। उक्त आदेश से व्यथित होकर याच‌िकाकर्ता ने सिविल पुनरीक्षण याचिका दायर की है।

दलील

याचिकाकर्ता के वकील एडवोकेट नुथलापति कृष्ण मूर्ति ने तर्क दिया कि निष्पादन के स्तर पर एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति प्रभावी रूप से ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित फैसले और डिक्री को उलटने के लिए नए सबूत जोड़ने के लिए एक आवेदन है। उन्होंने तर्क दिया कि निष्पादन न्यायालय डिक्री के पीछे नहीं जा सकता है या ऐसे निष्कर्षों पर नहीं पहुंच सकता है जो डिक्री के विपरीत हैं।

प्रतिवादी के वकील सी. सुबोध वकील ने तर्क दिया कि यदि संपत्ति की भौतिक विशेषताओं को नोट करने के लिए एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति की जाती है तो याचिकाकर्ता को कोई नुकसान नहीं होगा।

टिप्पणियां

अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने पहले ही याचिकाकर्ता के पक्ष में संपत्ति के कब्जे के सवाल का फैसला कर लिया है। निष्पादन याचिका में आदेश पारित करते समय निष्पादन न्यायालय द्वारा निष्कर्ष को पलटा नहीं जा सकता है। इसके अलावा, निष्पादन न्यायालय ने उस अस्पष्टता को इंगित नहीं किया है जिसे एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति के माध्यम से निचली अदालत के समक्ष स्पष्ट करने की आवश्यकता है।

उपरोक्त अवलोकन के आधार पर, यह माना गया कि निष्पादन न्यायालय एक एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति का निर्देश नहीं दे सकता था। इस प्रकार सिविल पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार किया गया।

केस शीर्षक: एम राम चंद्रैया बनाम वैलेपु चीन अंकैया

सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (एपी) 12

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