'अर्नेश कुमार' मामले के दिशा-निर्देशों के उल्लंघन पर हुई गिरफ्तारी के आधार पर आरोपी जमानत लेने का हकदार: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
कुछ दिनों पहले जेलों में भीड़भाड़ कम करने पर जोर देने के बाद मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार (17 मई) को उच्चाधिकार प्राप्त समिति को प्राप्त सुझावों पर विचार करने और कैदियों की रिहाई पर अपनी सिफारिश करने का निर्देश दिया।
चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस अतुल श्रीधरन की खंडपीठ ने COVID-19 की दूसरी लहर के बाद देश और मध्य प्रदेश की अभूतपूर्व स्थितियों के मद्देनजर शुरू की गई एक स्वतः संज्ञान रिट याचिका पर यह निर्देश दिया।
सोमवार को कोर्ट को बताया गया कि 12 मई को उच्चाधिकार प्राप्त समिति की हुई बैठक में अनुशंसा के बावजूद मध्यप्रदेश की विभिन्न जेलों में बंद कैदियों की संख्या 45,582 (7 मई को) थी, जबकि उनकी कुल क्षमता 28,675 है। और यह बहुत कम नहीं होने जा रही है।
सुझाव
इसलिए, यह प्रस्तुत किया गया कि जेलों में भीड़ कम करने के वांछित उद्देश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है और इस प्रकार, यह सुझाव दिया गया कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति को ऐसे सभी दोषियों की पैरोल पर रिहाई की सिफारिश करने पर विचार करना चाहिए, जिन्होंने, उन्हें दी गई मूल सजा की एक तिहाई अवधि पूरी कर ली है, या जिन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, उन्होंने सात साल या उससे अधिक की सजा पूरी कर ली है।
वरिष्ठ वकील और एमिकस क्यूरी ने सुझाव दिया कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति को ऐसे सभी विचाराधीन कैदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने की सिफारिश करने पर भी विचार करना चाहिए, जो सजा की बाहरी सीमा के बावजूद, ऐसे अपराधों में मुकदमे का समाना कर रही हैं, जिनमें मुकदमा विशेष रूप से मजिस्ट्रेट की अदालत में ही चलाया जा सकता है।
तीसरा सुझाव यह था कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति को सभी महिला कैदियों, दोषियों और विचाराधीन कैदियों, की रिहाई की सिफारिश करने पर विचार करना चाहिए, उन्हें चाहे जिस भी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया हो....।
इस प्रकार, कोर्ट ने निर्देश दिया कि एचपीसी को इन तीनों श्रेणियों के तहत डाटा प्रदान किया जाए, और जिसके बाद, वह अपनी बैठक बुलाएगी और अपनी सिफारिश देते समय उपरोक्त सुझावों को ध्यान में रखेगी।
"अर्नेश कुमार जजमेंट में दी गई गाइडलाइंस का नहीं हो रहा पालन"
चंदर उदय सिंह, वरिष्ठ वकील और संकल्प कोचर, एमिकस क्यूरी ने प्रस्तुत किया कि अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य और एक अन्य (2014) 8 एससीसी 273 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देश के बावजूद, राज्य में पुलिस दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रही है।
इस पर, महाधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि वह यह पता लगाने के लिए मामले में निर्देश मांगेंगे कि क्या पुलिस महानिदेशक ने सभी पुलिस स्टेशनों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी अनिवार्य दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए सामान्य निर्देश जारी किए हैं।
कोर्ट का निर्देश
कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को राज्य के सभी पुलिस थानों को अर्नेश कुमार में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का अक्षरश: पालन करने के लिए तुरंत नया निर्देश जारी करने का निर्देश दिया।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि सभी न्यायिक मजिस्ट्रेटों को पुलिस द्वारा आरोपी को आगे हिरासत में रखने के लिए पेश किए जाने पर, अनिवार्य रूप से जांच करनी चाहिए कि संहिता की धारा 41 और 41 ए में निहित शर्तों का पालन किया गया है या नहीं और यदि, लिखित रूप में दर्ज कारणों से, संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट संतुष्ट है कि दोनों या इनमें से किसी भी प्रावधान का पुलिस द्वारा अनुपालन नहीं किया गया है, वह आरोपी की और हिरासत को अधिकृत करने से इनकार करेगा और तत्काल रिहाई का निर्देश देगा।
न्यायालय ने यह भी कहा, यदि उपरोक्त दिशानिर्देशों के पालन के बिना कोई गिरफ्तारी की गई है, तो संबंधित आरोपी केवली इसी आधार पर नियमित जमानत के लिए सक्षम अधिकार क्षेत्र की अदालत में सीधे आवेदन करने का हकदार होगा।
कोर्ट ने हाईकोर्ट के महापंजीयक को इस आदेश की प्रति के साथ अर्नेश कुमार में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति को फिर से राज्य के सभी जिला जजों को न्यायिक मजिस्ट्रेटों पर तामील करने के लिए प्रसारित करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने राज्य न्यायिक अकादमी के निदेशक को न केवल न्यायिक मजिस्ट्रेटों बल्कि पुलिस अधिकारियों को भी एमपी पुलिस अकादमी के साथ मिलकर, जिलों या संभाग-वार, बैचों में ऑनलाइन / वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित करने के लिए कहा।
गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि अर्नेश कुमार के दिशा-निर्देशों के उल्लंघन में कोई गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए।
किशोरों के मामले
कोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जबलपुर के सदस्य सचिव को निर्देश दिया कि संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के सदस्य सचिव अपने कानूनी सहायता परामर्शदाताओं के माध्यम से कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों की ओर से, अवलोकन गृहों से उनकी रिहाई के लिए संबंधित किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष उपयुक्त आवेदन प्रस्तुत करें, जिस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों के आलोक में, विशेष रूप से जेजे अधिनियम की धारा 12 के प्रावधान को ध्यान में रखते हुए, दाखिल करने की तारीख से तीन दिनों की अवधि के भीतर फैसला किया जाए।
मामले की अगली सुनवाई 31 मई को होगी।
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