आरोपी को जिरह के दरमियान गवाह से दस्तावेज के साथ कन्फ्रंट करने का पूरा अधिकारः केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि किसी आरोपी को अदालत के समक्ष जिरह के दरमियान किसी गवाह से एक दस्तावेज के साथ कन्फ्रंट करने का पूरा अधिकार है, विशेष कर तब जब कि दस्तावेज उसी गवाह की ओर से दिया पिछला बयान है।
जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि अदालत के समक्ष ऐसे दस्तावेज को अग्रिम रूप से पेश करना आवश्यक नहीं था और ऐसा मैंडेट उसमें शामिल आश्चर्य के तत्व को समाप्त करता है।
मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता पर आरोप था कि उसने कथित रूप से अपनी 11 वर्षीय सौतेली बेटी के होठों पर किस किया था और अपनी जीभ उसके मुंह में फंसा दी थी। उस पर आईपीसी की धारा 354, 341, 323 और पोक्सो एक्ट की धारा 7 सहपठित 8 और 9 सहपठित 10 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
विशेष अदालत के समक्ष नाबालिग पीड़िता और उसकी मां को अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में पेश किया गया था। मुकदमे के दरमियान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने मां की ओर से दायर तलाक याचिका में दिए एक विरोधाभासी बयान को पेश कर उससे जिरह करने की कोशिश की। वकील ने तलाक याचिका की प्रमाणित प्रति पेश की थी।
हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए अवसर देने से इनकार कर दिया कि दस्तावेज को कोर्ट ऑफिस में पेश किया जाना चाहिए। जब यह किया गया, तो निचली अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि दस्तावेज को तीन दिन पहले पेश करना होगा। याचिकाकर्ता के वकील को बाद में गवाह से इस बयान के संबंध में सवाल पूछने की भी अनुमति नहीं दी गई।
उसी से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और बयान के दस्तावेज को अग्रिम रूप से पेश करने पर जोर दिए बिना मां से जिरह करने की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की।
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता और मां के बीच संबंध तनावपूर्ण थे और उनके बीच वैवाहिक विवाद लंबित थे।
तथ्यों का विश्लेषण करने के बाद, जस्टिस एडप्पागथ ने कहा कि अभियुक्त को जिरह के दरमियान गवाह से एक दस्तावेज के साथ कन्फ्रंट करने का पूरा अधिकार है और इसे अग्रिम रूप से अदालत के सामने पेश करने की आवश्यकता नहीं है।
इन परिस्थितियों में, जज ने कहा कि निचली अदालत का स्टैंड कानून के अनुसार नहीं था।
हालांकि, चूंकि दस्तावेज पहले ही ट्रायल कोर्ट में पेश किया जा चुका है, इसलिए याचिका का निस्तारण मां को वापस बुलाने के निर्देश के साथ किया गया और याचिकाकर्ता के वकील को उसकी तलाक की याचिका में दिए बयान के विरोधाभासी भागों का सामना करके उसकी फिर से जांच करने की अनुमति दी गई।
केस टाइटल: XXX बनाम केरल राज्य
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केर) 383