PMLA मामलों में दोषसिद्धि दर में सुधार नहीं होने तक लोग ED की गिरफ़्तारियों को लेकर संशय में रहेंगे: जस्टिस उज्जल भुयान

सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस उज्जल भुयान ने रविवार को कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) धन शोधन से निपटने के लिए महत्वपूर्ण हथियार है, लेकिन इसकी बेहद कम दोषसिद्धि दर सुप्रीम कोर्ट द्वारा उक्त अधिनियम से उत्पन्न मामलों में ज़मानत देने के प्रमुख कारणों में से एक है।
जज ने बताया कि 2014 से 2024 तक जबकि प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 5.3 हज़ार से अधिक मामले दर्ज किए, लेकिन एजेंसी केवल 40 ऐसे मामलों में ही दोषसिद्धि सुनिश्चित करने में सफल रही है।
जस्टिस भुयान ने कहा,
"PMLA मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने का एक हथियार है तो हम जमानत के बारे में इतना क्यों बोल रहे हैं? केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों से पता चलता है कि PMLA मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है। 2024 तक ED ने 5 हजार से अधिक मामले दर्ज किए, जबकि केवल 40 मामलों में दोषसिद्धि हुई, जो कि बहुत कम है। इस तथ्य पर भी विचार करें कि PMLA के तहत अधिकतम सजा 7 साल है। मुकदमे की शुरुआत में काफी देरी होती है। बड़ी संख्या में गवाह और साक्ष्य भी मुकदमे के देरी से समाप्त होने का एक कारण हैं।"
जज ने सवाल किया कि जब दोषसिद्धि की दर इतनी कम है तो क्या किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के लंबे समय तक जेल में रखना सही होगा।
जस्टिस भुयान ने कहा,
"जब दोषसिद्धि की दर कम होती है तो किसी व्यक्ति को हमेशा या बहुत लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने आजकल इस बात पर जोर दिया कि PMLA मामलों में भी 'जमानत नियम है और जेल अपवाद है'।"
जज ने आगे बताया कि PMLA मामलों में अदालतों द्वारा जमानत दिए जाने के कारण आम जनता में यह गलत धारणा बढ़ रही है कि 'जमानत को बरी किए जाने के बराबर माना जाता है।'
जज ने रेखांकित किया,
"हम (जजों के रूप में) प्रतिशोध की भावना से काम नहीं करते हैं, बल्कि हम आनुपातिक रूप से काम करते हैं। हम अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल मापा हुआ तरीके से करते हैं। इसलिए ध्यान उचित जांच पर होना चाहिए और जब तक दोषसिद्धि दर में सुधार नहीं होता, लोग PMLA के तहत गिरफ्तारी, ECIR रजिस्ट्रेशन के बारे में संदेह में रहेंगे।"
जज मुंबई के कफ परेड क्षेत्र में आयोजित कार्यक्रम में एडवोकेट अखिलेश दुबे द्वारा लिखित पुस्तक - 'पीएमएलए, कानून और अभ्यास पर ग्रंथ' के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे।
इस कार्यक्रम में बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस आलोक आराधे, जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस महेश सोनक के साथ-साथ महाधिवक्ता डॉ. बीरेंद्र सराफ भी मौजूद थे।
सभा को संबोधित करते हुए जस्टिस मोहिते-डेरे ने भी सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों का जिक्र किया, जिसमें PMLA मामलों में आरोपियों को जमानत दी गई। जज ने अपने भाषण में इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे इसी तरह के एक मामले से निपटते हुए उन्होंने एक खंडपीठ का नेतृत्व करते हुए रात के समय भी लोगों से पूछताछ करने और बाद में उन्हें गिरफ्तार करने वाले ED के अधिकारियों के आचरण की निंदा की।
जज ने कहा,
"हमारे सामने जो मामला आया, वह PMLA मामले में आरोपी व्यक्ति का था, उसे सुबह 10:30 बजे ED कार्यालय बुलाया गया था, लेकिन उससे रात में ही पूछताछ की गई और यह पूछताछ सुबह 3:30 बजे तक चली और उसे सुबह 5:30 बजे गिरफ्तार दिखाया गया। हमने गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका खारिज कर दी, लेकिन ED अधिकारियों के इस आचरण की निंदा की। केंद्रीय एजेंसी ने अब दिशा-निर्देश जारी किए, जिसमें अधिकारियों को केवल कार्यालय समय के दौरान ही लोगों से पूछताछ करने का आदेश दिया गया।"