सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2022-04-17 06:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (11 अप्रैल, 2022 से 15 अप्रैल, 2022 ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

विशिष्ट अदायगी के लिए सूट - एक बार जब वेंडर समझौते के निष्पादन और अग्रिम भुगतान स्वीकार कर लेता है, तो आगे कुछ भी साबित नहीं करने की जरूरत है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि एक बार बेचने के लिए समझौते का निष्पादन और पर्याप्त अग्रिम राशि का भुगतान विक्रेता द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो बिक्री समझौते की विशिष्ट अदायगी से संबंधित एक सूट में खरीदार द्वारा साबित करने के लिए और कुछ भी आवश्यक नहीं है।

न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की अनुमति दी, जिसने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें बिक्री के लिए समझौते की विशिष्ट अदायगी के लिए डिक्री देने का आदेश दिया गया था।

केस का नाम: पी. रामसुब्बम्मा बनाम वी. विजयलक्ष्मी और अन्य।

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अपीलीय न्यायालयों को सीपीसी आदेश 41 नियम 33 के तहत शक्ति का प्रयोग सिर्फ दुर्लभ मामलों में करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया हैकि सीपीसी आदेश 41 नियम 33 ने अपीलीय न्यायालयों को असाधारण शक्ति प्रदान की है, इसे केवल अपवाद मामलों में ही प्रयोग किया जाना चाहिए। सीपीसी का आदेश 41 नियम 33 इस तथ्य की परवाह किए बिना कि अपील केवल डिक्री के एक हिस्से के संबंध में है या अपील केवल कुछ पक्षकारों द्वारा दायर की गई है, किसी मामले में उचित आदेश पारित करने के लिए अपील की अदालत की शक्ति से संबंधित है। दूसरे शब्दों में, अपीलीय न्यायालय अपील के दायरे की परवाह किए बिना एक आदेश पारित कर सकता है जैसा कि वह उचित समझे।

केस: ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड और अन्य बनाम रवींद्र कुमार भारती | 2022 की सिविल अपील संख्या 2794

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फेरीवाले हॉकर प्लेस पर रात भर सामान रखने के अधिकार का दावा नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि किसी भी फेरीवाले (Hawker) को केवल हॉकिंग नीति (Hawking Policy) के अनुसार ही बाजार में फेरी लगाने की अनुमति दी जा सकती है, न कि उसके खिलाफ।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने यह भी कहा कि एक फेरीवाले को यह आग्रह करने का कोई अधिकार नहीं है कि उसे अपना सामान उस स्थान पर रखने की अनुमति दी जा सकती है जहां वह रात भर हॉकिंग कर रहा है।

केस का शीर्षक: मदन लाल बनाम एनडीएमसी एंड अन्य | एसएलपी (सी) 5684/2022

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सीआरपीसी 468 के तहत निर्धारित परिसीमा अवधि घरेलू हिंसा कानून की धारा 12 के तहत आवेदन दायर करने के लिए लागू नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 468 के तहत निर्धारित परिसीमा अवधि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत एक पीड़ित महिला द्वारा आवेदन दायर करने के लिए लागू नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को गलत बताया जिसमें कहा गया था कि धारा 12 का आवेदन कथित घरेलू हिंसा के कृत्यों के एक वर्ष के भीतर दायर किया जाना चाहिए था।

घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 एक पीड़ित महिला को अपने पति या ससुराल वालों द्वारा किए गए घरेलू हिंसा के कृत्यों के खिलाफ मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दायर करने की अनुमति देती है जिसमें विभिन्न राहत - जैसे संरक्षण या प्रतिबंध या मुआवजे के भुगतान के आदेश शामिल हैं। धारा 468 सीआरपीसी अपराधों पर संज्ञान लेने के लिए परिसीमा अवधि निर्धारित करती है। अपराध की सजा के आधार पर, विभिन्न परिसीमा अवधि निर्धारित की जाती है।

कामतची बनाम लक्ष्मी नारायणन | 2022 लाइव लॉ (SC) 370 | सीआरए 627/ 2022 | 13 अप्रैल 2022

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उचित शैक्षणिक मानकों, वातावरण, बुनियादी ढांचे व कुप्रशासन की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के अधिकार को विनियमित किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उचित शैक्षणिक मानकों, वातावरण व बुनियादी ढांचे के रखरखाव और कुप्रशासन की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए एक शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के अधिकार को विनियमित किया जा सकता है।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (नए डेंटल कॉलेजों की स्थापना, अध्ययन या प्रशिक्षण के नए या उच्च पाठ्यक्रम की शुरूआत और डेंटल कॉलेजों में प्रवेश क्षमता में वृद्धि) विनियम, 2006 के नियम 6(2)(एच) को बरकरार रखते हुए इस प्रकार कहा।

डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम बियाणी शिक्षण समिति | 2022 लाइव लॉ ( SC) 366 | 2022 की सीए 2912 | 12 अप्रैल 2022

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यदि कैट के न्यायिक सदस्य और प्रशासनिक सदस्य के बीच अंतर है, तो तीसरे सदस्य को रेफर करें; पूर्ण पीठ को रेफर करने की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के न्यायिक सदस्य और प्रशासनिक सदस्य के बीच मतांतर की स्थिति में कैट की पूर्ण पीठ के रेफरेंस की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति में, मामले को तीसरे सदस्य/अध्यक्ष को संदर्भित करने की आवश्यकता होती है, जिसे इस तरह के संदर्भ पर अपना निर्णय देना होता है।

दलजीत सिंह बनाम अरविंद सम्याल | 2022 लाइव लॉ (एससी) 364 | एसएलपी (सी) 5192-5194/2022 | 1 अप्रैल 2022

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बाद के वर्ष के लिए मेडिकल प्रवेश के लिए दी गई अनुमति को पिछले वर्ष के लिए दी गई अनुमति नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि बाद के शैक्षणिक वर्ष के लिए छात्रों के प्रवेश के लिए दी गई अनुमति को पिछले शैक्षणिक वर्ष के लिए दी गई अनुमति नहीं माना जा सकता है, जब आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (स्नातकोत्तर आयुर्वेद शिक्षा) विनियम, 2016 के अनुसार न्यूनतम मानक के मानदंडों को पूरा नहीं कर रहा था। उक्त शर्तों में इसने आयुर्वेद शास्त्र सेवा मंडल और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (2013) 16 SCC 696 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रभाव को स्पष्ट किया।

केस : सेंट्रल काउंसिल फॉर इंडियन मेडिसिन बनाम कर्नाटक आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज और अन्य।

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बाद के शैक्षणिक वर्ष के लिए छात्रों को मेडिकल में एडमिशन के लिए दी गई अनुमति को पिछले शैक्षणिक वर्ष की अनुमति नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि बाद के शैक्षणिक वर्ष के लिए छात्रों को मेडिकल में एडमिशन के लिए दी गई अनुमति को पिछले शैक्षणिक वर्ष के लिए दी गई अनुमति नहीं माना जा सकता है, जब आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (स्नातकोत्तर आयुर्वेद शिक्षा) विनियम, 2016 के अनुसार न्यूनतम मानक के मानदंडों को पूरा नहीं कर रहा था। उक्त शर्तों में इसने आयुर्वेद शास्त्र सेवा मंडल एंड अन्य बनाम भारत संघ एंड अन्य (2013) 16 एससीसी 696 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्रभाव को स्पष्ट किया।

केस का नाम: सेंट्रल काउंसिल फॉर इंडियन मेडिसिन बनाम कर्नाटक आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज एंड अन्य।

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वक्फ बोर्ड के मनोनीत सदस्य का कार्यकाल घटाया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि वक्फ बोर्ड (Wakf Board) के मनोनीत सदस्य के कार्यकाल में कटौती की जा सकती है। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि नामांकन के तरीके से सदस्यों की नियुक्ति चुनाव से थोड़ा अलग स्तर पर होती है। इस मामले में दिनांक 13.09.2019 की अधिसूचना के तहत एक शेख महमूद की महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्ति की गई जिसे बाद की अधिसूचना दिनांक 04.03.2022 द्वारा रद्द कर दी गई।

महाराष्ट्र राज्य बनाम शेख महमूद | 2022 लाइव लॉ (एससी) 363 | सीए 2784 ऑफ 2022 | 6 अप्रैल 2022

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आईपीसी की धारा 366 ज़बरदस्ती शादी करने पर ही लागू होगी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 366 के तहत अपराध तभी आकर्षित होगा जब शादी ज़बरदस्ती, अपहरण करके या किसी महिला को उकसा कर की जाए। इस मामले में नाबालिग लड़की के अपहरण के आरोप में अपीलकर्ता पर आईपीसी की धारा 363 और 366 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया।

बाद में अपीलकर्ता ने अपहरणकर्ता के साथ राजस्थान हाईकोर्ट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दायर कर एफआईआर और उससे उत्पन्न होने वाली सभी कार्यवाही को रद्द करने की प्रार्थना की।

मफत लाल बनाम राजस्थान राज्य | 2022 लाइव लॉ (एससी) 362 | 2022 का सीआरए 592 | 29 मार्च 2022

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कर्मचारी अपने निलंबन की अवधि में अनुपस्थिति का लाभ नहीं उठा सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई कर्मचारी अपने निलंबन की अवधि के लिए अपनी अनुपस्थिति का लाभ उठाने में सक्षम होता है तो यह सेवा न्यायशास्त्र के सिद्धांत के बिल्कुल विपरीत होगा।

न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने झारखंड उच्च न्यायालय के 9 मई, 2016 के आदेश ("आक्षेपित आदेश") का विरोध करने वाली एक विशेष अनुमति याचिका पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की। आक्षेपित आदेश में खंडपीठ ने 15.2.1991 से 31.3.2003 की अवधि (जिस अवधि के दौरान वह निलंबित था) के लिए भत्ते, लाभ और पदोन्नति की मांग की प्रतिवादी की अपील को अनुमति देने के एकल न्यायाधीश के आदेश की पुष्टि की थी।

केस शीर्षक: झारखंड राज्य स्वास्थ्य चिकित्सा शिक्षा और परिवार कल्याण विभाग (सचिव के माध्यम से) एवं अन्य बनाम बनारस प्रसाद (मृत) कानूनी प्रतिनिधियों के जरिये | सिविल अपील संख्या 7196/2016

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स्वयं सामग्री जानकारी का खुलासा न करना ही रोजगार रद्द करने या सेवाओं को समाप्त करने का आधार हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि स्वयं सामग्री जानकारी का खुलासा न करना ही रोजगार को रद्द करने या सेवाओं को समाप्त करने का आधार हो सकता है। वर्ष 2003 में, दिलीप कुमार मल्लिक को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल ('सीआरपीएफ') ग्रुप सेंटर, भुवनेश्वर के तहत नियुक्त किया गया था। उसके खिलाफ इस आरोप पर एक विभागीय जांच शुरू की गई थी कि वह एक आपराधिक मामले में शामिल था और आरोप पत्र दायर किया गया था।

हालांकि उक्त आपराधिक मामला सक्षम न्यायालय के समक्ष लंबित था, लेकिन सत्यापन रोल भरते समय, उसने उस तथ्य छुपाया / दबा लिया। अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा उसे हटाने की सजा दी गई। बाद में, उसकी रिट याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए, उड़ीसा हाईकोर्ट ने सीआरपीएफ को 'उचित और उचित समझी जाने वाली किसी भी कम सजा' को लागू करने का निर्देश दिया।

भारत संघ बनाम दिलीप कुमार मल्लिक | 2022 लाइव लॉ (SC) 360 | 2022 की सीए 2754 | 5 अप्रैल 2022

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