विशिष्ट अदायगी के लिए सूट - एक बार जब वेंडर समझौते के निष्पादन और अग्रिम भुगतान स्वीकार कर लेता है, तो आगे कुछ भी साबित नहीं करने की जरूरत है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

15 April 2022 11:38 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि एक बार बेचने के लिए समझौते का निष्पादन और पर्याप्त अग्रिम राशि का भुगतान विक्रेता द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो बिक्री समझौते की विशिष्ट अदायगी से संबंधित एक सूट में खरीदार द्वारा साबित करने के लिए और कुछ भी आवश्यक नहीं है। .

    न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की अनुमति दी, जिसने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें बिक्री के लिए समझौते की विशिष्ट अदायगी के लिए डिक्री देने का आदेश दिया गया था।

    तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

    अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसने प्रतिवादी संख्या-एक के साथ 29 लाख रुपये में सूट संपत्ति की खरीद के लिए एक समझौता किया था। उसने 20 लाख रुपये का भुगतान किया था। बाद में मांग पर छह लाख रुपये का भुगतान किया गया था और उस संबंध में प्रतिवादी संख्या द्वारा एक समझौते पर सहमति जतायी गयी थी। अपीलार्थी द्वारा बार-बार अनुरोध किए जाने के बाद भी प्रतिवादियों ने विक्रय विलेख निष्पादित नहीं किया।

    आखिरकार, उसे पता चला कि प्रतिवादी नं. 2, जिनके नाम पर प्रतिवादी नं. 1 ने पावर ऑफ अटॉर्नी निष्पादित की थी, ने अपनी भाभी (बाद के खरीदार) के पक्ष में दो बिक्री विलेख निष्पादित किए थे। बिक्री विलेख के निष्पादन का आग्रह करने के लिए प्रतिवादियों को एक कानूनी नोटिस दिया गया था, लेकिन प्रतिवादी नं. 1 ने विलेख का निष्पादन नहीं किया। उसी के मद्देनजर, अपीलकर्ता ने 12.04.2005 को बिक्री के समझौते की विशिष्ट अदायगी के लिए एक मुकदमा दायर किया। प्रतिवादी नं. 1 ने बिक्री समझौते के निष्पादन और भुगतान की गयी राशि स्वीकार की थी, जबकि प्रतिवादी संख्या 2 ने उसका विरोध किया था।

    ट्रायल कोर्ट ने डिक्री दिया था क्योंकि मूल मालिक, प्रतिवादी संख्या 1 ने अपीलकर्ता के पक्ष में बिक्री अनुबंध के निष्पादन को स्वीकार किया था। बाद के खरीददारों द्वारा एक अपील दायर की गई, जिसके पक्ष में प्रतिवादी नं. 2 ने पावर ऑफ अटॉर्नी का प्रयोग करते हुए बिक्री विलेख निष्पादित किया था। कर्नाटक हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट ने माना कि चूंकि बाद की बिक्री को अमान्य घोषित करने की कोई प्रार्थना नहीं थी, इसलिए ऐसी राहत नहीं दी जा सकती थी।

    पार्टियों द्वारा उठाए गए विवाद

    अपीलकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एस.एन. भट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री का बचाव करते हुए कहा कि संबंधित संपत्ति के मूल मालिक ने समझौते के निष्पादन और उसके तहत पर्याप्त राशि के भुगतान को स्वीकार किया था। यह तर्क दिया गया कि बिक्री समझौते के निष्पादन के समय अपीलकर्ता को मूल मुख्तारनामा सौंपा गया था। उन्होंने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने यह मानते हुए गलती की कि अनुबंध धारक के लिए बाद के खरीदारों के पक्ष में निष्पादित बिक्री विलेख को रद्द करने की मांग करना आवश्यक था।

    'लाला दुर्गा प्रसाद और अन्य बनाम लाला दीप चंद और अन्य, 1954 एससीआर 360' और 'रत्नावती और अन्य बनाम कविता गणशमदास (2015) 5 एससीसी 223' सहित निर्णयों की एक श्रृंखला पर भरोसा जताते हुए श्री भट ने दलील दी कि यह मूल मालिक के खिलाफ विशिष्ट अदायगी के लिए बाद की खरीद को लागू करने और ऐसे खरीदारों को इसमें शामिल होने के लिए निर्देश देने के लिए पर्याप्त था। तीसरे पक्ष और प्रतिवादी संख्या 2 के बीच लेनदेन को फर्जी लेनदेन के रूप में भी चुनौती दी गई थी। इसलिए, यह तर्क दिया गया कि हाईकोर्ट ने विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 20 के संदर्भ में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री को रद्द करने में गलती की थी।

    चूंकि प्रतिवादियों की ओर से कोई पेश नहीं हुआ, इसलिए अदालत ने एकतरफा अपील पर कार्यवाही की।

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा विश्लेषण

    कोर्ट ने कहा कि एक बार बिक्री समझौते के निष्पादन और अग्रिम भुगतान के बारे में प्रतिवादी संख्या 1 द्वारा स्वीकार कर लेने के बाद, विशिष्ट अदायगी के लिए स्थापित वाद में अपीलकर्ता द्वारा आगे कुछ भी साबित करने की आवश्यकता नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट का विचार था कि हाईकोर्ट, ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री को इस आधार पर खारिज नहीं कर सकता था कि बाद के खरीदारों के पक्ष में निष्पादित बिक्री विलेख को रद्द करने की कोई विशेष राहत नहीं मांगी गयी थी, खासकर जब ट्रायल कोर्ट ने विशिष्ट उक्त बिक्री विलेखों से संबंधित मुद्दे खुद उठाये थे।

    इसके अलावा, यह देखा गया कि हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के इस निष्कर्ष का मूल्यांकन नहीं किया था कि बाद के खरीदारों द्वारा भुगतान की गई बिक्री राशि करे स्थापित नहीं किया गया था और यह साबित नहीं हुआ था और इसलिए ये नाममात्र के बिक्री विलेख थे।

    कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता के पक्ष में बेचने के समझौते के स्टांप पेपर प्रतिवादी संख्या 2 के नाम से खरीदे गए थे और इसलिए वह उक्त समझौते से अवगत था। न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट ने राहत से इनकार करने में विवेक का प्रयोग करने के लिए विशेष राहत अधिनियम की धारा 20 का सहारा लिया था, लेकिन यह आधार नहीं होगा , क्योंकि

    ट्रायल कोर्ट ने पाया कि मूल मालिक ने पर्याप्त अग्रिम राशि स्वीकार करके अपीलकर्ता के पक्ष में बिक्री समझौते के निष्पादन को स्वीकार किया था, क्योंकि प्रतिवादी नं. 2 इस तरह के समझौते से अवगत था; प्रतिवादी नं 2 ने उन खरीदारों के पक्ष में नाममात्र बिक्री विलेख निष्पादित किए जो उनकी भाभी थीं।

    केस का नाम: पी. रामसुब्बम्मा बनाम वी. विजयलक्ष्मी और अन्य।

    उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एससी) 375

    मामला संख्या और दिनांक: सिविल अपील संख्या 2095/2022 | 11 अप्रैल 2022

    कोरम: जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस बी.वी. नागरत्न

    हेडनोट्स: विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963- बिक्री समझौते के लिए विशिष्ट अदायगी के वास्ते सूट - एक बार बिक्री समझौते के निष्पादन और पर्याप्त अग्रिम भुगतान विक्रेता द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो आगे क्रेता द्वारा साबित करने के लिए कुछ भी आवश्यक नहीं है (पैरा 5.2)

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