सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफ़ेसर अली खान महमूदाबाद को राहत दी, पुलिस के आरोपपत्र पर मजिस्ट्रेट को संज्ञान लेने से रोका

Update: 2025-08-25 08:07 GMT

हरियाणा पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उसने अशोका यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर अली खान महमूदाबाद के ख़िलाफ़ FIR में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की। इसके साथ ही 'ऑपरेशन सिंदूर' पर उनके सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़ी एक अन्य प्राथमिकी में भी आरोपपत्र दाखिल किया।

इस घटनाक्रम पर संज्ञान लेते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने वह FIR रद्द की, जिसमें क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की गई थी। इसके साथ ही दूसरी FIR के संबंध में न्यायालय ने अंतरिम आदेश पारित कर मजिस्ट्रेट को उसका संज्ञान लेने से रोक दिया।

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू हरियाणा पुलिस की ओर से पेश हुए।

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने खंडपीठ को बताया कि यह "बेहद दुर्भाग्यपूर्ण" है कि पुलिस ने सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियों के लिए भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152, जो राष्ट्र की संप्रभुता पर हमला करने वाले अपराधों से संबंधित है, उसका इस्तेमाल किया। सिब्बल ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट अब BNS की धारा 152 की संवैधानिकता की जांच कर रहा है।

संक्षेप में मामला

अदालत ने 21 मई को महमूदाबाद को अंतरिम ज़मानत दी थी। साथ ही हरियाणा के डीजीपी को विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का निर्देश दिया था ताकि "इन दोनों ऑनलाइन पोस्टों में प्रयुक्त शब्दावली की जटिलता को समग्र रूप से समझा जा सके और कुछ अभिव्यक्तियों का उचित मूल्यांकन किया जा सके।"

पिछली सुनवाई पर अदालत ने पूछा था कि हरियाणा पुलिस की SIR "गलत दिशा में" क्यों जा रही है। उसने कहा कि SIT का गठन विशेष रूप से दो सोशल मीडिया पोस्टों की जाँच के लिए किया गया था और पूछा था कि इसका दायरा क्यों बढ़ाया जा रहा है।

खंडपीठ ने ये टिप्पणियां महमूदाबाद की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल द्वारा यह दलील दिए जाने के बाद कीं कि SIT ने उनके डिवाइस ज़ब्त कर लिए और पिछले दस वर्षों की उनकी विदेश यात्राओं के बारे में पूछताछ कर रही है। सिब्बल ने बताया कि अदालत ने 28 मई के अपने आदेश में SIT को अपनी जांच सोशल मीडिया पोस्टों की विषय-वस्तु तक ही सीमित रखने का निर्देश दिया था।

यह देखते हुए कि महमूदाबाद ने जांच में सहयोग किया और अपने डिवाइस जमा कर दिए, अदालत ने निर्देश दिया कि उन्हें दोबारा तलब न किया जाए।

जस्टिस कांत ने कहा,

"आपको उसकी (महमूदाबाद की) नहीं, एक शब्दकोश की ज़रूरत है।"

खंडपीठ ने SIT को चार हफ़्तों के भीतर अपनी जांच पूरी करने का निर्देश दिया।

Case Title : MOHAMMAD AMIR AHMAD @ ALI KHAN MAHMUDABAD Versus STATE OF HARYANA | W.P.(Crl.) No. 219/2025

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