ट्रांसफर याचिका में वादी और वकील ने हाईकोर्ट जज के विरुद्ध की थी अपमानजनक टिप्पणी, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया अवमानना नोटिस

Update: 2025-07-29 08:52 GMT

तेलंगाना हाईकोर्ट की वर्तमान जज जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य के विरुद्ध ट्रांसफर याचिका में की गई 'अपमानजनक' टिप्पणियों पर कड़ा रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता AoR और याचिका दायर करने के लिए सहमत हुए वकीलों को कारण बताओ नोटिस जारी किया।

न्यायालय ने कहा कि वह वादियों और वकीलों को वर्तमान जजों की छवि खराब करने की अनुमति नहीं दे सकता, जबकि जज जांच एजेंसियों द्वारा जारी किए गए समन से वकीलों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) गवई ने कहा,

"एक ओर, हम वकीलों को (प्रवर्तन निदेशालय द्वारा प्रावधानों के) दुरुपयोग से बचाने की कोशिश कर रहे हैं; ऐसे में हम जजों को कठघरे में खड़ा नहीं होने दे सकते। कोई भी वकील या वादी जज के विरुद्ध आरोप लगाने के लिए स्वतंत्र है।"

सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ पेड्डी राजू नामक व्यक्ति द्वारा दायर ट्रांसफर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी से संबंधित आपराधिक मामले को तेलंगाना हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने का अनुरोध किया गया था। न्यायालय वर्तमान हाईकोर्ट जज जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य के विरुद्ध प्रयुक्त भाषा से नाखुश था।

शुरुआत में, याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने का अनुरोध किया।

चीफ जस्टिस ने मौखिक रूप से कहा कि न्यायालय के एक अधिकारी के रूप में AoR और वकीलों का यह कर्तव्य है कि वे दायर की जा रही याचिका की विषय-वस्तु के बारे में सावधान रहें।

चीफ जस्टिस ने कहा,

"याचिका पर हस्ताक्षर करने और उसका मसौदा तैयार करने से पहले न्यायालय के एक अधिकारी के रूप में क्या यह आपका कर्तव्य नहीं है... हम नोटिस जारी करेंगे और फिर देखेंगे कि आपकी माफ़ी स्वीकार की जाएगी या नहीं।"

खंडपीठ ने वर्तमान याचिका दायर करने वाले वकीलों और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के विरुद्ध कारण बताओ नोटिस जारी किया।

आदेश में कहा गया:

"तेलंगाना हाईकोर्ट की कार्यरत जज के विरुद्ध अपमानजनक और निंदनीय आरोप लगाए गए हैं। इस न्यायालय की संविधान पीठ ने माना कि केवल वादी ही ऐसे आरोप नहीं लगाता, बल्कि हस्ताक्षर करने वाला वकील भी इस न्यायालय की अवमानना का समान रूप से दोषी होगा। हम याचिकाकर्ता एन. पेड्डी राजू, AoR, वकील रितेश पाटिल और वर्तमान याचिका तैयार करने वाले वकीलों को नोटिस जारी करते हैं कि वे कारण बताएं कि उनके विरुद्ध न्यायालय की अवमानना का मामला क्यों न चलाया जाए। नोटिस 11 अगस्त को वापस किया जाएगा।"

न्यायालय ने यह भी दर्ज किया कि कार्यवाही के दौरान, जब न्यायालय ने हाईकोर्ट जज के विरुद्ध प्रयुक्त भाषा पर आपत्ति जताई तो याचिकाकर्ता के वकील ने मामला वापस लेने का अनुरोध किया। न्यायालय ने यह स्वतंत्रता दिए बिना इसे खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"हमने जब कार्यवाही के समय याचिका में प्रयुक्त भाषा पर अपनी नाराजगी व्यक्त की तो वकील ने याचिका वापस लेने की स्वतंत्रता मांगी। हालांकि, हम याचिकाकर्ता को इसे वापस लेने की अनुमति देने के पक्ष में नहीं हैं। इसे खारिज किया जाता है।"

सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेड्डी की ओर से पेश हुए, जो इस मामले में प्रतिवादी हैं।

तेलंगाना हाईकोर्ट के समक्ष मामला क्या था?

तेलंगाना हाईकोर्ट के समक्ष मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम) 2016 के तहत अपने खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग करते हुए मामला दायर किया था। रेड्डी पर आरोप है कि उन्होंने एक अनुसूचित जाति समुदाय की सोसायटी में तोड़फोड़ की, जिसके परिणामस्वरूप अंततः जाति-आधारित गालियां दीं गईं।

यह मामला वर्तमान याचिकाकर्ता एन पेड्डी राजू द्वारा दायर किया गया था।

17 जुलाई को जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कार्यवाही यह कहते हुए रद्द कर दी कि कथित अपराध स्थल पर रेड्डी की उपस्थिति दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है।

हाईकोर्ट के समक्ष, आदेश सुनाए जाने से पहले शिकायतकर्ता की ओर से उपस्थित वकील ने उल्लेख किया कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ट्रांसफर आवेदन प्रस्तुत किया, जिसमें प्रार्थना की गई कि मामले को हाईकोर्ट की किसी भी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।

आवेदन में वकील ने तर्क दिया कि वास्तविक शिकायतकर्ता को पीठ द्वारा अपना पक्ष रखने की अनुमति नहीं दी गई।

आदेश पारित करने के बाद जस्टिस मौसमी ने कहा कि ट्रांसफर के लिए आवेदन सुनवाई के अंतिम चरण में, यानी मामले को आदेश के लिए सुरक्षित रखे जाने के बाद प्रस्तुत किया गया। इसके अलावा, पीठ ने यह भी कहा कि ट्रांसफर आवेदन कब दायर किया गया, यह दर्शाने वाली कोई तारीख नहीं है।

Case Details : N. PEDDI RAJU Versus ANUMULA REVANTH REDDY| T.P.(Crl.) No. 613/2025

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